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Rajrappa Mandir Ramgarh : झारखंड के रामगढ़ में स्थित है रजरप्पा मंदिर, देवी की कथा, मंदिर का इतिहास जानिए

Rajrappa Mandir: भारतवर्ष की भूमि पर हजारों सिद्धपीठ हैं. इनमें एक महत्वपूर्ण सिद्धपीठ है Maa Chinnamastike Mandir. Maa Chhinnamasta मंदिर, अपनी तांत्रिक शैली के लिए चर्चित है. मां छिन्नमस्ता का ये पावन मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है. इसकी बनावट, असम के गुवाहाटी में स्थित Kamakhya Mandir से बहुत मेल खाती है. इस वीडियो में आपको मां छिन्नमस्ता के मंदिर की पूरी जानकारी मिलेगी. साथ ही, नजदीक स्थित Tuti Jharna Mandir, Kaitha Shiv Mandir और Patratu Dam के बारे में भी हम आपको बताएंगे. आइए इस सफर में आगे बढ़ते हैं…

15 November साल 2000 के दिन झारखंड राज्य अस्तित्व में आया था. इसके अस्तित्व में आने के 7 साल बाद 12 सितंबर 2007 को रामगढ़ जिला बनाया गया. रामगढ़ जिले को तब Hazaribagh District से अलग करते बनाया गया था. ये पूरा क्षेत्र कोयला, स्टील सहित कई दूसरी खनिज संपदाओं से भरा हुआ है. नजदीकी जिलों में Hazaribagh, Bokaro, Ranchi है.

दस लाख से भी कम आबादी वाला रामगढ़ शहर, भारत की दो सबसे पुरानी रेजिमेंट का केंद्र भी है. 1761 में बनी Punjab Regiment और 1846 में बनी Sikh Regiment का केंद्र यहीं पर है. इसी वजह से यहां स्थित रेलवे स्टेशन को Ramgarh Canttonment नाम दिया गया. इन दोनों रेजीमेंट्स के जवानों ने अफगान युद्ध, टोफ्रेक की लड़ाई, एबिसिनिया की लड़ाई, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध, और कई अन्य युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया है.

इसी रामगढ़ की धरती पर स्थित है प्राचीन मंदिर जिसे समस्त दुनिया Maa Chhinnamasta के नाम से जानती है. इस मंदिर को मां छिन्नमस्तिके के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. रामगढ़ से 27 किलोमीटर दूर है Rajrappa. राष्ट्रीय राजमार्ग 20 से निकलने वाले चितरपुर-रजरप्पा मार्ग के आखिरी सिरे पर ये मंदिर स्थित है. प्राचीन मंदिर, भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है.

Rajrappa के इस क्षेत्र में छिन्नमस्तिके मंदिर के साथ ही Mahakali Temple, Surya Temple, Das Mahavidya Temple, Babadham Temple, Bajrang Bali Temple, Shankar Temple और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर मौजूद हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर और दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की भव्यता को और बढ़ा देता है.

दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है.

मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों की अलग अलग राय दिखाई देती है. कुछ मंदिर का निर्माण 6,000 वर्ष पहले का बताते हैं, तो कुछ इसे महाभारत युग का मानते हैं.

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इस मंदिर में बड़े पैमाने पर विवाह भी संपन्न कराए जाते हैं. मंदिर में प्रातःकाल 4 बजे मां का दरबार सजना शुरू होता है. भक्तों की भीड़ भी सुबह से कतारबद्ध दिखाई देती है. शादी-विवाह, मुंडन-उपनयन के लगन और दशहरे के मौके पर भक्तों की लाइन कई किलोमीटर दूर तक पहुंच जाती है..

मंदिर के आसपास ही फल-फूल, प्रसाद की कई दुकानें हैं. आमतौर पर लोग यहां सुबह आते हैं और दिनभर पूजा-पाठ और मंदिरों के दर्शन करने के बाद शाम होने से पहले ही लौट जाते हैं. ठहरने की अच्छी सुविधा यहां अभी उपलब्ध नहीं हो पाई है.

