Delhi to Shillong, Second Day Tour Blog – यात्रा का दूसरा दिन शुरू हुआ तो ताज़गी से भरा हुआ था लेकिन बाद में लंबा वक्त ऊंघते और बोर होते ही बात गया. सुबह सुबह ठंड से आंख खुली तो मैंने शॉल को कसकर ओढ़ लिया. पता नहीं चला कि एसी में हवा आ कहां से रही थी? खैर, जैसे तैसे सोया और सुबह 6 बजे उठ गया. ट्रेन में देखा कि ज़्यादातर लोग सोए ही पड़े हैं. इस खामोशी का फायदा मैंने फटाफट वॉशरूम जाकर उठाया. लेट होने पर ट्रेनों के वॉशरूम में लाइन और अव्यवस्था का अंदाज़ा तो आप भी लगा ही सकते हैं.
सुबह की चाय आई. मैंने चाय पी और फिर नीचे बीएसएफ वाले भाई जी के साथ बैठ गया बतियाने. कई बातें हुईं हमारे बीच. उन्होंने मुझे अपने परिवार के बारे में बताया. उनके एक भाई यूपी पुलिस में ही हैं. अपनी शादी का भी किस्सा सुनाया. वे गांव में बच्चों को मैथ पढ़ाया करते थे, उनके भाई की जब ट्रेनिंग हो रही थी, तो उनके एक दोस्त बन गए. वह मित्र जब गांव आए तो उन्हें ये बीएसएफ वाले भाई जी पसंद आए. हालांकि तब उनकी नौकरी नहीं लगी थी लेकिन अपनी बहन का रिश्ता उन्होंने इनसे तय कर लिया. इनके साले भी यूपी पुलिस में ही हैं.
इतने कटिहार स्टेशन (Katihar Railway Station) आने वाला था. मैंने बाहर देखा कि धीरे धीरे बांस के बने घर ज़्यादा नज़र आने शुरू हो चले थे. हम जो बात सुनते हैं कि कोस कोस पर भारत में बोली और पानी बदल जाता है, उसका सजीव उदाहरण मैं आंखों के सामने देख रहा था. बाहर घरों की बनावट तो बदली बदली दिख ही रही थी, नारियल के पेड़ और खेतों में मछली पकड़ने जैसे नज़ारे भी दिखाई देने लगे थे. लग रहा था कि अब पश्चिम बंगाल आने वाला है.
मेरे लिए यह पहला मौका था जब बनारस की परिधि से बाहर कहीं आया था. अब वापस अंदर आया. ट्रेन का अगला स्टेशन किशनगंज था. किशनगंज भी आया. यहां भी मैंने छोटा सा रील वीडियो बनाया. किशनगंज के बाद चाय के बागान दिखने शुरू हो गए. बेहद खूबसूरत. एक नदी भी आई, शायद वह ब्रह्मपुत्र ही थी. अंदर आया तो ऊपर बैठी महिला ने मुझसे समय पूछा. उन्होंने ट्रेन का शेड्यूल जानना चाहा, मैंने उन्हें बताया.
अब मुझे भूख लगने लगी थी. काफी वक्त पहले से ही पैंट्री कार वाले भोजन के पैकेट्स को ले जा रहे थे. वे अलग अलग कंपार्टमेंट्स में थाली के लिए इन्हें लेकर जाते हैं और फिर वहीं सेट करते हैं. मैंने पूछा तो वह बोले बस 1 बजे खाना आ जाएगा. साढ़े 12 बजे के आसपास गाड़ी न्यू जलपाईगुड़ी पहुंची. मुझे बताया गया कि न्यू जलपाईगुड़ी से ही एक लाइन दार्जिलिंग के लिए कट जाती है. दार्जिलिंग से पहले एक लाइन एक जगह से गंगटोक के लिए और एक जगह से दार्जिलिंग के लिए कटती है. कमाल की है न हमारी रेलवे.
ट्रेन तो वक्त पर थी लेकिन न्यू जलपाईगुड़ी के बाद वह सुस्ताने लगी थी. ऐसा लगा जैसे हमारी तरह वह भी थक चुकी हो. ट्रेन ऐसी ढीली पड़ी कि 1 बजकर 35 मिनट पर उसे कोचबिहार (Cooch Behar Railway Station) पहुंचना था लेकिन वह पहुंची 2 बजकर 20 मिनट पर. वहां 5 मिनट का ही स्टॉप था लेकिन चलते चलते उसने तीन बजा दिए. यहां बहुत तकलीफ पहुंची. सारी प्लानिंग गड़बड़ होने लगी थी.
