Aeroplane First Journey : हवाई जहाज मेरे लिए किसी सपने जैसा था. वह एक जादुई मशीन लगती थी. कभी सांय से उड़ जाने वाली, कभी गड़गड़ करती हुई, और कभी चुपचाप ग्लाइडर बनकर चली जाने वाली… बचपन में हिंडन एयरबेस से उड़ान भरने वाले छोटे जहाजों को देखकर हम उनके पीछे यूं दौड़ा करते थे जैसे पकड़ ही लेंगे. हेलीकॉप्टर तो ऐसे उड़ते थे जैसे छत पर ही लैंड कर देंगे. कभी कभी तो हेलीकॉप्टर के पायलट की ड्रेस का कलर भी हम नोट कर लिया करते थे. हेलीकॉप्टर को हाथ हिलाकर सोचते थे कि पायलट हमें जरूर देखता होगा और प्रतिक्रिया देता होगा.
हवाई जहाज की ऊंचाई अधिक होती थी इसलिए उसके साथ ये दौड़भाग वाला रिश्ता नहीं बन सका था. थोड़ा बड़ा हुआ तब एक नई चीज आई. गुड़गांव के रास्ते में इंदिरा गांधी हवाई अड्डा पड़ता था. हवाई अड्डे के अंदर बड़े बड़े जहाज देखकर कभी मेट्रो से सिर झुकाकर और कभी बस में सिर उठाकर उसे निहार लिया करता था. हवाई जहाज के संग बचपन का यह रिश्ता जवानी तक पहुंच गया था लेकिन इसमें सफर (Aeroplane Journey) का अहसास अभी तक नहीं जुड़ सका था.
मैं कई कंपनियों में काम कर चुका हूं. 2017 में भी मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में था. इस कंपनी ने मुंबई में अपने एक नए प्रॉडक्ट की लॉन्चिंग का इवेंट रखा था. कंपनी ने ऑफिस के सभी कर्मचारियों के लिए मुंबई में ग्रैंड पार्टी रखी थी. ऑफिस के सभी लोगों के लिए प्लेन से दिल्ली-मुंबई और मुंबई-दिल्ली की टिकट बुक की गई थी. सभी का स्टे ताज पैलेस में था. हम सभी इसके लिए बेहद एक्साइटेड थे. कंपनी के इस इवेंट को लेकर हमें 5 महीने पहले मई में ही ई-मेल से सूचित किया जा चुका था. पहले तो मुझे ये भ्रामक सी बात लगी लेकिन अक्टूबर में तारीख नजदीक आने के साथ ही अहसास हो गया कि कंपनी इस इवेंट को लेकर कितनी गंभीर है.
इस 2 दिन के सफर के लिए मैंने काफी तैयारी की थी. लेकिन सच कहूं तो पार्टी, 5 स्टार होटल, मुंबई सबसे रोचक मुझे कुछ लग रहा था तो वह था मेरा पहला एयर ट्रैवल. मेरी फ्लाइट रविवार सुबह 9 बजे की थी. इसके लिए मैं 6 बजे ही घर से निकल गया था. दिल्ली में रहकर मैं आज तक एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो लाइन में नहीं बैठा था. इस विशेष मेट्रो में भी मैं उसी दिन बैठा. ये आपको पहले ही यूरोप या किसी विदेशी धरती पर होने का अहसास करा देती है. एयरपोर्ट पहुंचने से पहले ही दफ्तर के साथियों के फोन आने शुरू हो गए. कोई पीछे वाली मेट्रो में था तो कोई एयरोसिटी पहुंचकर इंतजार कर रहा था. किसी ने तो चेक-इन भी कर लिया था.
मैं एयरोसिटी उतरा. यहां से बस ली और एयरपोर्ट पहुंचा. वहां पर सीआईएसएफ को आईडी दिखाकर एंट्री ली और फिर दोस्तों संग चेक-इन के लिए लाइन में लग गया. मैंने महसूस किया कि आसपास कई ऐसे लोग थे जो मेरी ही तरह पहली बार हवाई जहाज में यात्रा कर रहे थे. वे सभी मेरी ही कंपनी के थे. हालांकि, मेरी मुलाकात उनसे कभी नहीं हुई थी. कई लोग सेल्फियां खिंचवा रहे थे. कुछ तो अपने घर पर वीडियो कॉल कर एयरपोर्ट का दर्शन भी करा रहे थे. मैं चेक-इन के बाद बोर्डिंग पॉइंट पर पहुंच गया था. यहां से एयरपोर्ट भी दिखाई दे रहा था और वो जहाज भी जिन्हें चिड़िया के रूप में देखकर ही मैं एक्साइटेड हो जाता था.
