Ram Nami Community इसी देश में एक समुदाय ऐसा भी है, जिसे अयोध्या Ayodhya में राम मंदिर Ram Mandir बनने की कोई चाह नहीं है, क्योंकि उन्होंने तो ‘राम नाम’ को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है। वे दशकों से ‘राम नाम’ को जीते आए हैं, और आज भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। वे कभी भगवान राम के मंदिर में नहीं जाते, फिर भी उन्हें रामनामी समुदाय ( Ram Nami Community ) कहा जाता है। क्यों? इस सवाल का जवाब काफी हद तक आपको इस तस्वीर में मिल गया होगा। क्लिक करके जानिए, क्या है रामनामी समुदाय ( Ram Nami Community ) की कहानी और राम नाम में उनकी आस्था का चेहरा क्या है।
5 अगस्त को Ram Mandir का भूमि पूजन, 5 गुंबदों के साथ ऐसा होगा डिज़ाइन
राम नाम से प्यार करने वाला यह रामनामी समुदाय छत्तीसगढ़ से संबंध रखता है। इस समुदाय का इतिहास दशकों पुराना है। करीब एक सदी पहले जब ‘नीची जाति’ के हिंदुओं को सवर्णों ने मंदिरों में घुसने से मना कर दिया और उनके कुंए भी अलग कर दिए, तब इन लोगों ने इस भेदभाव को चुनौती देने के साथ-साथ भगवान राम में अपनी श्रद्धा और भक्ति को एक अलग रूप में प्रस्तुत करने के लिए ‘राम नाम’ का सहारा लिया।
इन्होंने अपने पूरे शरीर (यहां तक कि जीभ और होठों पर भी) राम का नाम गुदवाना शुरू कर दिया। इस प्रकार वे सवर्णों को यह संदेश देना चाहते थे कि जाति, धर्म और अमीरी-गरीबी के बंधनों से परे भगवान का वास प्रकृति के कण-कण में है। अपने शरीर के किसी भी हिस्से में राम नाम लिखवाने वालों को ‘रामनामी’, माथे पर 2 राम नाम अंकित करने वालों को ‘शिरोमणि’, पूरे माथे पर राम नाम अंकित करने वालों को ‘सर्वांग रामनामी’ और शरीर के प्रत्येक हिस्से में राम नाम अंकित कराने वालों को ‘नखशिख रामनामी’ कहा जाता है।
Ayodhya Tours – श्रीराम जन्मभूमि के अलावा ये हैं अयोध्या के Best Tourist Spots
रामनामी समुदाय के युवा लोग अब पढ़ाई और काम के सिलसिले में दूसरी जगहों पर भी जाते हैं। युवा पीढ़ी पूरे शरीर पर राम का नाम गुदवाने से बचती है। युवा पीढ़ी को पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाना अच्छा नहीं लगता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे हमारी आस्था पर यकीन नहीं करते। अभी भी इस समुदाय में बच्चों के 2 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते कम से कम एक बार उनके शरीर के किसी हिस्से पर राम नाम का गोदना अनिवार्य है। ज्यादातर बच्चों के सीने पर ही यह गोदना कर दिया जाता है।
अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए ये रामनामी शराब-सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते। रोज राम का नाम जपते हैं और सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। यहां ‘ऊंच-नीच’ जैसी कोई चीज ही नहीं है। यहां लगभग हर घर में रामायण है, और हिंदू देवी-देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं।
छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय में गोदना के प्रति विशेष आकर्षण है। इस समाज को लोगों का निवास मुख्यतः रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ सारंगढ़ जांजगीर, मालखरौद, चन्द्रपुर, कसडोल और बिलाईगढ़ के करीब तीन सौ ग्रामों में है । इनकी जनसंख्या लगभग पांच लाख के ऊपर है। रामनामी समाज के लोग अपने चेहरे समेत पूरे शरीर में राम का नाम गुदवा लेते हैं। ऐसा ये अपनी राम के प्रति गहरी भक्ति के कारण करते हैं। शरीर पर राम का नाम गुदवाने का प्रचलन इस समाज में कब से शुरू हुआ है, इसकी सटीक जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं हैं, परंतु इस समाज के बुजुर्गों का कहना है कि हजारों वर्षों से उनके पूर्वज अपने शरीर पर राम नाम गुदवाते आ रहे हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी से यह परम्परा चली आ रही है।
