जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है और इसे लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैंली नेशनल पार्क के रूप में बनाया गया था। ये उत्तराखण्ड के नैनीताल में स्थित है और इसका नाम जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया था जिन्होंने इसके बनने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ये पार्क बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला पहला पार्क था। ये एक इकोटूरिज्म जगह भी है और यहां पर पौधों की 488 प्रजातियां और जीवों की एक विविधता देखी जाती है। पर्यटन में वृद्धि और बाकी समस्याएं पार्क के लिए एक गंभीर चुनौती पेश कर रहीं हैं।
कॉर्बेट एक लंबे वक्त से पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए अड्डा बना हुआ है। कोर्बेट टाइगर रिजर्व के कुछ चुनिंदा जगहों में ही पर्यटन से जुड़ी हुई गतिविधियों को अनुमति दी जाती है ताकि लोगों को इसके शानदार नजारें और अलग अलग तरह के वन्यजीवों देखने का मौका मिले। हाल ही में यहां आने वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।
दिल्ली से मुरादाबाद-काशीपुर-रामनगर होते हुए कार्बेट नेशनल पार्क की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है। कॉर्बेट नेशनल पार्क में लोगों के घूमने का वक्त नवम्बर से मई तक होता है। इस मौसम में कई ट्रैवल एजेन्सियां कार्बेट नेशनल पार्क में सैलानियों को घुमाने के लिए तैयारियां करती है। कुमाऊं विकास निगम भी हर शुक्रवार को दिल्ली से कार्बेट नेशनल पार्क तक पर्यटकों को ले जाने के लिए टूर्स का आयोजन करता है। कुमाऊं विकास निगम की बसों में अनुभवी गाइड भी होते हैं जो पशुओं की जानकारी, उनकी आदतों के बारे में बताते हैं।
इस पार्क में शेर, हाथी, भालू, बाघ, सुअर, हिरन, चीतल, सांभर, पांडा, काकड़, नीलगाय, और चीता आदि वन्य प्राणी काफी अधिक संख्या में मिलते हैं। इसी तरह इस वन में अजगर समेत कई तरह के सांप भी रहते हैं। जहां पर इस वन्य पशु विहार में कई तरह के भयानक जन्तु मिलते हैं, वहीं इस पार्क में लगभग 600 रंग-बिरंगे पक्षियों की जातियां भी देखी जाती है। आज विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां से पर्यटक इस पार्क को देखने नहीं आते हैं।
माना जाता है कि अंग्रेज वन्य जीवों की रक्षा करने के काफी शौकीन थे। साल 1935 में उस वक्त के गवर्नर मालकम हेली के नाम पर इस पार्क का नाम ‘हेली नेशनल पार्क‘ रखा गया था। वहीं आजादी मिलने के बाद इस पार्क का नाम ‘रामगंगा नेशनल पार्क‘ किया गया था। स्वतंत्रता के बाद विश्व में जिम कार्बेट नाम एक प्रसिद्ध शिकारी के रूप में फैल गया था। जिम कार्बेट जहां अचूक निशानेबाज थे तो वहीं वन्य पशुओं के साथी भी थे। कुमाऊं के कई आदमखोर शेरों को उन्होंने मारकर सैकड़ों लोगों की जानें बचाई थी। उन्होंने वहां रहने वाले हजारों लोगों को डर से मुक्त करवाया था। गढ़वाल में भी एक आदमखोर शेर ने कई लोगों की जान ले ली थी। उस आदमखोर को भी जिम कार्बेट ने ही मार गिराया था। भारत सरकार ने जब जिम कार्बेट की लोकप्रियता को समझा तो इस पार्क का नाम ‘जिम कार्बेट नेशनल पार्क‘ कर दिया गया था।
आज ये पार्क काफी समृद्ध है। इसके अतिथि-गृह में 200 लोगों को एक साथ ठहराने की व्यवस्था है। वहीं यहां पर आज सुन्दर अतिथि गृह, केबिन और टेन्ट भी उपलब्ध है। खाने-पीने की काफी अच्छी व्यवस्था है। रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर ‘कार्बेट नेशनल पार्क‘ का गेट है। रामनगर रेलवे स्टेशन से छोटी गाड़ियों, टैक्सियों और बसों से पार्क तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। दिल्ली से ढिकाला तक बस आ-जा सकती है। यहां पहुँचने के लिए रामनगर कालागढ़ रास्तों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। दिल्ली से ढिकाला 279 किलोमीटर दूर है।
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में क्या करें और क्या न करें
क्या करें
क्या ना करें
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