Who is Jagadguru? : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज इतिहास के पांचवें जगद्गुरु रहे हैं. फिलहाल में केवल चार संतों को मूल जगद्गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है. इस उपाधि से सम्मानित लोगों में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य, जगद्गुरु श्री निम्बार्काचार्य और जगद्गुरु श्री माधवाचार्य थे.
जगद (जगद) शब्द का अर्थ है पूरी दुनिया. गुरु (गुरु) का अर्थ है हमारी अज्ञानता को दूर करने में सक्षम और दिव्य ज्ञान प्रदान करना. ऐसा आध्यात्मिक गुरु जिसे अपने युग के सभी आध्यात्मिक विद्वानों द्वारा सर्वोच्च आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है जगद्गुरु कहलाता है.
ऐसा संत एक मूल जगद्गुरु होता है क्योंकि यह उपाधि सीधे उन्हीं को प्रदान की जाती है. एक बार जब वह संत इस दुनिया को छोड़ देता है तो उसके सबसे योग्य शिष्य को उसके उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु का स्थान प्राप्त होता है. चूंकि उत्तराधिकारी को अपने गुरु का पद विरासत में मिला है, इसलिए उसे जगद्गुरु भी कहा जाता है.
हालांकि उन्होंने अपने दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान का प्रदर्शन करके यह उपाधि अर्जित नहीं की है, इसलिए उन्हें “मूल” जगद्गुरु नहीं कहा जाता है. यह उपाधि प्रदान करने के लिए कौन योग्य है? यह उपाधि कोई ऐसी उपाधि नहीं है जो किसी स्कूल में जाकर प्राप्त की जा सके. जब संसार अज्ञान के अंधकार में घिरा हुआ है और धर्म का सही अर्थ विकृत हो गया है और लोग पूरी तरह से भ्रमित हैं कि किस मार्ग को चुना जाना चाहिए.
अपने दयालु स्वभाव से, भगवान इस पृथ्वी पर एक दिव्य व्यक्तित्व या संत को भेजता है. जब यह संत धर्म के सही अर्थ का प्रचार करता है, तो वह दिव्य ज्ञान और ईश्वर के प्रति भक्ति या प्रेम का मार्ग (जिसे भक्ति भी कहा जाता है) प्रकट करता है.
1957 में, वाराणसी, भारत के काशी विद्वत परिषद, एक संगठन जिसमें भारत के 500 सर्वोच्च वैदिक शास्त्र विद्वान शामिल थे. ने श्री महाराज जी को उनकी समझ के स्तर का परीक्षण करने के लिए एक शास्त्रगत (धर्म-पुस्तक-संबंधी) बहस में शामिल होने के लिए इनवाइट किया. सर्वप्रथम श्री महाराज जी से अनुरोध किया गया कि वे दस दिन प्रतिदिन दो घंटे धर्म के विषयों पर बात करें.
उनकी व्याख्यान श्रृंखला के अंत में, बहस शुरू होने वाली थी. सातवें दिन, लेक्चर बंद कर दिए गए और विद्वानों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि श्री महाराज जी का शास्त्रों का ज्ञान अभूतपूर्व था और हजारों जन्मों में भी एक सामान्य मनुष्य द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता था. वे सहमत थे कि उनका ज्ञान दिव्य था. इस संगठन ने सर्वसम्मति से उन्हें नीचे सूचीबद्ध उपाधियों के साथ “जगद्गुरुत्तम” (सर्वोच्च जगद्गुरु) की उपाधि प्रदान की.
जगद्गुरु कृपालु महाराज वर्तमान काल में मूल जगदगुरु थे. भारत के इतिहास में इनके पहले लगभग तीन हजार साल में चार और मौलिक जगदगुरु हो चुके हैं. लेकिन लेकिन कृपालु महाराज के जगदगुरु होने में एक अनूठी विशेषता यह थी कि उन्हें ‘जगदगुरुत्तम’ (समस्त जगदगुरुओं में उत्तम) की उपाधि से विभूषित किया गया था .
14 जनवरी सन 1957 को सिर्फ 35 साल की उम्र में ही कृपालु महाराज को जगदगुरूत्तम की उपाधि से विभूषित किया गया था. कृपालु महाराज का जन्म सन 1922 ई. में शरद पूर्णिमा की आधी रात को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में मनगढ़ ग्राम के ब्राह्मण कुल में हुआ था.
1. पहले जगदगुरु थे, जिनका कोई गुरु नहीं था और वे स्वयं ‘जगदगुरुत्तम’ थे.
2.वह पहले जगदगुरु थे, जिन्होंने एक भी शिष्य नहीं बनाया. लेकिन उनके लाखों अनुयायी हैं
3.उन्होंने अपने जीवन काल में ही ‘जगदगुरुत्तम’ उपाधि की 50वीं वर्षगांठ मनाई.
4.वह ऐसे जगदगुरु थे, जिन्होंने ज्ञान एवं भक्ति दोनों में सर्वोच्चता प्राप्त की व दोनों का खूब दान किया वह पहले जगदगुरु थे जिन्होंने पूरे 5. विश्व में श्री राधाकृष्ण की माधुर्य भक्ति का धुआंधार प्रचार किया व सुमधुर राधा नाम को विश्वव्यापी बना दिया
6. सभी महान संतों ने मन से इश्वर भक्ति की बात बताई है, जिसे ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से बताया गया है
7. महाराज ने पहली बार इस ध्यान को ‘रूप ध्यान’ नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है जब हम भगवान के किसी मनोवांछित रूप का चयन करके उस रूप पर ही मन को टिकाए रहें
8. वह पहले जगदगुरु थे, जिन्होंने विदेशों में प्रचार के लिए समुद्र पार किया.
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