कोचबिहार (Cooch Behar Railway Station) पहुंचने से पहले वह लेडी भी नीचे उतर आई थीं. वह, बीएसएफ वाले भाई जी और मैं एक साथ बतियाने लगे थे. बंगाल की राजनीति पर थोड़ी सी चर्चा हुई. बीएसएफ के नियंत्रण वाली सीमा बढ़ाए जाने पर वह बोलीं कि दीदी को न जाने क्या दिक्कत है. वह मूलतः कोलकाता से थीं. खैर, बातचीत अच्छी रही. कोचबिहार (Cooch Behar Railway Station) पर जब दोनों को मैं अलविदा कहने बाहर तक आया तब बीएसएफ वाले भाई जी सुनील ने मुझे एक बड़े भाई की तरह समझाया भी. वह बोले कि आगे आराम से जाना. गाड़ी लेट हो और रात में न लगे तो गुवाहाटी ही रुक जाना. शिलॉन्ग सुबह भले ही 4 बजे निकल जाना.
शिलॉन्ग का रास्ता थोड़ा घुमावदार है और रात में पता नहीं कौन ड्राइवर मिल जाए. एक नदी (उनका मतलब Umiam Lake से था) भी पड़ती है जिसे पार करने में ही जाम लग जाता है. उनकी बातों को मैंने ध्यान से सुना और ऐसा ही करने का निश्चय किया. हालांकि, अब तो ट्रेन की हालत देखकर लग रहा है कि ऐसा ही करना पड़ेगा. शाम के 4 बजकर 40 मिनट हो चुके हैं और ट्रेन अभी कोचबिहार से 4 ही किलोमीटर आगे आई थी कि उसका इंजन खराब हो चुका है. न जाने क्या होगा.
ट्रेन में कई लोग मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं, कई गाने सुन रहे हैं, कुछ दोस्त आपस में बतिया रहे हैं, जो अकेले हैं वह सोए सोए ऊंघ रहे हैं. मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूं.
हां, एक निजी अनुभव और बताए दे रहा हू्ं. बगल वाले कंपार्टमेंट में एक दोस्तों की टोली बैठी है. उसमें से एक का बर्थडे था. उनके साथ कुछ लड़कियां भी ट्रैवल कर रही हैं. काफी हिप हॉप सी दिख रही एक लड़की ने लड़के से सवाल किया- तेरा बर्थडे है आज? यार मुझे डेट तो याद ही नहीं रहती! अपने मां-बाप का भी याद नहीं. सोचिए, कितनी आसानी से कह गई वह इस बात को, मैं बता नहीं सकता. लेकिन मुझे यह सुनना अच्छा नहीं लगा.
अभी ये फीलिंग भी आ रही है कि जब सालों पहले हम ट्रेनों में चलते थे तो बगैर फोन के आपस में ज्यादा घुलते मिलते थे. बातें अभी भी होती हैं, लेकिन अगर फोन हमसे छीन लिया जाए तो क्या हाल हो? हर कोई फोन की टिक टिक में व्यस्त है.
फिलहाल, मेरी नज़रें शाम की चाय पर भी थी जिसे हाई टी कहते हैं. इसमें एक कचौड़ी, लड्डू, नमकीन के दो छोटे पैकेट और चाय मिलती है. मैंने चाय ले ली है. और अब इंतज़ार है ट्रेन के चलने का. देखते हैं मंज़िल कब तक आती है.
चाय के बाद ऐसा था कि स्टेशन तो आने ही वाला है लेकिन जो स्टेशन साढ़े 7 बजे आने वाला था, वहां पहुंचते पहुंचते हमें रात के 11 बज गए. इस बीच एक वाकया और हुआ. आईटीबीपी में कार्यरत एक शख्त नीचे की सीट पर यात्रा कर रहे थे. उनकी अवस्था 60 साल की थी.
60 साल की आयु और उनकी तबीयत भी खराब थी. मुझे लगा था कि वह दीमापुर जाएंगे, सो मैंने दीमापुर जा रहे कुमाउं रेजिमेंट के सैनिकों से उनकी देखभाल करने का निवेदन किया. वे सभी फौरन ही नींबू पानी तैयार करके लाए. मैंने पैंट्री से लाया नमक इसमें मिलाया. वह अंकल गुवाहाटी ही जा रहे थे.
