नई दिल्ली. मध्यप्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग है महाकालेश्वर, उज्जैन और ओंमकारेश्वर, खंड़वा लेकिन एक शिवलिंग ऐसा भी है जो उत्तर भारत का सोमनाथ कहलाता है। यह शिवलिंग Shivling है प्रदेश की राजधानी भोपाल के नजदीक भोजपुर गांव में स्थापित Bhojeshwar temple भोजेश्वर शिव मंदिर Shiva Temple है। यह वेत्रवती यानि बेतवा नदि के किनारे बना है। भोपाल से 30 किलोमीटर दूर रायसेन जिले के भोजपुर गांव में बना परमार कालीन मंदिर हमेशा ही श्रृद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र रहा है। चिकने लाल बलुआ पाषाण के बने इस शिवलिंग को एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह विश्व का सबसे बड़ा प्राचीन शिवलिंग माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भोजपुर में दुनियां का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थपित है। जिसकी स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज ने (1010-1053 ईसवीं) करवाई थी। मंदिर 115 फीट (35 मी॰) लंबे, 82 फीट (25 मी॰) चौड़े तथा 13 फीट (4 मी॰) ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है। अतः इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर Shiva Temple भी कहा जाता है। भोजपुर मंदिर में यू तो साल भर लोगों का आना जाना बना रहता है पर इस प्रसिद्ध स्थल पर साल में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें मंकर संक्रांति व महाशिवरात्रि पर्व का पर्व शामिल है। इन दोनों पर्वों पर यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है। महाशिवरात्री पर यहां एक लाख से भी अधिक श्रृद्धालु पहुंचते हैं। जिसके लिए पुलिस प्रशासन द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते है।
Ghrishneshwar Jyotirlinga क्यों है शिव का अनोखा ज्योतिर्लिंग, इसके पीछे है दिलचस्प तथ्य
पार्वती गुफा
भोजपुर शिव मंदिर(Bhojpur Shiv Temple) के बिलकुल सामने पश्चमी दिशा में एक गुफा हैं यह पार्वती गुफा के नाम से जानी जाती हैं। इस गुफा में पुरातात्विक महत्तव कि अनेक मूर्तिया हैं।
अधूरे मंदिर का रहस्य: यह अद्भुत मंदिर अपने आप में एक अबूझा, अनसुलझा रहस्य समेटे है। भोजेश्वर मंदिर का निर्माण अधूरा हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि निर्माण कार्य एकदम से ही रोक दिया गया होगा। इसका निर्माण अधूरा क्यों रखा गया इस बात का इतिहास में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है पर जनश्रुति है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में होना था, परन्तु छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए निर्माण अधूरा रह गया।
हालांकि इसके कारण अभी तक अज्ञात ही हैं किन्तु इतिहास वेत्ताओं का अनुमान है कि ऐसा किसी प्राकृतिक आपदा, संसाधनों की आपूर्ति में कमी अथवा किसी युद्ध के आरम्भ हो जाने के कारण ही हुआ होगा। शायद राजा भोज के निधन होने से भी इस प्रकार के निर्माण का रुकना तर्कसंगत प्रतीत होता है।
किसी विद्वान का मानना है कि छत संभवतः निर्माण काल में पूरे भार के सही आकलन में गणितीय वास्तु दोष के कारण निर्माण-काल में ही ढह गयी होगी। तब राजा भोज ने इस दोष के कारण इसे पुनर्निर्माण न कर मन्दिर के निर्माण को ही रोक दिया होगा।
मंदिर का इतिहास
भारत में इस्लाम के आगमन से भी पहले, इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हो। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते हैं। इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है। यह मंदिर ऊंचा है, इतनी प्राचीन मंदिर के निर्माण के दौरान भारी पत्थरों को ऊपर ले जाने के लिए ढ़लाने बनाई गई थी। इसका प्रमाण भी यहां मिलता है।
मंदिर के निकट स्थित बांध को राजा भोज ने बनवाया था। बांध के पास प्राचीन समय में प्रचूर संख्या में शिवलिंग बनाया जाता था। यह स्थान शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया की जानकारी देता है। कुछ बुजुर्गों का कहना है कि मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारा माता कुंती की पूजा के लिए इस शिवलिंग का निर्माण एक ही रात में किया गया था। विश्व प्रसिद्घ शिवलिंग की ऊंचाई साढ़े इक्कीस फिट, पिंडी का व्यास 14 फिट आठ इंच व जलहरी का निर्माण बीस बाई बीस से हुुआ है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़ी शिवलिंग अन्य कहीं नहीं दिखाई देती है। इस मंदिर की ड्राइंंग पास ही स्थित पहाड़ी पर उभरी हुुई है जो आज भी दिखाई देती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में भी आज की तरह नक्शे बनाकर निर्माण कार्य किए जाते रहे होंगे।
इशिवरात्रि पर्व पर भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती से विवाह हुुआ था। अत: इस दिन महिलाएं अपनी मनोकामना के साथ व्रत रखती है व भगवान भोले नाथ के पांव पखारने यहां आती है। माता कुंती के पिता का नाम भी राजाभोज था अत: इसका नाम भोजपुर पड़ा व यह द्वापर युग का निर्मित मंदिर है व जीर्णशीर्ण होने पर धार के राजा परमार वंशी राजाभोज ने इसका जीर्णोद्घार कराया।
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