रामनामी समाज में लड़का पैदा होने पर निश्चित उम्र में एक संस्कार के रूप शरीर पर राम नाम गुदवाया जाता है, लेकिन लड़कियों के शरीर पर राम नाम विवाह के बाद ही गुदवाने की प्रथा है। पहले रामनामी समाज के लोग पूरे शरीर चेहरे यहां तक की सिर में भी राम नाम गुदवाते थे, लेकिन समय के साथ अब लोगों में परिवर्तन आया है। अब समाज के युवा सिर्फ माथे, कलाई या शरीर के किसी एक अंग में गुदवाते हैं। इस समाज का हर समारोह श्रीराम पूजा और रामायण के आधार पर होता है। विवाह आडंबर विहीन व बगैर किसी तामझाम के होता है। कन्या पक्ष से किसी प्रकार का कोई दहेज नहीं लिया जाता रामायण को साक्षी मानकर समुदाय का प्रमुख व्यक्ति जयस्तंभ के सात फेरे दिलाकर पति-पत्नी घोषित करता है। इनका संत समागम रामनवमी और पौष एकादशी से त्रयोदशी तक होता है। बिलासपुर के शबरी नारायण में माघ मेला लगता है। लेकिन धीरे-धीरे ये प्रथा खत्म हो रही है।
इस संबंध में कई कहानियां प्रचलित है। कई जनजातियों की मान्यता है कि गोदना कराने से नजर नहीं लगती । मृत्यु के पश्चात सभी आभूषण उतार लिए जाते हैं लेकिन गोदना मृत्यु पर्यन्त साथ रहती है, जिसके कारण इसे अमर श्रृंगार भी कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि गोदना गुदवाने से स्वर्ग में स्थान मिलता है और परमात्मा गोदना वाली आत्मा को पहचान लेते हैं। जनजातीय मान्यता के अनुसार बिना गोदना गुदवाए नर-नारी को मृत्यु के पश्चात भगवान के समक्ष सब्बल से गुदवाना पड़ता है। स्वास्थ्य के दृष्टि से गोदना के कारण स्त्रियों को गठिया रोग नहीं होता और कई बुरी शक्तियों से गुदना उनकी रक्षा करती है।
एक समय था जब गोदना प्रथा का प्रचलन अधिक था अब धीरे-धीरे यह प्रथा दम तोड़ती जा रही है। नई पीढ़ी के लोग इस प्रथा को स्वीकार नहीं कर रहे हें। नई पीढ़ी का मानना है कि सम्पूर्ण शरीर में गोदना गुदवाने से शरीर की सुन्दरता बिगड़ जाती है। वह इस प्रथा को निभाने के लिए एक दो बिन्दी गुदवाने की बात स्वीकार करती हैं। लगभग 175 या 176 ही इस समुदाय के लोग होंगे जिनके पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू बना नजर आएगा।
दोस्तों, आप भी Travel Junoon के संग जुड़ सकते हैं और अपने लेख हजारों लोगों तक अपनी तस्वीर के साथ पहुंचा सकते हैं. आप अपना लिखा कोई भी Travel Blog, Travel Story हमें भेजें – GoTravelJunoon@gmail.com पर. हम उसे आपकी तस्वीर के साथ वेबसाइट पर अपलोड करें
Pushkar Full Travel Guide - राजस्थान के अजमेर में एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर-पुष्कर… Read More
Artificial Jewellery Vastu Tips : आजकल आर्टिफिशियल ज्वैलरी का चलन काफी बढ़ गया है. यह… Read More
Prayagraj Travel Blog : क्या आप प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े तीर्थयात्रियों के जमावड़े,… Read More
10 Best Hill Stations In India : भारत, विविध लैंडस्कैप का देश, ढेर सारे शानदार… Read More
Mirza Nazaf Khan भारत के इतिहास में एक बहादुर सैन्य जनरल रहे हैं. आइए आज… Read More
Republic Day 2025 : गणतंत्र दिवस भारत के सबसे खास दिनों में से एक है.… Read More