Best Places to visit in Mahoba : महोबा उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर है. इस शहर में वीरों ने जन्म लिया है. रानी दुर्गावती, आल्हा-ऊदल इसी मिट्टी में पैदा हुए. वीरता इस धरती के कण कण में है. महोबा को जानने के लिए आपको इसकी मिट्टी को जानना होगा. महोबा की मिट्टी के इसी झरोखे को जानने के लिए हम निकल पड़े थे इस शहर में…
इस ब्लॉग में हम आपको महोबा की न सिर्फ ऐसी जगहों के बारे में बताएंगे जहां आप घूम सकते हैं बल्कि आपको उन भावों से भी परिचित कराउंगा जो मैंने यहां महसूस किया.
हम जिन स्थलों की आपको जानकारी दे रहे हैं, वे सभी आप एक दिन में घूम सकते हैं. हमने इन सभी स्थलों की यात्रा एक ही दिन में की और यकीन मानिए महोबा ने हमारे मन को मोह लिया.
आइए चलते हैं बुंदेलखंड की पावन और वीर धरती महोबा के दिलचस्प सफर पर…
छतरपुर से महोबा आते ही सबसे पहले मन में सवाल था कि क्या करें, और कहां घूमें? होटल का पता किया था तो मालूम हुआ कि आल्हा चौक (Alha Chowk) के पास कुछ होटल मिल जाते हैं. हम आल्हा चौक पहुंच गए. बस स्टैंड से 20 रुपये देकर शेयर्ड ऑटो से हम दो दोस्त आल्हा चौक पहुंच गए.
आल्हा चौक उतरकर सबसे पहले कुछ मिनट हाथी पर सवार आल्हा की प्रतिमा को देखते रहे. कमाल की मूर्ति बनी है चौक के बीचों बीच. बगल में ही होटल था.
वहां गए और पूछा कि सामान रखने का कितना लेंगे? उन्होंने कहा कि सामान का कोई पैसा नहीं लगेगा. कमाल के लोग होते हैं न ऐसे शहरों में?
दिल्ली जैसे शहरों में अगर हम ये गलती कर देते तो जेब जरूर ढीली हो जाती.
हालांकि हमारी दिमाग की बत्ती कुछ देर बाद जली, जब हमने शहर घूमने के लिए ऑटो बुक किया. हम उस ऑटो में भी अपना सामान रख सकते थे.
न होटल वाले भाई साहब को तकलीफ होती और न ही हमें.
खैर, सामान रखने के बाद हमने ऑटो बुक किया. कुल 700 में शहर घुमाने की बात हुई.
महोबा के ही एक दोस्त से पता किया तो पता चला कि शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है बेलाताल का किला (Belatal Fort).
यहीं से शुरू हुई थी बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी.
मन में चाहत तो बहुत जगी लेकिन ऑटो वाले भैया मिन्नतों के बाद भी राजी न हुए. अब शहर का दौरा शुरू हुआ…
हमने भाई साहब से कहा था कि एक मंदिर है जहां आल्हा ने अपनी तलवार टेढ़ी कर दी थी और उसके बाद कभी युद्ध नहीं लड़ा.
एक जैन मंदिर के बारे में भी बताया.
हमें जितनी जानकारी मिली थी, वही बताते रहे और वह ऐसे कमाल के थे कि ऑटो स्टार्ट करते ही बाजार के बीचों बीच मंदिर के सामने ले गए.
बोले यही है देवी मां का प्रचलित मंदिर. देखकर ही मैंने सोचा ये मंदिर नहीं हो सकता. फिर सर्च किया तो पता चला कि वह दूसरे जिले में है.
अब थोड़ा ज्ञान हमने भी लिया और थोड़ा ज्ञान ऑटो वाले भाई साहब को दिया. उनकी भी दिमाग की बत्ती जल उठी.
सबसे पहले सवारी पहुंची कीरत सागर पर, जहां पृथ्वी राज चौहान और आल्हा उदल के बीच भीषण जंग हुई थी.