अंकल को नींबू पानी से थोड़ी राहत तो मिली लेकिन तबीयत पूरी तरह से अभी भी सही नहीं थी. उन्हें लूज़ मोशंस लगे हुए थे. उन्हें जब ये पता चला कि मैं गुवाहाटी उतरूंगा तो उन्होंने निवेदन किया कि मैं आपके साथ एक ही होटल में रुक जाता हूं, इस वक्त मैं कहां जाउंगा. मुझे इसमें क्या दिक्कत होनी थी.
हम गुवाहाटी स्टेशन (Guwahati Railway Station) पर उतर तो गए थे लेकिन अब ये नहीं पता था कि जाना कहां है? अंकल भीड़ के साथ चले, तो मुझे भी चलना पड़ा. आगे जाकर कोविड चेकअब के लिए लंबी लंबी लाइनें थी, यहां कोई बताने वाला था ही नहीं. जब एग्जि़ट गेट पहुंचा तो पता चला कि अंकल तो आगे चले गए हैं. शायद उन्हें सैन्य सेवा में होने की वजह से जाने दिया गया था.
मैंने अपने दोनों वैक्सिनेशन की खुराक वाला सर्टिफिकेट (Certificate of Vaccination) दिखाया तो मुझे वापस काउंटर से पर्ची लाने के लिए कहा गया. एक काउंटर पर गया तो पता चला कि ये तो एक वैक्सिनेशन वालों के लिए है. दोनों वैक्सिनेशन ले चुके लोगों के लिए तीन काउंटर फिक्स थे.
एक तो ये अफरातफरी, ऊपर से जानकारी का अभाव. मेरा सामान भी भारी था, सो मुझसे भी अब रहा नहीं जा रहा था. मैं बताए गए काउंटर पर गया, तुरंत पर्ची बन गई. अब राहत मिली. बाहर आकर देखा कि अंकल तो मेरा इंतज़ार कर रहे थे.
मैं और वह पैदल ही बाहर चल दिए. बाहर मतलब, होटल की तलाश में बाहर. आगे पता चला कि होटल तो दूसरी साइड है. अंकल थोड़ा परेशान थे, इसलिए हमें टैक्सी करनी पड़ी. वैसे स्टेशन के अंदर जाकर भी दूसरी साइड जाया जा सकता था.
टैक्सी वाले ने हमसे 150 रुपये लिए. हम पान बाज़ार की साइड उतरे थे लेकिन गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर मार्केट, होटल पलटन बाज़ार की साइड हैं. आप भी जब गुवाहाटी रेलवे स्टेशन आएं तो पलटन बाज़ार की साइड से ही एग्ज़िट लें.
पलटन बाज़ार आकर पहले तो हम कुछ देर होटल दिलाने के नाम पर पीछे पड़े लोगों से पीछा छुड़ाते रहे. फिर बताए गए रास्ते की तरफ बढ़े और खुद होटल ढूंढ लिया. ये जगह दी पुलिस स्टेशन वाली गली में. आप उसे सड़क भी कह सकते हैं.
इस रोड पर एक होटल में हमें एक ही रूम मिल सका. हालांकि, बेड दो थे. आरामदायक गद्दे और सफाई मुझे बेहद पसंद आई. कुल 900 रुपये का कमरा था. रूम लेकर, कुछ देर मैंने लैपटॉप पर काम किया और फिर अलार्म लगाकर सो गया.
इस बीच अंकल, फ्रैश हुए और वह भी सो गए. अगली सुबह 6 बजे मैं उठ गया था. अलार्म बजा तो मैंने अंकल को भी जगा दिया. दोनों एक एक करके नहाए, धोए और तैयार हो गए. अंकल ने मुझे अपनी कंपनी (पलटन) के बारे में कुछ बातें बताईं. नंबर शेयर हुए.
इसके बाद मैं निकल गया शिलॉन्ग के सफर पर. पलटन बाज़ार से ही शिलॉन्ग के लिए गाड़ी मिलती है. अगले ब्लॉग में पढ़िए शिलॉन्ग तक के सफर की कहानी को, साथ में और भी दिलचस्प बातें.
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