Mcleodganj in Himachal | Mcleodganj | Mcleodganj Tours | भारत में ट्रैवल इंडस्ट्री बूम पर है. ट्रैवल इंडस्ट्री की इस बूम ने दादी-नानी के घर मनाई जाने वाली छुट्टियों को हिल स्टेशन के हॉलीडेज में बदल दिया है. देश में तेजी से बदले इस ट्रेंड ने पहाड़ी और पर्यटन क्षेत्रों की सूरत को बनाया तो है लेकिन उससे ज्यादा बिगाड़ भी दिया है. अनियंत्रित तरीके से की जाने वाली घुमक्कड़ी, हुड़दंग, शोर-शराबा और शराब पीना, अधिकतर भारतीयों के लिए ट्रैवलिंग का अर्थ यही बनता जा रहा है. और जो पहाड़ी क्षेत्र इसकी मार सबसे ज्यादा झेल रहे हैं उसमें से एक है हिमाचल प्रदेश का (McLeod Ganj) मैकलॉयडगंज. www.tripoto.com पर एक ट्रैवल राइटर ने मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) की प्रॉब्लम को सामने लाने का काम किया है.
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ट्रैवल राइटर ने लिखा है- मैंने मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) को पहली बार 2008 की गर्मियों में देखा था. मुझे याद है, मैं वहां रहना चाहती थी. मैंने तभी फैसला कर लिया था कि एक दिन यहां आउंगी और जिंदगी के कुछ महीने इन खूबसूरत वादियों में बिताउंगी. 3 साल बाद, 2011 की सर्दियों में मैं फिर वहां गई. वह मेरी लाइफ के सबसे जादुई महीने थे- तृषा सिंह, ट्रैवल राइटर
ऐसे टूरिस्ट जिन्होंने मैकलॉयडगंज को टूरिस्टों की भीड़ बनने से पहले देखा हुआ हो और भारी ट्रैफिक जाम वाली सड़कों से वह तब गुजरा था जब वहां बेहद शांति हुआ करती थी, उन्हें इस जगह के हिमालयी स्वपनदर्शी होने का आज भी आभास होगा. संकरी गलियां जहां छोटी दुकानों पर हैंडमेड ज्वैलरी बिकती है और बौद्ध प्रार्थना सामग्री भी, ये आपको किसी अतिथि की तरह बेहद प्यार से अपनाते थे. ट्रैवल राइटर ने लिखा है कि उनकी पसंदीदा जगह एक तिब्बती रेस्टोरेंट में बैठकर कुछ चुस्कियां लेना था.
लेकिन धर्मशाला ( Dharmshala in Himachal ) में 2008 में क्रिकेट स्टेडियम बनने के बाद से देशभर से टूरिस्टों से की मानों बाढ़ यहां आ गई. सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर हो रही चर्चाओं ने इसमें अहम रोल निभाया. शरणार्थियों की स्थली रहा मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj )आज हर महीने 6 टन कचरा पैदा कर रहा है. मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) भी देश के अन्य पर्यटक स्थलों की तरह टूरिस्टों की गैरजिम्मेदारी का शिकार बनता चला जा रहा है.
हिमाचल प्रदेश टूरिज्म की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में राज्य में पर्यटकों की संख्या में 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. लगभग 4.2 मिलियन लोगों ने कांगड़ा क्षेत्र का दौरा किया जिनके लिए मैकलॉयडगंज प्रमुख आकर्षण था. वहीं, लगभग 26 लाख भारतीय टूरिस्ट मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) पहुंचे. इस बढ़ोतरी के साथ ही यहां कमजोर बुनियादी ढांचे और आलसी प्रशासन ने संयुक्त रूप से कई मुद्दों को जन्म दिया है.
नगावांग सोनम, तिब्बती सेटलमेंट ऑफिस में एक पर्यावरण अधिकारी हैं. 26 वर्करों की अपनी टीम के साथ वह मैकलॉयडगंज को साफ रखने में जुटे हुए हैं. ऐसा करते हुए, उनके संगठन को कई व्यथित करने वाली चीजों का भी सामना करना पड़ रहा है जिसमें से कुछ हैं-
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– पर्यटकों के जुटने के बाद से मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) में गारबेज प्रॉब्लम खड़ी हो चुकी है. इसे एक मैंटलिटी प्रॉब्लम या आलसीपने से भी जोड़ा जा सकता है लेकिन भारतीय खुद की ही चीजों को बटोरना मुनासिब नहीं समझते हैं और किसी भी दूसरे देश के पर्यटक से अधिक ड्रिंक करते हैं.