कीरत सागर पहुंचते ही हम पहली नजर में तो इसकी खूबसूरती में खो गए.
यहां पढ़ाई करते कई बच्चे दिखाई दिए लेकिन जब हमने इसका इतिहास जाना तो खुद को खुशकिस्मत समझने लगे.
यही वो जगह है जहां में पृथ्वी राज चौहान और आल्हा-उदल के बीच भीषण लड़ाई हुई थी.
मामला ये था कि दिल्ली नरेश पृथ्वी राज चौहान महोबा के राजा परमल देव की बेटी थीं चंद्रकला. पृथ्वी राज चौहान चंद्रकला का विवाह अपने बेटे के साथ करना चाहते थे.
इसी जिद में उन्होंने महोबा पर चढ़ाई कर दी. तब आल्हा उदल कन्नौज में थे.
राजा परमल देव से विवाद के बाद वह दूसरे राज्य चले गए थे लेकिन बात चंद्रकला की आन की आई तो वह चले आए युद्ध करने. चंद्रकला को दोनों बहन मानते थे.
युद्ध में उदल को शहादत प्राप्त हुई थी.
कई जगह उल्लेख है कि कीरत सागर की लड़ाई में पृथ्वी राज चौहान के पुत्र भी वीरगति को प्राप्त हुए थे.
उदल की शहादत की खबर जैसे ही भाई आल्हा को मिली, वह कहर बनकर पृथ्वी राज चौहान की सेना पर टूट पड़े थे और उसे शिकस्त दी थी.
गुरू के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान के प्राण बख्श दिए थे और हमेशा के लिए युद्ध और सेनापति का पद छोड़ दिया था. भाई की मौत से वह टूट चुके थे.
बाग में, आल्हा ने नाथ संप्रदाय को कबूल कर लिया था.
इस युद्ध की वजह से चंद्रकला का डोला रुक गया था इसलिए यहां वो भाइयों (आल्हा उदल) को राखी नहीं बांध सकी थी. लिहाजा, महोबा में हमेशा रक्षाबंधन का पर्व एक दिन बाद मनाया जाता है.
कीरत सागर पर ही हर साल रक्षाबंधन पर कजली मेला लगता है.
इसमें कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. आल्हा उदल की वीरता के गीत गाए जाते हैं.
मुझे यहां आकर जब ये इतिहास पता चला तो मैं सोचने लग गया कि दो वीर पृथ्वी राज चौहान और आल्हा अगर मिलकर आक्रांताओं से लड़ते तो कभी भारत पर कोई हमला न कर पाता लेकिन अफसोस इतिहास वैसा नहीं है, जैसा हम इसे चाहते हैं.
कीरत सागर के कोने पर ही बनी हुई है ताल्हा सैयद और झल्लन खां की मजार. हालांकि इसके लिए आपको पहाड़ी के ऊपर जाना होता है, जो थोड़ी ऊंचाई पर है.
वाराणसी के रहने वाले ताल्हा सैयद आल्हा-ऊदल के पिता दस्सराज व चाचा बच्छराज के मित्र थे और आल्हा के शस्त्र गुरू भी थे.
12वीं शताब्दी में कोंच के पास बैरागढ़ की लड़ाई में इन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी.
आल्हा ने गुरू ताल्हा सैयद का शव बैरागढ़ से लाकर यहां दफनाया था.
कन्नौज के राजा जयचंद की सेना में नियुक्त रहे झल्लन खां भी वीरगति को प्राप्त हुए थे, जो यहां दफनाए गए थे.
आपको यहां पर चढ़ाई के दौरान अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है.
पहाड़ी छोटी है लेकिन व्यवस्थित रास्ता न होने की वजह से खतरनाक हो सकता है.
रामकुंड महोबा का बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व वाला तीर्थक्षेत्र है.
यह एक मंदिर का विशाल प्रांगण है जिसमें कुंड है. कहा जाता है कि वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम यहां आए थे और कुंड में ही उन्होंने यज्ञ किया था.
