Ghrishneshwar Jyotirlinga क्यों है शिव का अनोखा ज्योतिर्लिंग, इसके पीछे है दिलचस्प तथ्य
नई दिल्ली. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Ghrishneshwar Jyotirlinga) मंदिर एक हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के पास ही स्थित हैं।
इस मंदिर Ghrishneshwar Jyotirlinga का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है।
घृष्णेश्वर महादेव का इतिहास (Ghrishneshwar Jyotirlinga History)
इस Ghrishneshwar Jyotirlinga ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है कि दक्षिण देश में देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। ज्योतिष-गणना से पता चला कि सुदेहा के गर्भ से संतान नहीं हो सकती है। सुदेहा संतान की बहुत ही इच्छुक थी।
उसने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया। पहले तो सुधर्मा को यह बात नहीं मानी। लेकिन अंत में उन्हें पत्नी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा। वह उसका आग्रह टाल नहीं पाए। वह अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। वह भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी। प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ उनका पूजन करती थी।
भगवान शिवजी की कृपा से थोड़े ही दिन बाद उसके गर्भ से अत्यंत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों के ही आनंद का पार न रहा। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो अब इस घर में कुछ है नहीं।
सब कुछ घुश्मा का है। अब तक सुधर्मा के मन का कुविचार रूपी अंकुर एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। मेरे पति पर भी उसने अधिकार जमा लिया। संतान भी उसी की है। यह कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ने लगा।इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा था। धीरे-धीरे वह जवान हो गया। उसका विवाह भी हो गया।
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एक दिन उसने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को फेंका करती थी। सुबह होते ही सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कुहराम मच गया। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे।
लेकिन घुश्मा नित्य की भांति भगवान् शिव की आराधना में लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भांति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा।
भगवान शिव प्रकट हुए (Lord Shiva appeared)
जैसे कहीं आस-पास से ही घूमकर आ रहा हो। इसी समय भगवान् शिव भी वहां प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखलाई दे रहे थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान शिव से कहा- ‘प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है लेकिन आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो।
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मेरी एक प्रार्थना और है, लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें।’ भगवान् शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहां घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गई है। इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है।
ज्योतिर्लिग के दर्शन का समय (Jyotirlinga darshan time)
मान्यता के अनुसार यहां आने वाले पुरुष भक्त अपने शरीर से कमीज एवं बनियान तथा बेल्ट उतारकर Ghrishneshwar Jyotirlinga ज्योतिर्लिग के दर्शन करते हैं। मंदिर रोज सुबह 5:30 से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। श्रावण के पावन महीने में मंदिर सुबह 3 बजे से रात 11 बजे तक भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। मुख्य त्रिकाल पूजा तथा आरती सुबह 6 बजे तथा रात 8 बजे होती है। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पालकी को समीपस्थ शिवालय तीर्थ कुंड तक ले जाया जाता है। श्री घृष्णेश्वर मंदिर का प्रबंधन श्री घृष्णेश्वर मंदिर देवस्थान ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है।
कैसे पहुंचे (How to reach)
Ghrishneshwar Jyotirlinga घृष्णेश्वर मंदिर औरंगाबाद से 35 किमी जबकि मुंबई से 422 किमी की दूरी पर है जबकि पुणे से यह जगह 250 किमी की दूरी पर स्थित है। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का 45 मिनट का सफर यादगार होता है क्योंकि घने पेड़ों से भरा यह रास्ता नयनाभिराम सह्याद्री पर्वत के सामानांतर दौलताबाद, खुलताबाद और एलोरा गुफाओं से होकर जाता है जहां पर पर्यटकों के लिए बहुत कुछ है। आप घृष्णेश्वर तक पहुंचने के लिए औरंगाबाद और दौलताबाद जैसे यातायात केंद्रों से बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं। अगर आप ट्रेन के जरिए यात्रा करना चाहते हैं तो आपके लिए औरंगाबाद नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यहां उतरकर आप यातायात के दूसरे साधन को लेकर घृष्णेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।
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