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Delhi to Kasaul Road Trip – 30 रुपये वाली चाय और Bhunter की टैक्सी भुलाए नहीं भूलेगी

Delhi to Kasaul Road Trip – दोस्तों, इस ब्लॉग में आप दिल्ली से पार्वती वैली के मेरे सफर ( Parvati Valley Tour ) का अनुभव पढ़ेंगे. इस सीरीज का ये दूसरा ब्लॉग है. इससे पहले का ब्लॉग घर से निकलकर बस पकड़ने तक के सफर की कहानी कह रहा है. अगर आप पहला ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक कर सकते हैं. चलिए दूसरे ब्लॉग को शुरू करते हैं. इस ब्लॉग में आप दिल्ली से भुंतर और फिर भुंतर से कसौल तक की यात्रा ( Delhi to Kasaul Road Trip ) के बारे में हमारे अनुभवों को जानेंगे. ये ब्लॉग आपकी पार्वती वैली यात्रा के लिए बेहद मददगार साबित हो सकता है.

दिल्ली-NCR में घुमक्कड़ी करते-करते चाय पीने का शौक पुराना है. 10 रुपये में किसी भी कोने में मिल जाने वाली ये चाय बारिश, गर्मी, सर्दी… हर मौसम में भाती है. हालांकि, पार्वती वैली के सफर पर इस चाय ने चौंका दिया. दिल्ली से ज़रा ही दूर आए थे. ईस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेसवे से उतरकर सोनीपत के मूर्थल में बस रुकी. वॉल्वो बस ऐसे होटल में रुकी जो किसी फाइव स्टार जैसा मामला लग रहा था. चमक धमक, फव्वारे सब देखकर कई लोग तो फोटो सेशन में ही जुट गए. मैं सबसे पहले वॉशरूम गया. वॉशरूम से बाहर आकर एक दुकान पर कोल्डड्रिंक का रेट पता किया. 40 वाली कोल्डड्रिंक 60 रुपये में मिल रही थी. चिप्स के पैकेट भी MRP से ज़्यादा रेट पर थे. ये देखकर मैंने यूटर्न ले लिया. भला हो रंजीत और संजू का, जो वो दूर जाकर एक चाय की दुकान खोज आए. उन्होंने फोन किया और हमें भी बुला लिया. वहां चाय थी तो लेकिन 30 रुपये की. ये महंगाई देखकर लगा कि ट्रिप बजट से बाहर न चली जाए. खैर, उस ढाबे की चाय गजब की थी. एकदम दिल तक पहुंची.

चाय पीने से पहले हम होटेल में खाना खा चुके थे. रात का डिनर करने के बाद चाय मिल जाए तो क्या कहने. ये मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा होता है. चाय पीकर हमने थोड़ा वॉक किया और फिर चल दी बस मंज़िल की तरफ. हमारी इस बस में एक बात थी, वो ये कि इसमें एक ग्रुप था. ये ग्रुप ऐसा था कि इसमें परिवार और दोस्तों का संगम था. कुछ लोग ऐसे थे जैसे अभी कॉलेज में ही हों और कुछ लोग मैच्योर लग रहे थे. हालांकि, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा. इन सभी के हो हल्ले ने मुझे सोने नहीं दिया. सो सीट आगे एक लड़की खड़े होकर बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड की चर्चाएं कर रही थी, वो भी चिल्ला चिल्लाकर तो दाहिनी तरफ अलग ही गॉसिप चल रही थी. संकोचवश मैंने किसी से चुप रहने के लिए नहीं कहा. हां, 3 से 4 बजे, भोर में, उन सभी की बैटरी अपने आप डिस्चार्ज हुई और वे सभी सो गए. अब मुझे नींद नहीं आ रही थी. बस चंडीगढ़ से आगे पहाड़ों पर हिचकोले खा रही थी और मैं बाहर ही एकटक देखे जा रहा था.

अब सुबह हो चली थी. मैं नजारों में व्यस्त था. नजारे क्या थे खाली पहाड़ और घर ही थे. तभी वासु यानी अपना रंजीत कहने लगा – यार मुझे वाशरूम जाना है. वह भागा भागा ड्राइवर के पास गया, बस रुकवाई और चला गया बाहर. क्या है न, बस में यही एक समस्या है जिसका निवारण कई बार नहीं मिल पाता है. वासु तो दो मिनट बाद आ गया. लेकिन बस चलने के आधे घंटे बाद मुझे भी लघुशंका आ गई. वासु से मैंने कहा तो उसने कहा कि मेरा माहौल भी बन ही रहा है. ड्राइवर और ऑपरेटर से मिन्नतें कीं तो उन्होंने लगभग पौने घंटे लगा दिए. इसके बाद उन्होंने बस को एक ढाबे पर रोका जहां सभी यात्रियों ने बाहर आकर पहाड़ों का दीदार किया. चाय भी पी.

