Best Places to Visit in Morena : मुरैना की गजक लिखे बैनर आपने अपने शहरों में भी देखे होंगे. हालांकि ये जगह सिर्फ गजक के लिए ही नहीं बल्कि अपने रहस्यों और रोचक इतिहास के लिए भी जानी जाती है. मुरैना में कहां घूमा जाए, कैसे घूमा जाए, यह एक बड़ा सवाल ( Best Places to Visit in Morena ) है. आज इस आर्टिकल में आपको मुरैना यात्रा ( Morena Tours ) की जानकारी दी जाएगी.
आपको मुरैना में कुतवार के कुंती मंदिर ( Kunti Mandir Kutwar ), यहां के 64 योगिनी मंदिर ( 64 yogini mandir mitawali ), बटेश्वर मंदिर ( bateshwar mandir padawali ), शनिचरा मंदिर ( shanichara mandir ) और करह आश्रम ( karah ashram ) की जानकारी दी जाएगी.
साथ ही, आपको यह भी बताया जाएगा कि आप ककनमठ मंदिर ( kakanmath mandir morena ) , सिहोनिया के जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र ( sihoniya jain atishay shetra ) और अगर मन करे तो पान सिंह तोमर के गांव भिड़ौसा ( paan singh tomar’s village bhidosa ) कैसे जा सकते हैं.
चलिए मुरैना यात्रा गाइड ( Best Places to Visit in Morena ) के इस ब्लॉग की शुरुआत करते हैं…
बॉलीवुड की फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ ने मुरैना की पहचान को पान सिंह तोमर से भी जोड़ दिया है. मुरैना शहर से भिड़ौसा की कुल दूरी 45 किलोमीटर की है. अगर आप निजी वाहन से गांव जाते हैं तो सबसे पहले आपको सिहोनिया पहुंचना होगा. सिहोनिया चौक से सीधी सड़क पीपरी की ओर जाती है. आधे घंटे बाद आप पीपरी पहुंचते हैं. पीपरी से ही आपको पान सिंह तोमर के गांव भिड़ौसा के लिए रास्ता मिल जाता है.
अगर आप सार्वजनिक वाहन से आते हैं तो मुरैना रेलवे स्टेशन से आपको पीपरी के लिए बस मिल जाती है. पीपरी से भिड़ौसा 3 किलोमीटर दूर है. इसके लिए या तो आप पैदल चलते हैं या फिर लिफ्ट लेकर. आप यहां के लिए ऑटो या टैक्सी भी बुक कर सकते हैं.
पान सिंह तोमर के गांव में यूं तो देखने के लिए कुछ खास है नहीं. उनके घर में जाकर आप घरवालों से मुलाकात कर सकते हैं. गांव के रास्ते बेहद खराब है. प्रशासन की गलती की वजह से खेतों का सही नाप-जोख आज भी नहीं हो सका है, सो दिलों में दुश्मनी आज भी है.
आप पान सिंह तोमर के गांव में एकमात्र अच्छी जगह वहां के मंदिर जा सकते हैं. इस मंदिर में देवी की मूर्ति की स्थापना पान सिंह तोमर ने ही की थी. ये मंसा देवी की मूर्ति है. इस मंदिर के पीछे से आसन नहीं बहती हुई मिलती है. आपको इस जगह ( Best Places to Visit in Morena ) आकर अच्छा लगेगा.
मुरैना में गुर्जर-प्रतिहार शैली में कई अनोखे मंदिरों का निर्माण हुआ था. इन्हीं में से एक है ककनमठ मंदिर. गुर्जर प्रतिहार शासकों ने 9वीं से 10वीं सदी में इसे निर्मित किया था. यह मंदिर 115 फीट ऊंचा है. यह भी मुरैना में घूमने लायक शानदार जगहों ( Best Places to Visit in Morena ) में से एक है.
इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कच्छवाहा वंश के राजा कीर्ति सिंह के शासनकाल में हुआ था. राजा कीर्ति सिंह और उनकी पत्नी रानी ककनावती भगवान भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं. रानी के नाम पर ही इस मंदिर का नाम ककनमठ पड़ा.
हालांकि ऐसी भी अफवाह है कि इसे एक रात में भूतों ने बनवाया था.
ककनमठ मंदिर सिहोनिया के पास स्थित है. मुरैना से सिहोनिया की कुल दूरी 30 किलोमीटर की है. आप सिहोनिया पहुंचकर ककनमठ मंदिर जा सकते हैं. लेकिन ध्यान रहे इसके लिए ज़रूरी ये है कि या तो आप निजी वाहन से सफर कर रहे हों या फिर ऑटो/टैक्सी बुक करके.
हवाई मार्ग से – यहां से निकटतम हवाईअड्डा ग्वालियर का है. ग्वालियर हवाईअड्डे के मुरैना से कुल दूरी लगभग 30 किलोमीटर की है.
ट्रेन से – यहां से नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन मुरैना का है.
सड़क के ज़रिए – सिहोनिया काफी चर्चित जगह है और यहां सड़क भी अच्छी है. आप बस के ज़रिए भी यहां तक आ सकते हैं और निजी वाहन से भी. मुरैना रोड पर सिहोनिया से थोड़ा आगे बढ़ने पर आपको ककनमठ मंदिर के लिए रास्ता मिलता है.
