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Chandni Chowk Tour Vlog: दिगम्बर जैन मंदिर से शीशगंज गुरुद्वारा तक, चाँदनी चौक यात्रा का ब्लॉग

Chandni Chowk Tour Vlog: क्रिसमस पर हम बच्चों के साथ Chandni Chowk घूमने गए थे. वहां पर हम Shri Digambar Jain Lal Mandir, Central Baptist Church और Sheeshganj Gurudwara गए. इसी बीच Chandni Chowk में मेला लगा था हमलोग वहां भी गए. आइए दोस्तों आपको बताते हैं हमने अपने यात्रा की शुरुआत कैसे की…

नमस्कार दोस्तों, Christmas की छुट्टी के दिन हम चल दिये थे Chandni Chowk  घूमने. हमारी जर्नी की शुरुआत हुई मेट्रो से. फैमिली के साथ Metro में बैठे और पहुंच गए Red fort Metro Station. वैसे इस स्टेशन का ऑफिशियल नेम Lal Quila ही है. हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में. Red Fort Metro Station  के बगल में लगा था मेला, मेले में कई कलर्स दिखाई दिए, बच्चों के झूले, बड़ों के झूले, मिठाईयां, निशानेबाजी, फोटोग्राफी, एटसैक्ट्रा, एटसैक्ट्रा. हम कहां मिस करने वाले थे ये मोमेंट. झटपट कर ली झूले की सवारी.झूले की राइड पर खर्च हुए 60 रुपए पर पर्सन, और तीन लोगों के 180 रुपए. झूला झूलकर Metro Station के अंडरपास से रोड को क्रॉस किया, गेट नंबर चार से गए, और गेट नंबर एक से बाहर आ गए. बाहर आकर पहुंच गए Shri Digambar Jain Lal Mandir.

मंदिर की वाइब्स बहुत पॉजिटिव थी. Shri Digambar Jain Lal Mandir 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है. ये Delhi  का सबसे पुराना Jain Mandir है, इसे लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. बात करें मंदिर की हिस्ट्री की, तो बता दूं कि Mughal Emperor Shah Jahan ने कई अग्रवाल और जैन व्यापारियों को शहर में आने और बसने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें दरीबा गली के आसपास Chandni Chowk के दक्षिण में कुछ जमीन दी है. हिस्ट्री कहती है कि मुगल सेना के एक जैन ऑफिसर ने पूजा करने के लिए अपने तंबू में एक तीर्थंकर की मूर्ति रखी थी. वंही इस तम्बू ने धीरे-धीरे Mughal Court से जुड़े जैन अफसरों और अधिकारियों को आकर्षित करना शुरू कर दिया था. इसके बाद 1656 में यहां एक Jain Mandir का निर्माण किया गया था. उस समय मंदिर को उर्दू मंदिर या Lashkari Temple के रूप में जाना जाता था.

मंदिर में एक प्रसिद्ध Bird Hospital भी है, यहां हर साल लगभग 15,000 बर्ड्स का इलाज करता है. जैन मंदिर से आकर खाए राम लड्डू. मूंग और चना दाल से बनने वाले राम लड्डू खाने में बहुत टेस्टी लगते हैं. इसपर खर्च हुए 30 रुपए.

क्या आप जानते हैं Chandni Chowk क्यों बनाया गया था. दोस्तों,Mughal Emperor Shah Jahan की बेटी Jahanara को शॉपिंग का बहुत शौक था. वो देश-विदेश के अलग-अलग बाजारों से शॉपिंग करती थीं. Shahjahan ने जब ये शहर बनाया, तब अपनी बेटी का खास ख्याल रखते हुए ये बाजार भी बनाया, ताकि यहां जहांआरा को सारा सामान मिल जाए.

इसे Chandni Chowk क्यों कहा जाता है, ये स्टोरी भी बहुत इंट्रैस्टिंग है. Chandni Chowk  बाजार उस दौर 40 गज से ज्यादा चौड़ा और 1520 गज में फैला हुआ था. इसका डिजाइन इस तरह बनाया गया था कि बीच में Yamuna River के पानी से भरा एक तालाब जैसी आकृति वाला हिस्सा था, यहां चांद की रोशनी चमकती थी. चांद की इस रोशनी से पूरा बाजार जगमगा उठता था और इसलिए ही इसे चांदनी चौक का नाम दिया गया.