इसी प्रांगण में एक 900 वर्ष पुराना बरगद का वृक्ष भी है.
हमें यहां वह कुंड दिखाई दिया जहां श्रीराम ने यज्ञ किया था. इस कुंड में बारिश का पानी भी स्वच्छ नजर आया. बच्चे इसमें नहा रहे थे.
आगे बढ़े तो कई छोटे छोटे शिवलिंग दिखाई दिए. मंदिर के महंत अनिल गिरी ने बताया कि ये शिवलिंग यहां के महंतों की समाधि पर बने हैं.
मंदिर प्रांगण में ही एक नया मंदिर बना है. इसमें शिवलिंग हैं और 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रतिबिंब भी बनाए गए हैं.
यहां प्रवेश करते ही जो शीतलता मिली उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
मन मस्तिष्क शांत हो गया और सकारात्मक ऊर्जा से भर गया. कमाल की जगह.
यहां कुछ पल मैं शांति से बैठा रहा और शिवलिंग को एकटक देखता रहा.
पूरा प्रांगण बेहद शांत और सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ है. मैं यहां से एक ऊर्जा लेकर निकला.
रामकुंड से निकलते ही सामने एक बड़ा प्रवेश द्वार है. यहां से सीढ़ियां पर्वत के शिखर तक जाती हैं.
पर्वत पर मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. हम समय के अभाव की वजह से वहां तक नहीं जा सके. हालांकि आप आएं तो जरूर जाएं.
उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर महोबा में सूर्य मंदिर राहिला सागर के पश्चिम में है.
महोबा में जितने भी चंदेल राजा हुए सभी ने लगभग अपने शासनकाल में एक सागर यानी तालाब बनवाया है.
ये सूर्य मंदिर रहीलिया सागर के किनारे स्थित है. इसे राहिल देव बर्मन ने 890-910 ईस्वी के बीच बनवाया था.
सूर्य मंदिर का निर्माण चंदेल शासक राहिल देव वर्मन ने तालाब को खुदवाकर किया.
इस मंदिर की वास्तुकला काफी खूबसूरत है. इस मंदिर को 1203 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारी नुकसान पहुंचाया था.
इस मंदिर को जिस तरह बनाया गया था, उसमें गर्भगृह में मौजूद सूर्य की प्रतिमा पर सीधा सूर्य की पहली किरण पहुंचती थी.
आज मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में है. इसके गर्भगृह में सूर्य देवता की प्रतिमा भी नहीं है. यह चोरी हो चुकी है.
मंदिर के अंदर दरारें आ चुकी हैं और इसे गिरने से बचाने के लिए अंदर कई निर्माण किए गए हैं.
हालांकि मंदिर की भव्यता आज भी आपको भारतीय इतिहास के स्वर्णिम दौर की झलक दिखाती है.
मंदिर के पास ही एक काली मां का मंदिर है. काली मां के मंदिर के प्रांगण में एक कुंड भी है.
यह भी उसी काल का है जब सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया था. यहां ASI के गार्ड बृजलाल जी ने हमें पूरा परिसर घुमाया और एक एक बात बताई.
महोबा रेलवे स्टेशन से रहीलिया सूर्य मंदिर की कुल दूरी लगभग 6 किलोमीटर की है.
चंदेल शासनकाल की ये ऐतिहासिक जगह मदन सागर के किनारे स्थित है.
इसे राजा मदन वर्मन (1128-1164 AD) ने बनवाया था. मदन सागर के बीच से एक आर्टिफिशियल रास्ता तैयार किया गया है, जो आपका खखरामठ तक लेकर जाता है.
हालांकि पानी कम होने की वजह से इसे बंद कर दिया गया है.
पानी कम होने की वजह से ये सागर में ऊपर नहीं तैर पाता है और ज्यादा लोगों के आने की वजह से इसके टूटने का खतरा भी है.
मदन सागर के बीचोंबीच बने खखरामठ में एक आपराधिक घटना भी हो गई थी.
