नई दिल्ली. क्या आपने किसी ऐसे गांव Village के बारे में सुना है, जहां का मुखिया खाना किसी और देश में खाता हो और सोने के लिए किसी और देश में जाता हो। अगर आपने ऐसा कुछ नहीं सुना है तो हम आपको बता दें कि ऐसा अनोखा गांव भारत में ही है। यह गांव जितना खूबसूरत है, उतनी ही अनोखी यहां की कहानी भी है।
लागवां सोम जिले के सबसे बड़े गांवों Village में से एक है और भारत-म्यांमार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है। गांव के पास म्यांमार के सैगिंग डिवीज़न में लोजी गांव से इसे जोड़ने वाली एक सड़क है, जो म्यांमार के लाह और येंगजोंग के बड़े तातामाव सैन्य शहरों तक भी पहुंच प्रदान करती है। लुंगवा भारत और म्यांमार की सीमा के बीच में स्थित है।
इस गांव का नाम है लागवां, जिसका आधा हिस्सा भारत में पड़ता है और आधा म्यांमार में। इस गांव Village की एक और खास बात ये है कि सदियों से यहां रहने वाले लोगों के बीच दुश्मन का सिर काटने की परंपरा चल रही थी, जिस पर 1940 में प्रतिबंध लगाया गया। द अंघ’ कोंयाक नागा जाति का वंशागत मुखिया या राजा होता है।
लागवां नागालैंड के मोन जिले में घने जंगलों के बीच म्यांमार सीमा से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव है। यहां कोंयाक आदिवासी रहते हैं। इन्हें बेहद ही खूंखार माना जाता है। अपने कबीले की सत्ता और जमीन पर कब्जे के लिए वो अक्सर पड़ोस के गांवों से लड़ाइयां किया करते थे।
साल 1940 से पहले कोंयाक आदिवासी अपने कबीले और उसकी जमीन पर कब्जे के लिए वो अन्य लोगों के सिर काट देते थे। कोयांक आदिवासियों को हेड हंटर्स भी कहा जाता है। इन आदिवासियों के ज्यादातर गांव पहाड़ी की चोटी पर होते थे, ताकि वे दुश्मनों पर नजर रख सकें। हालांकि 1940 में ही हेड हंटिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। माना जाता है कि 1969 के बाद हेड हंटिंग की घटना इन आदिवासियों के गांव में नहीं हुई।
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कहा जाता है कि इस गांव को दो हिस्सों में कैसे बांटा जाए, इस सवाल का जवाब नहीं सूझने पर अधिकारियों ने तय किया कि सीमा रेखा गांव के बीचों-बीच से जाएगी, लेकिन कोंयाक पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। बॉर्डर के पिलर पर एक तरफ बर्मीज में (म्यांमार की भाषा) और दूसरी तरफ हिंदी में संदेश लिखा हुआ है।
कहते हैं कि कोयांक आदिवासियों में मुखिया प्रथा चलती है। यह मुखिया कई गांवों का प्रमुख होता है। उन्हें एक से ज्यादा पत्नियां रखने की छूट है। फिलहाल जो यहां का मुखिया है, उसकी 60 बीवियां हैं। भारत और म्यांमार की सीमा इस गांव के मुखिया के घर के बीच से होकर निकलती है। इसलिए कहा जाता है कि यहां का मुखिया खाना भारत में खाता है और सोता म्यांमार में है। इस गांव के लोगों को भारत और म्यांमार दोनों देशों की नागरिकता मिली हुई है। वो बिना पासपोर्ट-वीजा के दोनों देशों की यात्रा कर सकते हैं।
शांग्य्यु गांव
मुख्य अंग द्वारा शासित, शांग्य्यु गांव सोम जिले के प्रमुख गांवों में से एक है। एक लकड़ी का स्मारक है जिसकी ऊंचाई 8 फीट और चौड़ाई 12 फीट है-माना जाता है कि इसका निर्माण स्वर्गीय स्वर्गदूतों द्वारा किया गया था। इस स्मारक पर मानव और अन्य प्राणियों की नक्काशी उकेरी गई है। अंग के महल के सामने स्मारक पत्थर भी पाए जाते हैं। यह माना जाता है कि शांगय्यू गांव और अहोम राजाओं के बीच एक दोस्ताना व्यापार संबंध था।
चुई गांव (बस्ती)
चुई गांव सोम शहर के पास एक और प्रमुख गांव है। यह चुई बस्ती के अंग कि ओर से शासित है। अंग का घर गांव में सबसे बड़ा है और इसमें उनके और उनके पूर्वजों द्वारा मारे गए दुश्मनों की खोपड़ी देखने को मिलती है।
वेद शिखर
सोम जिले की यह सबसे ऊंची चोटी वेद शिखर है, जो सोम से लगभग 70 किमी पूर्व में स्थित है। शिखर एक स्पष्ट दिन पर ब्रह्मपुत्र और चिंडविन दोनों की स्पष्ट दृष्टि प्रदान करता है। चोटी के पास एक झरना है जो पूरे कोनयाक ग्रामीण इलाकों में सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक माना जाता है।
नागमणिोरा
नागमणिोरा, जिसे पहले लखन के नाम से जाना जाता था, सोम जिले में एक उपखंड है। यह शहर नागालैंड और असम की सीमा पर स्थित है। शहर का नाम “नागा रानी मोरा” शब्दों से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नागा रानी का दफन स्थान”। यह नागालैंड में कोयले के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है।
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