लेकिन आज रात में Chandni Chowk में चांद नहीं चमकता है, चमकती है तो स्ट्रीट लाइट्स. बाजार तो अब पूरी तरह बदल ही चुका है. यहां खाने के एक से बढ़कर एक आइटम्स हैं. इन्हीं फूड ऑप्शंस में से एक है यहां की जलेबी. अब Chandni Chowk आएं और यहां की फेमस जलेबी न खाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. जब आप इसे खरीदेंगे, तो मन में पहला सवाल आएगा जलेबी है या जलेबा. इनका साइज़ ही है इतना बड़ा. ये दुकान Dariba Kalan Road के कॉर्नर पर है और यहां पर साल 1884 से है. चाहे सिंपल खाएं या रबड़ी के साथ, ये टेस्ट आप कभी नहीं भूलेंगे. एक सादी जलेबी होती है लगभग 100 ग्राम वजन की, जिसकी कीमत है 60 रुपए, जबकि रबड़ी के साथ इसकी कीमत है 100 रुपए. दुकान पर आलू और मटर के समोसे बिकते हैं, जिनका रेट 25 रुपए है।

जलेबी खाकर जी भर गया था, और हम चल दिए थे Central Baptist Church.

Central Baptist Church  साल 1860 में बनाया गया था. 1814 में, मिशनरी जे.टी. थॉम्पसन ने मुगल सम्राट अकबर शाह द्वितीय से दरियागंज में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और पहला evangelist चर्च बनाया. हम यहां कुछ देर रुके, अंदर की उर्दू लिखावट ने हमारा ध्यान खींचा. यहां Christmas treeलगाया हुआ था, डेकोरेशन भी कमाल की थी. हम यहां कुछ देर रुके और फिर चल दिए आगे…

रास्ते में दौलत की चाट दिखाई दी. यूं तो चाट का नाम आते ही चटपटी चीज का ख्याल आता है लेकिन असल में ये एक स्वीट डिश है. इस डिश को बनाने के लिए मलाईदार गाढ़े दूध को मथा जाता है और मथते वक्त इसमें से जो झाग निकलता है उसे एक कटोरे में रखा जाता है. इस पर हल्के रंग और स्वाद के लिए केसर वाले दूध के झाग के कुछ लेयर्स चढ़ाए जाते हैं. सर्व करने से पहले इस पर चुटकी भर चीनी छिड़की जाती है. इसे सर्दियों की रात में बनाया जाता है.

अब हम आ पहुंचे Bangla sahib पर. Gurdwara Sheesh Ganj Sahib Delhi में मौजूद नौ ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है. Gurdwara Sheesh Ganj Sahib Old Delhi के Chandni Chowk  में स्थित है. साल 1783 में Baghel Singh ने नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर जी की शहादत स्थल पर इसका निर्माण किया था. बात करें इस गुरुद्वारे की तो Aurangzeb के शासन में, उससे डरे कश्मीरी पंडित सिखों के नौवें गुरु ‘Guru Tegh Bahadur Ji’ के पास पहुंचे थे. तेग बहादुर जी, तब अपने परिवार के साथ आनंदपुर साहिब में रहते थे.

कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए गुरु उठ खड़े हुए. वे दिल्ली आए और धर्म न बदलने पर अड़ गए. 11 नवंबर 1675 को उन्हें दिल्ली में इसी जगह पर शिष्यों संग शहीद कर दिया गया, जहां आज शीशगंज गुरुद्वारा है.

औरंगजेब ने Guru Tegh Bahadurका शरीर सार्वजनिक ना किये जाने का आदेश दिया था. जब Guru Tegh Bahadur के शरीर को देने से मना किया गया तो उनके एक चेले लखी शाह वंजारा ने अंधेरे की आड़ में गुरु के शव को चोरी कर लिया.

गुरु के शव को दाह संस्कार करने के लिए उसने अपने घर को जला दिया. जहां ये अंतेष्टि हुई, वो जगह आज Gurdwara Rakab Ganj Sahibके रूप में मशहूर है.

गुरू तेग बहादुर के कटे हुए सिर को उनका एक चेला जैता आनंदपुर साहिब लेकर आए. वहां पर गुरू तेग बहादुर के छोटे बेटे, गुरु गोबिंद राय ने शीश का अंतिम संस्कार किया. आनंदपुर साहब में इस जगह भी गुरुद्वारा बनाया गया.

Sheeshganj Gurudwara में हमने शबद कीर्तन सुना. फिर लंगर भी चखा.

Sheeshganj Gurudwara में स्टे के लिए रूम भी मिलते हैं. एसी नॉन एसी कमरे यहां अवेलेबल रहते हैं. एसी और नॉन एसी रूम आप अपने हिसाब से बुक कर सकते हैं.

Sheeshganj Gurudwara से बाहर आए, तो बाहर शाम हो चुकी थी. हमने एक रिक्शा किया और चल दिए वापस मेट्रो स्टेशन की ओर. अब हम उसी रास्ते से वापस घर लौट आए, जिस रास्ते से गए थे. दोस्तों आपको ये आर्टिकल कैसा लगा हमें जरूर बताएं. ऐसे ही आर्टिकल के लिए पढ़ते रहें, ट्रैवल जुनून.

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