– आगे जो समस्या है वो म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन, धर्मशाला से जुड़ी हुई है. पर्याप्त मात्रा में फंड मिलने के बावजूद बड़ा पैसा रसूखदार कॉन्ट्रैक्टरों के पास पहुंच जाता है. यहां किसी तरह का सरकारी पिक अप ट्रक आपको दिखाई नहीं देगा. स्थानीय लोग टैक्स तो देते ही हैं लेकिन साथ में सफाई करने का बीड़ा भी उठाए नजर आते हैं.
मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) में 3 गारबेज ट्रक चल रहे हैं जिन्हें बमुश्किल ही म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन से फंड मिलता है. इन्हें स्थानीय लोग ही चला रहे हैं. सीमित संसाधनों के साथ इन प्रयासों को मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) के सबसे बड़े दुश्मन का भी सामना करना पड़ता है, जो कि यहां का ट्रैफिक जाम है. 3-3 घंटे के ट्रैफिक जाम में फंस जाने के साथ ही इन्हें जहां तहां पार्क की गई गाड़ियों का भी सामना करना पड़ता है. शहर में गाड़ियों का अनियंत्रित प्रवेश भी बड़ा दर्द है.
प्रशासनिक खामी और आलस्य लगभग हर ट्रैवल सीजन के दौरान मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) की खूबसूरती को खराब करता जा रहा है. इसमें पर्यटकों के अंदर पर्यावरण जागरुकता का अभाव भी पूरी तरह शामिल है जो इस स्वर्ग को बर्बाद कर रहा है.
तो हमें क्या करना चाहिए?
पर्यावरण अधिकारी नगावांग सोनम ने कुछ बातें शेयर कर बताने की कोशिश की है कि आखिर मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) आने वाले पर्यटकों को किन बातों का पालन करना चाहिए.
• कूड़े को सड़कों-गलियों में मत फेंकिए. भारत बीते 70 सालों से कूड़े की समस्या से जूझ रहा है. अगर हम सच में स्वच्छ भारत से प्रभावित हैं तो हमें इस समस्या की जड़ में जाना होगा. और ये समस्या हमारी मानसिकता की है.
• अगर आप तिरुंद जा रहे हैं तो कुछ भी पीछे मत छोड़िए. प्रशासन पहले ही यहां हर ह फ्ते 500 किलोग्राम का कचरा हर हफ्ते इकट्ठा कर रहा है. ये एक प्राचीन पहाड़ी है. यहां शराब तो कतई न पिएं.
• एक या दो प्लास्टिक बोतल से अधिक खरीदने से बचें. आप इन बोतलों को किसी भी ढाबे, रेस्टोरेंट या घर से दोबारा भर सकते हैं.
• अपनी कार को ऐसी जगहों पर न लेकर जाएं जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट मौजूद है. ऐसा कर आप मैकलॉयडगंज ( Mcleodganj ) के ट्रैफिक को सुचारू बनाने में अहम योगदान देंगे. किसी भी कीमत पर अवैध तरीके से पार्किंग न करें. पहाड़ी क्षेत्रों का इंफ्रास्ट्रक्चर शहरी क्षेत्रों से काफी अलग होता है.
प्रशासनिक बदलावों के नजरिए से, ट्रैवल राइटर तृषा सिंह जो मैकलॉयडगंज में 2011 में 3 महीने रही थीं उन्होंने कुछ बदलावों की तरफ इशारा किया है जो यहां के हालात पूरी तरह बदल सकते हैं.
• जोगिबारा रोड और मंदिर रोड को पैदलपथ बनाने की जरूरत है. ये मार्केट स्ट्रीट हैं और फूट ट्रैफिक से यहां काफी कुछ हासिल होगा. साथ ही, ध्वनि और वायु प्रदूषण भी कम होगा. इन रोड पर स्कूल भी हैं और वाहनों की मौजूदगी बच्चों के लिए भी इसे खतरनाक बनाती है. ये सड़क पैदल यात्रियों और गाड़ियों के लिए व्यापक रूप से चौड़ी भी नहीं है.
• निश्चित ही, धरमकोट के बाद किसी भी मोटर ट्रांसपोर्ट को इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. गल्लू मंदिर से आगे जाने वाले हर पर्यटत को यह जानकारी दी जानी चाहिए कि स्थानीय लोग किन मुसीबतों से गुजरते हैं. ऐसा बड़ी संख्या में पर्यटकों के शराब पीने से होता है.
• साथ ही, तिरुंद की तरफ जाने वाले पर्यटकों की संख्या को सीमित किया जाना चाहिए
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