Damoh Waterfall Sarmathura (Dholpur) : दमोह झरना (Damoh Waterfall Sirmathura) राजस्थान के धौलपुर में स्थित है. ये झरना राजस्थान में धौलपुर जिले की सरमथुरा तहसील (Sarmathura Tehsil of Dholpur) में है. मैंने अभी तक ऋषिकेश का पटना वाटरफॉल (Patna Waterfall in Rishikesh), मेघालय के चेरापूंजी में नॉहकालिकाई वॉटरफॉल (Nohkalikai Waterfall in Cherrapunji) सहित दूसरे कुछ वॉटरफॉल देखे थे लेकिन सरमथुरा में स्थित दमोह झरने की यात्रा पहले के सभी झरनों की यात्रा से ज्यादा मुश्किल और रोमांचकारी थी. मैंने पिछले ब्लॉग में सरमथुरा के दमोह झरने तक पहुंचने की अपनी यात्रा के बारे में आपको बताया था. इस ब्लॉग में आप जानेंगे कि दमोह झरने पर पहुंचने के बाद मैं किस तरह वहां तक गया (Damoh Waterfall Sirmathura) और फिर वापस आया.
दमोह झरने तक की रोमांचकारी यात्रा ने मुझे थकाकर चूर कर दिया था. हालांकि ये थकावट शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक थी. जब हम दमोह झरने (Damoh Waterfall) के नजदीक पहुंचे, तो दूर तक जंगह ही जंगल दिखाई दे रहे थे.
सरमथुरा के जंगल में हमें वह कबीला मिला था जो दूर दूर से भेड़ और बकरियों को चराने के लिए इन्हीं जंगलों में भटकता रहता है. इनके शिकारी कुत्तों से सावधान रहने की जरूरत होती है. हालांकि ये उन्हें बांधकर रखते हैं लेकिन फिर भी आपको जैसे ही इस कबीले की आहट मिले, शोर मचाकर कुत्तों के बारे में जरूर जान लें.
दमोह झरने का ट्रेक शुरू हुआ उस जगह से जहां हमें ये कबीला मिला था. इस कबीले ने पास में बह रही पानी की धारा से अपना मटका भर लिया था. इन्हीं का पानी पीकर हमने प्यास बुझाई. दमोह झरने के बारे में एक बात जो मैंने नोटिस की, वह ये कि पानी की जो धारा इसे झरना बनाती है, वह पीछे एक बैराज से आती है.
बैराज में पानी काफी वक्त रुके रहने के बाद ओवरफ्लो होने की वजह से बहता है और इस वजह से दमोह झरने का पानी कोई ताजा पानी नहीं था. वह ऐसा पानी था जिसमें काई जमी थी. उसमें ताजगी नहीं थी. हालांकि जब ये पानी दमोह झरने से नीचे गिरता है, तो उसकी खूबसूरती के आगे सबकुछ फीका हो जाता है.
अब तक मैं जिन भी झरनों पर गया था, वहां का पानी फ्रेश था.
हम कुछ मीटर आगे बढ़े तो यही बैराज दिखाई दिया. सोचा कि वापसी में यहां आएंगे और तस्वीरें खिंचवाएंगे. यह ऐसा था कि आपने अक्सर ही किसी म्यूजिक वीडियो या फिल्म में ऐसा नजारा जरूर देखा होगा.
बैराज से आगे बढ़े तो एक वाचटॉवर आया. ये ऐसा था कि इसमें जानवरों के मल भरे हुए थे. ऐसा लगा कि इसके बनने के बाद से इसमें कोई आया ही न हो. हम संभलकर सबसे ऊंचाई वाले हिस्से में गए. सीढ़िया बेहद संकरी और खतरनाक मालूम हो रही थी. ऊपर से पूरा जंगल दिखाई दिया. हालांकि, ज्यादा कुछ मजा नहीं आया. संभलते संभलते चढ़े और संभलते संभलते उतर भी आए.
हां, यहां एक बात हम बताना भूल गए. हमें यूट्यूबर की एक और जोड़ी इस सफर में मिली थी. ये हमें वहीं मिले जहां भेड़-बकरी चराने वाला कबीला मिला था. ये दो लोग आगरा से बाइक से वहां तक आए थे. कमाल की बात है.