इसके बाद यहां आम लोगों की एंट्री बंद है. हालांकि यहां तैनात पुलिसकर्मी को जब पता चला कि हम दिल्ली से आए हैं, तो वह हमें रास्ता खोलकर घुमाने ले गए.
जब हम झील के ऊपर बने रास्ते से गुजर रहे थे तो मानों वह चरमरा रहा था. उसकी आवाजें डरा रही थी.
झील के किनारे से खखरामठ तक जाने का कोई व्यवस्थित रास्ता भी नहीं है. अंदर चमगादड़ों के मल हर तरफ बिखरे हुए थे.
मठ टूटा हुआ था. इसे देखकर मुझे मुरैना के करनमठ की याद आ गई.
वह भी इसी तरह बनाया गया है. हालांकि, दोनों की शैली में काफी फर्क है.
खखरामठ के बराबर में ही एक टीला है. झील बीच से होकर गुजरती है.
टीले पर विशाल पत्थर रखे हुए हैं. कुछ हाथियों के आकार के भी हैं. लोग कहते हैं कि यह हाथी असली थी और बाद में पत्थर के बन गए.
हालांकि हमें ये बात सिर्फ अफवाह ही लगी.
खखरामठ घूमकर हमने पुलिसकर्मी का धन्यवाद किया. खखरामठ में जाने से पहले हम मदन सागर में बोटिंग कर चुके थे.
बोटिंग का किराया 30 रुपये प्रति व्यक्ति है. यह सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक की जा सकती है.
महोबा रेलवे स्टेशन से खखरामठ की दूरी लगभग 4 किलोमीटर की है.
महोबा में ही आपको छोटी चंद्रिका और बड़ी चंद्रिका का मंदिर मिलता है.
बड़ी चंद्रिका मंदिर का यहां विशेष महत्व है. चंद्रिका देवी या चंडी देवी आल्हा ऊदल की कुल देवी थी.
युद्ध में जाने से पहले वे यहां पूजा जरूर करते थे.
बड़ी चंद्रिका मंदिर के आसपास तब घना जंगल हुआ करता था.
यहां एक स्तंभ है जिसपर आल्हा ऊदल मां की आराधना करके दीया जलाते थे. दीया घने जंगल में रातभर जलता था.
ऐसा कहा जाता है कि ये देवी की ही महिमा थी कि आल्हा युद्ध में हारते नहीं थे.
महोबा की बुंदेली धरती पर न सिर्फ हिंदू बल्कि जैन और बौद्ध धर्म से जुड़े स्थल भी मौजूद हैं.
छोटी पहाड़ी के पवित्र स्थान पर ये तीर्थ स्थल है. ये मठ 12वीं सदी में बनवाया गया था. कभी यहां वैभवशाली मठ हुआ करता था.
अपने वैभवकाल में यह स्तंभों, अप्सराओं से युक्त था. यहां आज भी कई प्राचीन शिलाएं और स्तंभ दिखाई देते हैं लेकिन सबसे दिलचस्प है पहाड़ी को खोदकर बनाए गए जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं.
ये किसी अजूबे की तरह लगता है.
कंठेश्वर महादेव मंदिर, 24 जैन तीर्थंकरों की शिलोत्कीर्ण प्रतिमा स्थल के बगल में ही स्थित है.
यहां पहाड़ में प्राचीन शिव मंदिर है. हालांकि जब हम यहां पहुंचे तो पंडितों का बर्ताव अच्छा नहीं लगा.
वे सभी बाहर के कुछ लोगों के साथ गांजे के नशे में टुन्न थे.
उन्होंने हमसे भोजन के लिए जबर्दस्ती की. मैंने इनकार किया तो लड़खड़ाती जुबान में एक शख्स धमकाने भी लगे.
मन में सवाल आया कि अभी तो आशुतोष मेरे साथ थे तो थोड़ी हिम्मत बंध गई लेकिन अकेले होता तो क्या होता? खैर आप भी आएं तो संभलकर ही आएं.
