Auli Travel Tips: औली (Auli) एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है जो कि पूरी दुनिया में स्कीइंग के लिए काफी ज्यादा फेमस है। ये खूबसूरत जगह समुद्रतल से लगभग 2800 मी की ऊंचाई पर स्थित है। ये जगह ओक धार वाली ढलानों और सब्ज शंकुधारी जंगलों के लिए पहचानी जाती है।
आपको बता दें कि औली का इतिहास 8वीं सदी में पाया जाता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि गुरु आदि शंकराचार्य इस पवित्र स्थान पर आए थे और इस जगह को ’बुग्याल’ भी कहते हैं। इसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है ’घास का मैदान’। ओस की ढलानों पर चलते हुए टूरिस्ट नंदादेवी, मान पर्वत और कामत पर्वत श्रंख्ला के अद्भुत नजारें देख सकते हैं। यात्री इन ढलानों से जाने पर सेब के बाग और हरे-भरे देवदार के पेड़ देखते हैं।
औली तक लोग आसानी से वायुमार्ग, रेलमार्ग और सड़क के रास्ते से पहुंच सकते हैं। औली का सबसे पास एयरबेस देहरादून का जौली ग्रांट हवाईअड्डा है और निकटतम मुख्य रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन पड़ता है। औली के लिए पास के शहरों से बसें भी चलती है।
वैसे तो औली की खूबसूरती इतनी अच्छी है कि इसे किसी भी मौसम में जाया जा सकता है। लेकिन फिर भी गर्मियों में यहां जाने पर अलग ही मजा आता है।
जोशीमठ से 16 किलोमीटर की दूरी पर औली उत्तरांचल के ऊपरी भाग में है। फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल स्कीइंग (एफआइएस) की तरफ से इस जगह को स्कीइंग रेस के लिए अधिकृत किया हुआ है। इस जगह की सबसे खास विशेषता यही है कि औली ही एकमात्र ऐसी जगह है। उत्तराखंड के गठन के बाद ही औली में राष्ट्रीय स्तर की स्कीइंग चैंपियनशिप का आयोजन शुरू किया गया लेकिन इसे पहचान साल 2011 के सैफ विंटर खेलों से मिली। इस दौरान यहां पर स्कीइंग की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं थी। दरअसल, एफआइएस के मानकों के अनुसार स्कीइंग रेस कराने के लिए केंद्रों में ढलान, बर्फ बनाने की वैकल्पिक व्यवस्था, विदेशी खिलाड़ियों को ठहराने की व्यवस्था, संपर्क मार्ग आदि की स्थिति देखी जाती है। और इन सब मानकों में औली पूरी तरह से खरा उतरता है। यहां पर स्कीइंग के लिए 1300 मीटर लंबा स्की ट्रैक है, जो कि फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल स्कीइंग के मानकों को पूरा करता है।
जिंदादिल लोगों के लिए औली एक आदर्श स्थान है। यहां पर बर्फ गाड़ी और स्लेज आदि की व्यवस्था नहीं है। यहां पर सिर्फ स्कीइंग और केवल स्कीइंग ही की जा सकती है। इसके अलावा यहां पर अनेक सुन्दर दृश्यों का आनंद भी लिया जा सकता है। नंदा देवी के पीछे सूर्योदय देखना एक बहुत ही सुखद अनुभव है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहां से सिर्फ 41 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा बर्फ गिरना और रात में खुले आकाश को देखना मन को काफी प्रसन्न करता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर औली एक बहुत ही बेहतरीन पर्यटक स्थल है।
जोशी मठ औली से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। ये जगह मठो, मंदिरो और स्मारको के लिए काफी मशहूर है। इसके अलावा आप यहा के पर्वतो की भी सैर कर सकते है। जोशी मठ को बद्रीनाथ और फूलों की घाटी का प्रवेशद्धार माना जाता है।
जंगल के बीच में बने छत्रा कुंड सरोवर गुरसौं से एक किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का दर्शनीय सरोवर पर्यटको को काफी ज्यादा पसंद आता है।
क्वारी बुग्याल समुंद्रतल से 3350 मीटर की ऊंचाई पर है। ट्रैकिंग करने वालो के लिए ये एक आदर्श जगह है। यहां पर दूर-दूर तक बड़ी ढलानों की खूबसूरती देखते ही बनती है।
ये स्थान औली पर्यटन में सबसे महत्तवपूर्ण जगह है। यहां पर गर्म पानी के झरने, सोते और फव्वारे देखने में बहुत ही आनंद आता है।
ये जगह औली से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। समुंद्र तल से गुरसौं बुग्याल की ऊंचाई 3056 मीटर है। ये जगह खूबसूरत नजारो से भरपूर हैं और ये मैदान मीलों तक फैला हुआ है। ’गुरसो बुग्याल’ एक खूबसूरत जगह है जो कि गर्मियों में बहुत हरीभरी रहती है। ये जगह कोनिफर और ओक के हरे-भरे जंगलों से घिरी हुई है।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरी हुई ये जगह चाई थेंग की दुर्गम चढ़ाई के बाद सामने आती है। यहां पर पहुंचने के लिए कठिन चढ़ाई का सामना करना पड़ता है।
इस जगह तक जाने के लिए पहले जोशी मठ से हेलंग चट्टी आना पड़ता है। जो कि औली से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। हेलंग चट्टी से 10 किलोमीटर पैदल चलने के बाद कल्पेश्वर की घाटी आती है और फिर वंशीनारायण मंदिर कल्पेश्वर से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर है।
समुद्रतल से 7160 मीटर की ऊंचाई पर बने त्रिशूल पर्वत को औली का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल माना जाता है। इस पर्वत का नाम भगवान शिव के त्रिशूल से लिया गया है। ये एक लोकप्रिय स्कीइंग स्थल भी है और साथ ही भारत और तिब्बती सीमा पुलिस बल के जवानों के लिए ट्रेनिंग का मैदान भी है। इस पर्वत की तलहटी पर पर्यटक रूपकुंड झील भी देख सकते हैं।
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