सिहोनिया, मुरैना जिले में एक कस्बा है. सिहोनिया के दक्षिण में जैन मंदिर है जो कि दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. सिहोनिया से इसकी दूरी 650 मीटर की है. आप यहां तक पैदल भी आसानी से पहुंच सकते हैं. जैन तीर्थ क्षेत्र में ही भोजनालय, आवास की सुविधा भी है.
हवाई मार्ग से – सिहोनिया से नज़दीकी हवाईअड्डा ग्वालियर का है. यह लगभग 30 किलोमीटर दूर है.
ट्रेन मार्ग से – गोहद रोड रेलवे स्टेशन सिहोनिया से नज़दीक पड़ता है. हालांकि यहां से नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन मुरैना ही है.
सड़क मार्ग से – सिहोनिया के लिए मुरैना और ग्वालियर से बस सेवाएं हैं. मुरैना से यह 30 किलोमीटर और ग्वालियर से 55 किलोमीटर की दूरी पर है. आप निजी वाहन से भी यहां आ सकते हैं.
कुतवार पांडवों की ननिहाल है. इसे कुतवाल के नाम से भी जाना जाता है. आप निजी वाहन या टैक्सी के माध्यम से यहां आ सकते हैं. कुतवार के रास्ते में ही आपको कुतवार का प्रसिद्ध डैम दिखाई देता है. कुतवार डैम के आसपास कमाल की खूबसूरती है.
यहां से कुछ दूर आगे बढ़ने पर रास्ते में दाहिनी ओर महाभारत काल का हरसिद्धी माता का मंदिर भी है. आप यहां भी कुछ पल रुककर दर्शन कर सकते हैं. मुरैना में घूमने के लिए शानदार जगहों ( Best Places to Visit in Morena ) की सूची में कुंती मंदिर भी है.
हरसिद्धी माता के मंदिर से कुछ दूरी पर एक टीले के ऊपर बना है कुंती मंदिर. द्वापरयुग में ऋषि दुर्वासा यहां चातुर्मास के लिए आए थे, तब कुंती ने उनकी सेवा की थी.
कुंती की सेवाभक्ति से प्रसन्न होकर दुर्वासा ऋषि ने कुंती को संतान प्राप्ति का वरदान दिया था. कुंती ने यहीं पर सूर्य देवता का आह्वान किया था. आज भी आसन नदी के तट पर सूर्य के घोड़ों की पदचाप मौजूद हैं.
कुंती की गोद में सूर्य ने जब कर्ण को सौंपा था जब कुंती ने यहीं आसन नदी में कर्ण को बहा दिया था.
कुंती मंदिर में एक ऐसा विलक्षण शिवलिंग भी है जो घटता बढ़ता रहता है.
मुरैना के मितावली गांव में है 64 योगिनी मंदिर. 1323 ईस्वी में इसे कच्छप राजा देवपाल ने बनाया था. इस मंदिर को एकत्तरसो महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
इस मंदिर के अंदर एक गर्भगृह और चौसठ कमरे हैं. हर कमरे में एक शिवलिंग है. ऐसा बताया जाता है कि इन कमरों में योगिनी तंत्र साधना करती थीं.
तंत्र साधना में मुर्दा शरीर में प्राण डालकर उससे क्रियाए करवाई जाती थीं.
चौसठ योगिनी मंदिर लगभग सौ फीट ऊंचीम पहाड़ी के ऊपर बनाया गया है. मंदिर से आपको मुरैना का मैदानी इलाका और हरे भरे खेत दिखाई देते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इसी मंदिर की तर्ज पर अंग्रेज़ों ने संसद भवन का निर्माण किया था.
बटेश्वर के हिंदू मंदिर, बलुआ पत्थरों से बनाए गए 200 मंदिरों के समूह हैं. ये मंदिर भी गुर्जर प्रतिहार शैली में बनाए गए थे. भगवान शिव और विष्णु को समर्पित ये मंदिर जीर्णोद्धार के बाद आज अपने सही रूप में लौट सके हैं.
यह ग्वालियर के उत्तर में लगभग 35 किलोमीटर और मुरैना शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर हैं. मंदिरों में ज्यादातर छोटे हैं और लगभग 25 एकड़ (10 हेक्टेयर) में फैले हुए हैं. ये पड़ावली के पास एक पहाड़ी की ढलान पर हैं.
शनिचरा मंदिर धरती पर शनि देव का पहला मंदिर है. इसे लंका से हनुमान लेकर आए थे. महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर में शिलारूप में जिन शनिदेव की पूजा की जाती है, वह शिला यहीं की पहाड़ी से वहां ले जाई गई है.
करह आश्रम की बहुत ज्यादा महिमा है. संत मानते हैं कि पटिया वाले बाबा रामदास के समय एक बार करह आश्रम में भंडारा चल रहा था, तब घी कम पड़ गया तो महाराज ने सरयू (कुंड) से जल लेकर कढ़ाई में डाल दिया था, उस जल मालपूआ सेंके गए. बाद में उतना ही घी उस सरयू में डाला जितने जल उसमें से निकाला था.
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