अब तक हम जहां चल रहे थे वह एक तरह से सपाट मैदान ही था. लेकिन जब हम उस जगह पहुंचे जहां से दमोह झरने के लिए नीचे रास्ता जाता है, वहां उतरकर जाने के लिए हिम्मत जवाब दे गई. ऐसा इसलिए क्योंकि बड़े बड़े पत्थर रास्ते भर बिखरे हैं, अगर जरा भी पैर फिसला तो खैर नहीं. सिर पर थकावट हावी थी और ये रास्ता हिम्मत तोड़ चुका था.
हालांकि, जब वासु, देवेंद्र भाई और बबलू भैया ने कहा, तो मेरी ना हां में बदल गई. रास्ते में कभी जयकारे लगाते तो कभी गीत गाते… हम बढ़ते रहे… पत्थरों का रास्ता जब थोड़ा खत्म हुआ तो रेतीली धरती आई. यहां ऊपर पहाड़ी ऐसी थी कि मानों किसी अरब देश में आ गए हों. देवेंद्र भैया तो नंगे पांव थे. मैंने चिल्लाकर कहा- भैया मान गए आपको…
वह नंगे पांव, कंधे पर गमछा डाले बड़े प्यार से चले जा रहे थे.
इस रेतीली जमीन के बाद वह पल आया जब झरना कुछ ही दूरी पर था लेकिन इसके लिए भी बेहद सावधानी से पत्थरों से होकर नीचे जाना था. यहां ट्रेक का असल इम्तिहान है. सांस मानों अटक सी गई थी. एक एक करके हम सब नीचे उतरे.
दमोह झरने पर सिर्फ हम लोग ही थे. दूसरा कोई नहीं था. झरने की फुहारों ने वहां पहुंचते ही हर तकलीफ दूर कर दी थी. ऐसा लगा कि आने से पहले हम कोई और थे और अब कोई और… मजेदार तस्वीरें क्लिक कीं, खूब देर तक इंजॉय किया… हमें बताया गया कि दमोह झरने पर पहले डकैत रहा करते थे. वह यहीं नहाते थे.
झरने पर हम लगभग 45 मिनट रुके. फिर चल दिए वापस… वापसी में एक मिस कम्युनिकेशन हो गया. झरने वाले रास्ते से ऊपर आकर हमें उसी रास्ते आगे जाना था जहां से आए थे. वाचटॉवर होते हुए. हालांकि देवेंद्र भैया क्योंकि सबसे आगे थे तो वह बाएं मुड़कर दूसरा रास्ता लेकर चलने लगे.
उनसे बात हो नहीं सकी तो हम सब उन्हीं के पीछे पीछे चल दिए. हमें लगा वहां कुछ और दिलचस्प होगा. झरने को देखकर वैसे भी हम हाई एक्सपेक्टेड हो चुके थे. हमें कतई उम्मीद नहीं थी कि बंजर जंगल में ऐसा खूबसूरत झरना हो सकता है.
देवेंद्र भैया के पीछे पीछे हम चले लेकिन रास्ते में पानी की धार आई. उसे पार करते हुए वासु भाई साहब फिसल गए. गनीमत ये रही कि घुटने या कोहनी में चोट नहीं आई. वर्ना मामला और भी खराब हो सकता था.
वासु ने वहीं अपने कपड़े धोए और गमछा पहनकर गाड़ी तक पहुंचा. गाड़ी में से दूसरे कपड़े पहनकर उसने ऐसा माहौल कर दिया मानों कोई नदी नहाकर आया हो. यहां एक बार फिर वही कबीला मिला जो जाते वक्त मिला था.
हां, दूर से देवेंद्र भैया ने चिल्लाकर इनसे कुत्तों के बारे में पूछ लिया था. कुत्ते बंधे हुए थे और सो रहे थे.
अब हम चल दिए सफर में आगे… आपको ये ब्लॉग कैसा लगा हमें जरूर बताएं. ऐसे ही ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट www.TravelJunoon.com को फॉलो करें और अगर आप हमारे दिलचस्प वीडियो देखना चाहते हैं, तो हमारे Youtube Channel, Travel Junoon को सब्सक्राइब जरूर करें.
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