आइए आपको लिए चलते हैं झारखंड ( Jharkhand ) के रजरप्पा ( Rajarappa ) धाम, जहां पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ माता छिन्नमस्तिका देवी ( Mata Chinnmstika Devi ) का दरबार है। कहते है यहां जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है, वो खाली हाथ नहीं जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं भी है, तो चलिए आपको बताते है, यहां का इतिहास और इस पवित्र धाम के दर्शन के लिए पहुंचना कैसे है?
छिन्नमस्तिका देवी ( Chinnmstika Devi ) का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से ( Ranchi, the capital of Jharkhand ) करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा ( Rajarappa ) इलाके में है। ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी प्रसिद्ध है। जहां मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, तो वहीं छिन्नमस्तिका माता ( Chinnmstika mata ) को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है। मान्यता है की यहां पर जो भी भक्त सच्चे दिल से मुराद लेकर आता है, उसे माता खाली हाथ जाने नहीं देती है। उसकी हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है। ये मंदिर भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी ( Damodar River ) के संगम तट पर स्थित है जिसे आस्था की धरोहर ( Heritage of faith ) भी माना जाता है। भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है, जबकि दामोदर पुरुष। संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है। कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है, उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है।
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यहां पर बलि स्थल भी बना हुआ है। इसके अलावा यहां एक पाप हरण नाम का कुंड है। माना जाता है कि रोगग्रस्त लोग इसमें स्नान करते हैं तो उनकी बीमारी दूर हो जाती हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर ( Chinnmstika Temple ) के अलावा यहां Mahakali Temple, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, Bajrang Bali Temple, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं।
वैसे तो यहां पर सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के समय यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है। मां के मंदिर में मन्नत मांगने के लिए लोग लाल धागे में पत्थर बांधकर पेड़ या त्रिशूल में लटकाते हैं। और मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी ( Damodar River ) में प्रवाहित करने की परंपरा है।
छिन्नमस्तिका देवी ( Chinnmstika Devi ) के मंदिर के इतिहास ( History of temple ) को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद है, कई विशेषज्ञों का कहना है कि ये मंदिर 600 साल पुराना है, जबकि कई विशेषज्ञ इसे महाभारत कालीन मंदिर बताते हैं। मां छिन्नमस्तिका मंदिर ( Chinnmstika Temple ) के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिका का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। माता के अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं, जिन्हें माता रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं। मंदिर के अंदर देवी काली की प्रतिमा है।
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मां छिन्नमस्तिका ( Chinnmstika Mata ) से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में छोटा नागपुर में रज नामक एक राजा रहा करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा ( Rajupama ) पड़ा, जो बाद में रजरप्पा ( Rajarappa ) हो गया।
कथा के मुताबिक एक बार पूर्णिमा की रात राजा शिकार की खोज में दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर गए। ज्यादा रात होने पर राजा ने जंगल में ही विश्राम करने की योजना बनाई। रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या को देखा। उसने राजा से कहा- हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी। राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर- उधर देखने लगे। इस बीच उन्हें वहीं कन्या जल के अंदर से प्रकट होते दिखी जो स्वप्न में आई थी।
कन्या ने राजा से कहा- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिका देवी हूं। कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं, कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। देवी ने कहा – हे राजन, मिलन स्थल के पास ही तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिका देवी अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा ( Rajarappa ) के रूप में विख्यात हो गया।
माता से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन उनकी भूख असहनीय हो रही थी। सहेलियों ने कहा, जब बच्चों को भूख लगती है, तो मां अपने हर काम भूलकर उसे भोजन कराती है। आप ऐसा क्यों नहीं करतीं। यह बात सुनते ही मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।
मंदिर के आसपास ही फल- फूल, प्रसाद की कई छोटी-छोटी दुकानें हैं। इसके अलावा रजरप्पा ( Rajarappa ) में बाहर से आने वाले भक्तों के लिए धर्मशाला, आराम घर और गेस्ट हाउस आसानी से उपलब्ध हैं।
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अगर आप By air आते हैं तो सबसे पास रांची एयरपोर्ट है। रांची से रजरप्पा ( Ranchi to Rajrappa ) से 70 किलोमीटर दूर है। आपको एयरपोर्ट से रजरप्पा के लिए टैक्सी मिल जाएगी
अगर आप यहां ट्रेन से आते हैं तो रामगढ़ कैंट स्टेशन सबसे पास है ये रजरप्पा से 28 किलोमीटर है इसके अलावा रांची रोड 30 किमी, बरकाकाना 33 किलोमीटर, रांची स्टेशन 70 और कोडरमा 135 किलोमीटर दूर है ।
अगर आप सड़क मार्ग से आते हैं तो रजरप्पा ( Rajarappa ) के लिए रामगढ़ छावनी पर उतर जाए, यहां से आप मंदिर के लिए टैक्सी या जीप लें। सुबह से लेकर शाम तक टैक्सी या जीप पुराने बस स्टैंड पर मिलती है।
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