होम स्टे ( Home Stay ) पहुंचकर हमने राहत की सांस ली. हालांकि, यहां पहुंचने पर जिस कमरे में हमने अपना सामान रखा था, वापसी में हमें पता चला कि हमें उस कमरे से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है. ऊपर 2-3 फैमिली आने की वजह से, हम दोस्तों की जगह नीचे बना दी गई थी, वो भी होम स्टे ( Home Stay ) के ओनर के कमरे में. अब किसी के कमरे में ठहरना कैसा रहता है, यह आप सभी समझ सकते हैं. खैर, इतनी रात को हम करते भी क्या! हमने ओनर की परेशानी को भी समझा और चले आए उनके कमरे में.
500 रुपये में हमें जो कमरा पहले मिला था वह पैसा वसूल लग रहा था लेकिन ये नया वाला कमरा एकदम जुगाड़ जैसा लगा रहा था. ऐसा लगा कि अब ओनर ने पैसा वसूल कर लिया. वह पूरा घर जैसा लगा. बेड, वाशरूम, सबकुछ. सर्दी बहुत थी. अन्कंफर्टेबल मैं तब भी हुआ जब संजू बार बार गर्म पानी मांगने लगा. दरअसल, मैं पहली बार किसी होम स्टे ( Home Stay ) में रुका था और यह मुझे थोड़ा थोड़ा अन्कंफर्टेबल कर दे रहा था. मैंने घर पर पूरी जानकारी दी और वाशरूम में फ्रेश होने चला गया. वापस आकर अगले दिन का शेड्यूल बनाने में जुट गया. इसी बीच, आंटी खाना पूछने आ गईं. मैंने कहा कि हां, ला दीजिए. अगले कुछ ही मिनटों में खाना मेरे सामने था.
मैंने और संजू ने खाना देखा और पहला स्वाद लेते ही हमें वह खाना अति उत्तम की श्रेणी का लगा. एकदम घर वाले खाने जैसा, मसालों की लाग लपेट से दूर. हमें बताया गया कि ये घर के बगल के खेत की सब्जियों से बना भोजन है. यह जानकर हमारी खुशी तो दोगुनी हो गई. हमने ओनर से सुबह खेतों को देखने की गुजारिश की और सो गए.
अगली सुबह मैं 6 बजे बिस्तर से उठ चुका था. नहाने की न हिम्मत थी और न ही कोई वजह. सो, फ्रेश होकर हम दोनों ही बाहर टहलने चले गए. ये नई टिहरी की मरोड़ा गांव था. मैंने जब अपने यूट्यूबर होने की जानकारी दी तब ओनर ने अपनी समस्याएं बतानी शुरू कर दीं. उन्होंने कहा कि सामने रास्ता पतला है, पार्किंग नहीं है. अभी डीएम की गाड़ी, कुछ ही दिन पहले यहां फंस गई थी. ये सब सुनकर, मुझे लगा कि आज भी मीडिया पर लोगों को कितना भरोसा है. हालांकि, मेरे साथ मीडिया जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन फिर भी लगा कि देश की कुछ समस्याएं मीडिया ही हल करती है.
हम खेतों के मुआयने में लग गए. इतने में चाय भी आ गई. हमने खूब सारी तस्वीरें क्लिक कीं और व्लॉग का एक हिस्सा भी शूट किया. इसके बाद हमने बस की जानकारी ली. पता चला कि साढ़े 9 बजे एक के बाद 3-4 बसें आती हैं. यह पूछ ही रहा था कि एक बस आ गई. अब संजू का आवाज लगाई तो वह बाथरूम में था. सो, ये बस छूट गई. अगले कुछ देर में, हम दोनों सामान के साथ मरोड़ा बस स्टैंड पर खड़े थे.
मैंने गांव के दूसरी घरों की तरफ देखा. बेहद सुंदर और बड़े घरों पर लटके ताले पहाड़ों की कहानी की गवाही दे रहे थे. हम फिर तस्वीरों में लग गए. इतने में मुझे एक सुंदर गधा दिखाई दिया. गधे को बेहद शानदार तरीके से सजाया गया था. तुरंत ही मैंने उसकी तस्वीर खींच ली. मैंने उसकी फोटो खींची ही थी कि एक जीप आ गई और हम उसमें चंबा के लिए सवार हो गए.
अब जब एक उम्र होती है तो दोस्ती होना भी स्वाभाविक है. ओनर ने बताया कि सरकार से मिले अनुदान से उसने ये होम स्टे बनाया है. फिलहाल एक जगह वे कॉन्ट्रैक्ट जॉब करते हैं और शाम को और सुबह यहां का काम संभालते हैं. उनके पीछे, उनके माता पिता ये काम देखते हैं. उनके आग्रह पर हमने उनके होम स्टे की जानकारी भी वीडियो में जोड़ी.
डोबरा चांटी से हम चंबा के लिए चल दिए. अगले लगभग एक घंटे में, हम चंबा पहुंच गए थे. यहां भी अलग कहानी. ऋषिकेश के लिए वाहन दिखाई नहीं दिया. एक बस आई, ऊपर दिल्ली देख हम चढ़ तो गए लेकिन कंडक्टर ने कहा कि अभी आगे एक ढाबे पर हमें रुकना है. बस क्या था, मतलब टाइम की बर्बादी. हम उतरे और दूसरे वाहन का इंतजार करने लगे. दूर एक जिप्सी खड़ी दिखाई दी जो ऋषिकेश के लिए सवारी भर रही थी. हम उसमें बैठ गए. किराया 80-80 रुपये था.
हमारे देश में सचमुच हर शख्स राजनीतिज्ञ है. जिप्सी में इस बात का दोबारा अहसास हो गया. मैंने संजय से कहा- यार संजय सड़क तो सही बन गई है. मेरा इशारा ऑल वेदर रोड की तरफ था. पास में बैठे एक शख्स को ये बात पसंद नहीं आई. उन्होंने देश के पीएम से लेकर राज्य की सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ अपशब्दों की बौछार कर दी. हालांकि, मेरा कोई राजनीतिक दृष्टिकोण तो नहीं और न ही उसमें कोई रुचि है लेकिन मेरा मानना है कि अच्छे काम के लिए तारीफ करने से और बुरे काम के लिए आलोचना करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. लेकिन बगल वाले महाशय तो सिर्फ आलोचना ही आलोचना किए जा रहे थे. ये भी मुझे अच्छा नहीं लगा.
1 बजे के आसपास हम ऋषिकेश में थे. नटराज चौक पर खाना खाया. यही भोजन हमारा नाश्ता और लंच दोनों था. अच्छा हुआ जो चंबा या डोबरा में नाश्ता नहीं किया. घुमावदार रास्ते में तबीयत खराब होने का भी डर रहता है. खाना खाकर, हम अगले मिशन की तरफ चल दिए. ये अगला मिशन था सर्वदमन बनर्जी सर का इंटरव्यू.
अगले ब्लॉग में- सर्वदमन बनर्जी से मिलकर जैसे दूसरा जन्म मिल गया
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