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Hajj Yatra 7 Rituals: हर सच्चे मुसलमान के लिए इस्लाम के 5 स्तंभों को मानना जरूरी होता है। इमान, नमाज, रमजान, जकात और हज। ये वो 5 चीजें हैं जो हर मुसलमान के लिए फर्ज है। ऐसे ही हज यात्रा भी इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है। इस्लाम के मुताबिक हर मुस्लिम का ये कर्तव्य है कि वो अपने जीवन मे कम से कम एक बार पवित्र मक्का की यात्रा जरूर करें। इसमें जो लोग शारीरिक या फिर आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं कुरान में उन्हीं के लिए छूट दी गई है।
कब होती है हज यात्रा || When does Hajj pilgrimage take place?
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक हज यात्रा आखरी महीने की 8वीं से 12वीं तारीख तक होती है। क्योंकि इस्लामी कैलंडर के दिन अंग्रेजी कैलंडर की तुलना में हर साल 10 या 11 कम होते है इसलिए इसकी तारीख बदलती रहती है। इस साल 9 से 14 अगस्त को हज यात्रा होगी।
इहराम
हज के लिए यात्री खास तरह के कपड़े पहनते है जिन्हें इहराम कहते हैं। पुरुष 2 टुकड़ों वाला एक बिना सिलाई का सफेद चोगा पहनते हैं। वहीं महिलाएं भी सेफद रंग के खुले कपड़े पहनती हैं जिनमें बस उनके हाथ और चेहरा ही बिना ढका हुआ रहता है।
तवाफ
सारे यात्री मस्जिद अल-हरम, जिसमें काबा है, वहां पर जाते हैं और काबा के सात चक्कर लेते हैं। इसे तवाफ कहा जाता है।
सई
तवाफ के बाद यात्री काबा के पास स्थित दो पहाड़ियों सफा और मारवाह के बीच में आगे और पीछे चलते हैं। जिसे सई कहते हैं। तवाफ और सई की रस्म को उमरा कहा जाता है और इसके बाद ही हज की असली रस्में शुरू होती हैं।
पहला दिन
उमरा के बाद अगली सुबह की नमाज पढ़ने के बाद मक्का से 5 किलोमीटर की दूरी पर बनी जगह मीना पर यात्री पहुंचते है जहां पर वो बाकी का सारा दिन गुजारते हैं। यहां वो दिन की बाकी की चार नमाजें पढ़ते है।
दूसरा दिन
अराफात
दूसरे दिन यात्री मीना से 10 किलोमीटर दूर अराफात की पहाड़ी पर पहुंचते हैं और नमाज अदा करते है। अराफात की पहाड़ियों पर दोपहर का समय बिताना जरूरी है, नही तो हज अधूरी मानी जाएगी।
मुजदलफा
सूरज छिपने के बाद हाजी अराफात और मीना के बीच में स्थित मुजदलफा जाते हैं। वहां वो आधी रात तक रहते हैं। वहीं पर वो शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते हैं।
तीसरा दिन
तीसरे सबसे पहले यात्री मीना जाकर शैतान को तीन बार पत्थर मारते है। मीना में पत्थरों के तीन बड़े – बड़े स्तंभ है जो कि शैतान को दर्शाते है। इस दिन हाजी केवल सबसे बड़े स्तंभ को ही पत्थर मारते है। पत्थर मारने की रस्म अगले दिनों में 2 बार और करनी होती है। शैतान को पत्थर मारने के बाद बकरे हलाल किया जाता हैं और जरूरतमंद लोगों के बीच में मांस बांटा जाता है। बकरे की कुर्बानी के बाद अब अपने बाल कटवाते हैं। पुरुष पूरी तरह से गंजे हो जाते हैं और महिलाएं एक उंगल बाल कटवाती हैं। बाल कटवाने के बाद एक बार फिर से तवाफ की रस्म को किया जाता है यानि कि यात्री मक्का जाकर काबा के सात बार चक्कर लगाते है।
चौथा दिन
इस दिन सिर्फ शैतान को पत्थर मारने की रस्म ही की जाती है। हाजी मीना जाकर शैतान को दर्शाते तीनो पत्थरों के स्तंभों पर सात–सात बार पत्थर मारते हैं।
पांचवा दिन
इस दिन दोबारा से शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी होती है। सूरज ढलने से पहले हाजी मक्का के लिए रवाना हो जाते है।
आखरी दिन हाजी फिर से तवाफ की रस्म को पूरा करते हैं। इसके साथ ही हज यात्रा पूरी हो जाती है। कई यात्री इसके बाद में मदीना की यात्रा भी करते है जहां पर मुहम्मद हजरत साहिब का मकबरा स्थित है।
ऐसा माना जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से क़ुर्बानी में उनकी सबसे पसंदीदा चीज मांगी थी। इब्राहिम को बुढ़ापे में एक औलाद पैदा हुई थी जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा था, वो उससे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। लेकिन अल्लाह का आदेश मानकर वो अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। हजरत इब्राहिम जब अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए जा रहे थे तो रास्ते में एक शैतान मिला और उसने उनसे कहा कि वो इस उम्र में क्यों अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं और उसके मरने के बाद कौन उनकी देखभाल करेगा। इसे सुन हजरत इब्राहिम सोच में पड़ गए और उनका कुर्बानी का इरादा भी डगमगाने लगा लेकिन फिर वो संभल गए और कुर्बानी देने चल दिए।
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं बीच में आ सकती है, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। कुर्बानी देने के बाद जैसे ही उन्होंने पट्टी हटाई तो अपने बेटे को जिंदा खड़े देखा और कटा हुआ था एक मेमना। इसी कारण इस दिन जानवर की बलि दी जाती है। वहीं मुसलमान हज के दौरान शैतान को पत्थर मारते हैं क्योंकि उसने हजरत इब्राहिम को बहकाने की कोशिश की थी।
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