एयरलाइन की बस में बैठकर हम सभी एयरोप्लेन में बैठने के लिए निकले. यहां मैंने देखा कि लोग कई कई फोटो खींचे जा रहे थे. शायद कुछ लोग फेसबुक लाइव भी कर रहे थे. ये सभी लोग दिखने में आम लोग ही थे. हालांकि भारत में अब प्लेन का सफर उतना महंगा नहीं रह गया है लेकिन एक मध्यवर्गीय परिवार अभी भी कम खर्च वाले विकल्प ट्रेन या बस को ही तरजीह देता है. मैं जैसे जैसे फोटो खींच रहे लोगों को देखे जा रहा था, कंपनी के लिए मेरे ह्रदय से शुक्रिया के शब्द फूट रहे थे. मैंने प्लेन में बोर्ड किया. मैं प्लेन की सीट को, उसके हर हिस्से को, फर्श को ध्यान से देख रहा था. यहां तक कि एयरहोस्टेस को भी.
मुझे सबसे पिछली सीट मिली थी. हां, गनीमत ये रही थी कि दोस्त के कहने पर मैंने विंडो सीट चुनी थी और जो एकमात्र पिछली सीट पर थी. विंडो सीट पर पहले से ही दो लोग बैठकर बाहर झांक रहे थे. मेरे आने पर वह दोनों अपनी बाकी सीटों पर आ गए. अब मैं भी विंडो सीट पर बैठकर उन्हीं की तरह बाहर झांकने लगा. प्लेन के उड़ान भरने का समय हुआ. प्लेन रनवे तक आया. कुछ देर इंतजार किया और फिर तेज गति से चलता हुआ हवा में उड़ने लगा. ऐसे लगा मानों किसी ने जोर का लॉन्ग जंप मार दिया हो.
प्लेन में सभी लोग हमारी ही कंपनी की अलग अलग ब्रांच के थे. मैं खिड़की से बाहर देखने में इतना मशगूल था कि अंदर होने वाली घोषणाओं पर भी ध्यान नहीं दे पा रहा था. मैंने खिड़की से दूर नीचे उन घरों के झुरमुटों को देखा जो शायद बड़े बड़े शहर थे. बड़ी बड़ी नदियां मुझे किसी नाले की तरह दिखाई दे रही थीं. एक जंगल तो इतना घना दिखाई दिया जिसका अंत ही मुझे नजर नहीं आ रहा था. मैंने सोचा जब प्लेन से ये हाल है तो नीचे जाकर उसकी कितनी बड़ी विशालता का मुझे अंदाजा होता.
इस बीच मैंने मील भी लिया. फिर पहली बार प्लेन के वॉशरूम में भी गया. वहां फ्लश करते ही एक अलग सा शोर मुझे सुनाई दिया. जिसे पहली बार सुनकर मैं थोड़ा डर भी गया था. प्लेन 2 घंटे से कुछ ज्यादा समय में मुंबई पहुंच गया था. मैं सोचने लगा कि जिस सफर को मैंने आज तक ट्रेन से कभी 18 घंटे, कभी 26 घंटे में पूरा किया था उसे इस मशीन ने कितनी छोटा कर दिया था. कमाल की चीज बनाई ही मनुष्य ने. एयरपोर्ट पर प्लेन का दरवाजा खुला. हम एक ब्रिज में घुसे और फिर सीधा ताज पैलेस में पहुंचे.
होटल में ड्रिंक्स लेने के बाद मैंने अपना रूम नंबर पता किया. चाबियां लेकर मैं रूम में पहुंच गया. 5 सितारा होटल का रूम किसी आलीशन कमरे जैसा था. वहां गजब चीज ये थी कि विंडो से आप एयरपोर्ट का रनवे देख सकते थे. सामने बड़े से रनवे पर प्लेन लैंड कर रहे थे और उड़ान भर रहे थे. मैं नहा धोकर बैड पर लेटकर बाहर देखने लगा. कमरे की खामोशी में मैं एयरोप्लेन के सफर को याद कर रहा था. मेरे जहन में बचपन की वो एक्साइटमेंट आ रही थी जो प्लेन में न बैठने की वजह से थी लेकिन इस सफर ने उस एक्साइटमेंट को मानों खत्म सा कर दिया था. प्लेन अब कोई अजूबा नहीं लग रहा था. जिसके पीछे दौड़ा जाए, या जिसे बस-मेट्रो से झुककर निहारा जाए. आज तक मैं 6 बार प्लेन में सफर कर चुका हूं लेकिन वो एक्साइटमेंट सच में बहुत प्यारी थी जो एक दूरी की वजह से थी. सच कहूं तो प्लेन में बैठने से ज्यादा गहरी मिठास थी उसमें!
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