दिल्ली का पहाड़गंज ( Pahadganj in Delhi ) होटल के लिए मशहूर हैं. हालांकि, यह कई दूसरी खबरों की वजह से भी चर्चा में रहता है. बहरहाल, इस आर्टिकल में दिल्ली के पहाड़गंज ( Pahadganj in Delhi ) के बारे में आपको ऐसी जानकारी देंगे जिन्हें आपने शायद ही इससे पहले सुना हो.
हम पहाड़गंज से जुड़ी जानकारी पर ट्रैवल ब्लॉग ( Pahadganj Tour Blog) की श्रृंखला लेकर आ रहे हैं. ये उस सीरीज़ की पहली कड़ी है. इस आर्टिकल में हम आपको पहाड़गंज और यहां के सैंकड़ों साल पुराने मंदिर ( Historical Temples in Pahadganj ) के बारे में जानकारी देंगे. इस जानकारी के बाद, शायद आप पहाड़गंज के प्रति अपना नज़रिया बदल लें
पहाड़गंज ( Pahadganj ) और दरियागंज ( Dariyaganj ) ये दो इलाके ऐसे हैं जिनके नाम का पिछला हिस्सा आपस में मेल खाता है. हालांकि ऐतिहासिक दस्तावेज़ खंगालने पर दोनों एकदम जुदा नज़र आते हैं. शाहजहानाबाद ( Shahjahanabad City ) के निर्माण के बाद पहाड़गंज ऐसा इलाका था जो इसकी बाउंड्री वाल के हिस्से में नहीं आ सका था.
शाहजहां के बसाए शाहजहानाबाद ( Shahjahanabad City ) से बाहर होने की वजह से ये वह जगह थी जहां टैक्स नहीं लगता था. इसी वजह से यह अनाज के गोदाम में बदलती चली गई. व्यापारी, टैक्स से बचने के लिए यहां अपना माल रखा करते थे.
पहाड़गंज ( Pahadganj ) के नाम में पहाड़ क्यों आया, इसे भी लेकर कुछ जानकारी मिलती है. दरअसल, गुजरात से शुरू होने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला का आखिरी छोर दिल्ली रिज है. कभी दिल्ली रिज के आसपास पहाड़ों के कई छोटे-मोटे टीले मौजूद हुआ करते थे.
इन्हीं में से एक टीले को काटकर बना था पहाड़गंज ( Pahadganj ) . हालांकि सदियों बाद, वह टीले तो नज़र नहीं आते हैं लेकिन दिल्ली रिज में आपको इसका आभास बखूबी होता है.
पहाड़गंज में आरके आश्रम मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर -2 से बाहर आते ही दाहिनी तरफ आपको दिखाई देता है, रामकृष्ण आश्रम ( RamKrishna Ashram ) का दिल्ली केंद्र. एक सुंदर इतिहास समेटे ये जगह आपको पहाड़गंज की उस तस्वीर से बिल्कुल उलट अहसास कराती है, जिसे आप देखते सुनते आए हैं.
रामकृष्ण मिशन ( Ramkrishna Mission ) ने दिल्ली केंद्र की शुरुआत एक किराये के घर से की थी. बाद में, 1931 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने संस्था को 2 एकड़ की जमीन अलॉट की. बाद में इसमें कुछ हिस्सा और जुड़ा.
आज यही रामकृष्ण मिशन ( Ramkrishna Mission ) का केंद्र, देश की राजधानी में आध्यात्मिकता और शांति का सबसे अहम केंद्रों में से एक है. रामकृष्ण मिशन के दिल्ली केंद्र पर हमने विस्तार से एक ब्लॉग लिखा है, आप इस लिंक पर जाकर उसे पढ़ सकते हैं.
देवी सती के अंग जहां जहां गिरे थे, उस जगह को शक्तिपीठ कहा जाता है. हालांकि ये जगह शक्तिपीठ तो नहीं है लेकिन देवी सती के दांत गिरने से जन्मी देवी बाराही का मंदिर ( Barahi Devi Mandir ) यहां पर आपका ध्यान यहां ज़रूर खींचता है.
पहले यह मंदिर कनॉट प्लेस में था और इसे बाद में 19वीं सदी में यहां शिफ्ट किया गया था. कहते हैं कि बाराही देवी, दिल्ली में 1724 में जंतर मंतर बनवाने वाले महाराजा जय सिंह द्वितीय ने ही वहीं नज़दीक में कहीं इस मंदिर ( Barahi Mata Mandir ) को भी बनवाया था. देवी बाराही उनकी कुलदेवी थी. बाद में, लुटियंस दिल्ली के बनने के वक्त इसे यहां स्थानांतरित किया गया.
ये मंदिर ऐतिहासिक है, लेकिन बावजूद इसके आपको इसके आसपास कोई रौनक दिखाई नहीं देती है. आपको एक बोर्ड दिखता है जिसपर बाराही माता का मंदिर ( Barahi Mata Mandir ) लिखा हुआ है.
इसी के पीछे मौजूद गली में प्रवेश करने पर आपको सबसे पहले दाहिनी ओर शिव मंदिर दिखाई देता है. इस शिव मंदिर के आगे एक कुआं भी हुआ करता था जिसे अब ढका जा चुका है. पुराने कबाड़ यहां बिखरे नज़र आते हैं और इस शिव मंदिर की संरचना भी पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है.
यहां से गली में आगे बढ़ने पर आखिरी छोर पर आपको मिलता है बाराही माता का मंदिर ( Barahi Mata Mandir ). यहां आसपास कभी खुला एरिया हुआ करता था लेकिन अतिक्रमण की वजह से अब एक गली ही शेष है.
अगर आप पहाड़गंज कभी भी आते हैं तो रामकृष्ण आश्रम और बाराही देवी का मंदिर ज़रूर आएं. सच मानिए दोस्तों, पहाड़गंज का बेशकीमती इतिहास है यहां, आपकी सोच बदल जाएगी.
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