बस के ये अनजान मुसाफिर, अनजान रहते हुए एक रिश्ता तो बना ही देते हैं. ये रिश्ता होता है एक बस में सफर करने का. हल्के फुल्के हंसी मजाक भी चलने लगे. तभी हमने पीछे बैठे लोगों से बात की. पता चला कि वो खीरगंगा ट्रेक के लिए आए हैं और आज ही ट्रेक को शुरू भी कर देंगे. हमने कहा कि कमाल है यार! विपिन ने उनसे खीरगंगा पर कैंप के रेट पता किए, कुछ कॉन्टैक्ट्स भी लिए. यहां मुझे लगा था कि बस भुंतर आ ही गया लेकिन जब गूगल मैप खोला तो वह अभी से 3 घंटे बता रहा था. ये देखकर होश उड़ गए. अब करते भी क्या. हमने प्लानिंग और शेड्यूल में वहीं से परिवर्तन करना शुरू कर दिया. इधर बस चली ही थी कि हाईवे का काम दिखाई देने लगा. बड़ी बड़ी सुरंगे, पुल बन रहे थे. पहाड़ों को तोड़ा जा रहा था. मनाली हाईवे का भविष्य मेरी आंखों के सामने आने लगा. अब भविष्य तो दूर था लेकिन वर्तमान की उसने लंका ज़रूर लगा दी.

बस हिचकोले खाते खाते, और कभी कभी धूल खिलाते खिलाते, 12 बजे के बाद भुंतर पहुंचीं. भुंतर ही वो जगह है जहां से एक रास्ता सीधा मनाली के लिए निकल जाता है और दूसरा रास्ता पार्वती वैले के लिए. ये जगह छोटी है और कन्जस्टेड भी. यहीं पर कुल्लू हवाई अड्डा भी है. वीरभद्र सिंह की सरकार ने यहां अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का प्रोजेक्ट शुरू किया था जिसे नई सरकार ने रोक दिया. अब यहां से अच्छी खासी दूरी पर स्थित सुंदर नगर में हवाईअड्डे बनाने की तैयारी चल रही है. भुंतर में बस से उतरने के बाद, जब मैं नीचे से अपना बैगपैक लेने गया तो वह मिट्टी में सनने से बच गया था. इसकी वजह थी उसके ऊपर मौजूद ढेर सारे बैग. ऑपरेटर ने बस चलने से पहले ही हिदायत दी थी कि नीचे रखा बैग भुंतर में आप पहचान भी नहीं पाओगे. वो पैसेंजर्स जिनके लगेज सबसे आगे थे, उनका यही हाल हुआ था.

भुंतर से Zing Bus वालों ने अपनी टैक्सी (SUMO) में बिठाकर हमें कसौल रवाना किया. यहां राहत मिली. क्योंकि असली चैलेंज भुंतर से कसौल की यात्रा ही है. 8 बजे के बाद ट्रैवल बसों की पार्वती वैली में नो एंट्री होती है. रास्ता संकरा और घुमावदार है. बस जाने से जाम की समस्या बन जाती है. यही वजह है कि दिन के समय गाड़ियां ही आपको लेकर जा सकती हैं. हालांकि इस सुमो में भी उसी ग्रुप के कुछ लोग हमारे साथ थे, जो बस में भी थे. चलते चलते मैं फिर नींद में चला गया, नींद में जाते ही उस ग्रुप में से एक लड़की ऐसे चिल्लाई जैसे उसने कोई चमत्कार देख लिया हो. मुझे तो लगा कि कोई घटना हो गई लेकिन जब समझ पाया तो वह एक पर्वत को देखकर चिल्लाई थी जो बर्फ से ढका हुआ था. मैंने मन में कहा – धत्त तेरे की.

भुंतर से कसौल तक का सफर लोग इसलिए करते हैं क्योंकि अमूमन पार्वती वैली घूमने आने वाले लोग कसौल ही स्टे करते हैं. कसौल और इसके पास CHOJ विलेज ही पार्वती वैली का सेंटर पॉइंट है. अब हम सुमो में ड्राइवर और उस ग्रुप से भी बात करने लगे थे. ये पूरा सफर डेढ़ घंटे का है. हम बात कर ही रहे थे कि ग्रुप के दो लोगों को उल्टियां शुरू हो गईं. कसौल से कुछ ही दूर पहले हमने गाड़ी रुकवाई, उन्हें पानी दिया, कुछ टॉफीज थीं हमारे पास, वो दीं. जब उन्हें राहत महसूस हुई तब हमने ड्राइवर से गाड़ी स्टार्ट करने को कहा. कसौल में उनके ग्रुप के बाकी लोग उन्हें मिल गए थे. कसौल में हम संध्या होटल पर उतरे. यहां से हमें CHOJ गांव जाना था. इस गांव के लिए हमें पैदल एक किलोमीटर चलकर पार्वती नदी पर बने एक पुल को पार करना था.

हम आगे बढ़ने लगे. कसौल में वैसे तो हमें कुछ खास दिखा नहीं. बस मार्केट ही नजर आईं. लेकिन जब रात को वापस यहां आए तो कसौल के रंग में लिपटी कई कहानियों को भी हमने ढूंढ निकाला. इस कहानी पर ही हमारा यूट्यूब पर वीडियो भी है, आप ज़रूर देखें. कसौल यात्रा की सीरीज के तीसरे ब्लॉग में आप पढ़ेंगे CHOJ गांव और छलाल ट्रैक के सफर को. आपकी ट्रिप को आसान करने में ये ब्लॉग बेहद काम का है. मिलते हैं अगले ब्लॉग में, अपना ध्यान रखिएगा, कीप ट्रैवलिंग, गुड बाय

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