Who are Lingayats : भारत मठों और मंदिरों का देश कहलाता है. भारत में हजारों की संख्या में मठ मिलते हैं. देश के ज्यादातर मठ लिंगायत समुदाय के हैं. कर्नाटक राज्य में लिंगायत कम्युनिटी को अगड़ी जातियों में गिना जाता है.
सभी सुविधाओं और पैसे वाली कम्युनिटी के तौर पर पहचान रखने वाले लिंगायत राजनीति में भी अहम जगह रखते हैं. आइए जानते हैं लिंगायत समुदाय के बारे में सबकुछ…
लिंगायत’ को भारतवर्ष के प्राचीनतम हिन्दू धर्म का एक हिस्सा ही कहा जाता रहा है , जो कि भगवान शिव की आराधना पर आधारित है. ‘लिंगायत’ सम्प्रदाय की स्थापना 12 वी शताब्दी में महात्मा बसवन्ना ने की थी.
इस मत के उपासक ‘लिंगायत’ कहलाते हैं जो कि कन्नड़ शब्द लिंगवंत से उत्पन्न हुआ है. ये लोग मुख्यतः महात्मा बसवन्ना (उन्हें भगवान बासवेश्वरा भी कहा जाता है) की शिक्षाओं के सहायक माने जाते हैं.
लिंगायतों में ही कई उपजातियां हैं. इनकी संख्या 100 के आसपास हैं. इनमें दलित या पिछड़ी जाति के लोग भी आते हैं, लेकिन लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है.
आज कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास-पड़ोस के राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की तादाद अधिक है.
‘लिंगायत’ मूर्ति पूजा नहीं करते हैं क्योंकि बासवन्ना इसके विरोधी थे, हालांकि ये अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं, जो कि अंडे के आकार की गेंद की तरह दिखता है जिसे वह धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं.
लिंगायत लोग इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं और इसे अपनी शक्ति मानते हैं.
लिंगायत शवों को दफनाते हैं. ‘लिंगायत’ पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं, इनके लिए कर्म ही प्रधान है और इसी के आधार पर इंसान को स्वर्ग और नरक मिलता है. ‘लिंगायत’ शवों को दफनाते हैं , लिंगायत परंपरा में मृत्यु के बाद शव को नहलाकर कुर्सी पर बिठाया जाता है और फिर कंधे पर उठाया जाता है, इसे ‘विमान बांधना ‘कहते हैं, इनके अलग कब्रिस्तान भी हैं.
वीरशैव और लिंगायत दोनों हिंदू भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं, दोनों संप्रदाय पर्यायवाची नहीं हैं. जैसे ब्राह्मण मानते हैं कि वे ब्रह्मा के कान से पैदा हुए थे, वीरशैव खुद को शिव के लिंगम या फलस से पैदा हुए मानते हैं.
लिंगायतों और वीरशैवों के बीच मुख्य अंतर यह है कि पूर्व वेदों और जाति व्यवस्था को अस्वीकार करते हैं, जबकि बाद वाले नहीं करते हैं. लिंगायत शिव को एक निराकार इकाई (इष्ट लिंग) के रूप में पूजते हैं, जबकि वीरशैव शिव की वैदिक मूर्ति की पूजा गले में एक सांप के साथ करते हैं.
12वीं सदी के बसव के वचन या बातें अलग-अलग दक्षिणी राज्यों में खो गईं या बिखर गईं, जिसके बाद कई ग्रंथों ने वीरशैव और लिंगायतों को एकसाथ किया. यह केवल हालिया शोध है जिसने वीरशैव, लिंगायत और हिंदुओं को अलग करने में मदद की है.
कर्नाटक में बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा भी लिंगायत हैं. कर्नाटक में इस जाति का दबदबा दिखाई देता है.
2013 में, अखिल भारतीय वीरशैव महासभा ने जनगणना में वीरशैव लिंगायतों को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को एक ज्ञापन सौंपा था. येदियुरप्पा तब हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे.
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