शिव तांडव महोबा में गजांतक शिव प्रतिमा है.
गजासुर के वध के बाद शिव के नृत्य को दर्शाती प्रतिमा शिवतांडव नाम से बेहद प्रसिद्ध है. ग्रेनाइट शिला पर उत्कीर्ण विशाल शिव प्रतिमा 10वीं शताब्दी से पहले की है.
शिव की इस प्रतिमा में उनके हाथों में कई अस्त्र व वस्तुएं हैं.
मूर्ति के ऊपर भाग में शिवलिंग व स्मार्तलिंग हैं. यह कलेक्टरेट महोबा के पास स्थित है.
मंदिर के बगल में ही एक झरना है, जिससे दूधिया सफेद पानी गिरता है. यह पानी गोरख पर्वत से नीचे आता है.
गोरख पर्वत की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि गुरू गोरखनाथ ने यहां तपस्या की थी.
हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां विकास कार्यों की शिलान्यास किया है.
गोरख पर्वत पर भारी चट्टानें देखी. ये चट्टाने ऐसे रखी हुई थी जैसे सदियों पहले इन्हें किसी ने यहां रखा हो.
हालांकि ये मुमकिन नहीं. प्रकृति ने खुद ही इन्हें ये आकार दे दिया है.
यहां कई व्यू पॉइंट बनाए गए हैं जहां खड़े होकर आप सुंदर घाटी का नजारा ले सकते हैं.
यह एक पक्षी विहार एक बर्ड सैंक्चुरी है जो विजय सागर के किनारे पर स्थित है.
इसे चंदेल शासक विजय पाल चंदेला ने बनवाया था. 11वीं सदी में ये झील निर्मित की गई थी.
यह बर्ड सैंक्चुरी सिटी से 5 किमी दूर है. यहां आप विशाल झील देखते हैं, पक्षियों की कई प्रजातियां आपको दिखाई देती हैं.
जब हम गए तब कोविड की वजह से बोटिंग बंद थी.
इस बर्ड सैंक्चुरी में एक किला भी है. कई झूले हैं, बैठने की भी जगहें हैं.
लेकिन अगर आप यहां पिकनिक का प्लान बनाने की सोच रहे हैं, तो संभलकर रहें.
बंदरों की यहां भरमार है और वह खाने की कोई भी चीज आपके पास रहने नहीं देंगे.
विजय सागर पक्षी विहार की एंट्री टिकट 30 रुपये प्रति व्यक्ति है.
महोबा का ईदगाह मैदान भी एक घूमने लायक जगह है.
ये शहर से कुछ ही दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थित है. यहां एक कुआं भी है.
ईद और बकरीद के मौके पर यहां नमाज अदा की जाती है.
आइए अब जानते हैं कि आप महोबा कैसे पहुंच सकते हैं || How to Reach Mahoba
वायु मार्ग द्वारा- देश के अन्य प्रमुख शहरों से महोबा तक कोई नियमित उड़ान नहीं है.
महोबा से नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो का है. महोबा जनपद खजुराहो हवाई अड्डा, खजुराहो, मध्य प्रदेश से 54 किमी दूरी पर है.
महोबा जिला यूपी के कानपुर हवाई अड्डे से 134 किलोमीटर की दूरी पर है.
महोबा नियमित ट्रेनों के जरिए देश के दूसरे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.
महोबा में महोबा जंक्शन नाम से रेलवे स्टेशन है.
नजदीकी स्टेशनों की बात करें तो झांसी जंक्शन, खजुराहो, बांदा भी हैं.
महोबा, सड़क के रास्ते भी कनेक्टेड है.
बस से जुड़े निकटतम स्थानों में मुख्य छतरपुर-मध्य प्रदेश, नोगांव-मध्य प्रदेश, बांदा, हमीरपुर, कानपुर, हरपालपुर, मउरानीपुर, झांसी, ओरछा-मध्य प्रदेश, बरुआसागर, खजुराहो-मध्य प्रदेश हैं.
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