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां के तीन नेत्र हैं. मां एक पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे रति और कामदेव शयनावस्था में हैं. मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाला से सुशोभित है. बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर है, आभूषणों से सुसज्जित मां दिव्य रूप में हैं.दाएं हाथ में तलवार व बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं.

मंदिर का मुख्य द्वार पूरबमुखी है. मंदिर के सामने बलि का स्थान है. बलि स्थान पर प्रतिदिन औसतन 100-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है. मंदिर की ओर मुंडन कुंड है. इसके दक्षिण में एक सुंदर निकेतन है जिसके पूर्व में भैरवी नदी के तट पर खुले आसमान के नीचे एक बरामदा है. इसके पश्चिम भाग में भंडारगृह है.

मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि प्राचीनकाल में छोटा नागपुर में रज नाम के राजा राज करते थे. राजा की पत्नी का नाम रूपमा था. इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया.

एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे. रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या देखी.

उसने राजा से कहा- हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी. राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर-उधर भटकने लगे.इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई. उसका रूप अलौकिक था. यह देख राजा भयभीत हो उठे.

राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं. कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं. मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी.

देवी बोली- हे राजन, मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी. तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया.

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा.

बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं। वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं. तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं.

रजरप्पा के स्वरूप में अब बहुत परिवर्तन आ चुका है. तीर्थस्थल के अलावा ये पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है.आदिवासियों के लिए ये त्रिवेणी है. मकर संक्रांति के मौके पर लाखों श्रद्धालु आदिवासी और भक्तजन यहां स्नान व चौडाल प्रवाहित करने तथा चरण स्पर्श के लिए आते हैं. अब ये पर्यटन स्थल का मुख्य केंद्र है.

दामोदर नदी || Damodar River

जिस दामोदर नदी के किनारे छिन्नमस्ता मंदिर स्थित है, वो दामोदर नदी पश्चिम बंगाल और झारखंड में बहने वाली एक प्रमुख नदी है. ये नदी छोटा नागपुर की पहाड़ियों से 610 मीटर की ऊंचाई से निकलती है, जो लगभग 290 किमी का सफर झारखंड में तय करती है. उसके बाद पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर 240 किमी का सफर तय करके हुगली नदी में मिल जाती है…

आप इस नदी की सुंदरता को यहां करीब से निहारिए. तस्वीरें लेकर आप अपनी यात्रा को यादगार बना सकते हैं…

प्राचीन कैथा शिव मंदिर || Kaitha Shiv Mandir

दुनियाभर में प्रभु शिव जी के वैसे तो कई मंदिर हैं. भारत में भी हमें शिव जी के कई मंदिर देखने को मिलेंगे, जैसे केदारनाथ, सोमनाथ, काशी विश्‍वनाथ, अमरनाथ, लिंगराज आदि. इन मंदिरों पर रोजाना अधिक भीड़ देखने को मिलती है. हर एक मंदिर अपने इतिहास के वजह से देशभर में प्रसिध्द हैं. लेकिन रामगढ़ में शिव जी के कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जिनके बारें में आप नहीं जानते हैं और वो काफी रहस्यमय हैं. आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे मंदिर जिसके बारे में तो लोगों ने बहुत कम सुना होगा, लेकिन इसकी धार्मिक मान्यता काफी ज्यादा है.

रामगढ़ में ही कैथा स्थित प्राचीन शिव मंदिर लोगों के आस्था का केंद्र बिंदु है. ये मंदिर रामगढ़ से छिन्नमस्ता मंदिर के रास्ते में स्थित है. मंदिर का निर्माण 500 वर्ष पूर्व पद्म राजा दलेल सिंह द्वारा तब करवाया गया था जब रामगढ़, पद्मा राज्य की राजधानी हुआ करती थी. मंदिर में गुफा भी बनी हुई है. अंदर ही अंदर तालाब तक जाने का रास्ता है. बताया जाता है कि राजा-रानी जब यहां पूजा करने आते थे तो गुफा के रास्ते ही तालाब से स्नान कर मंदिर में प्रवेश कर पूजा करते थे..

मंदिर के पहले तल पर शिवलिंग स्थापित है. ऊपर जाने के लिए दो सीढ़ी बनी हुई है. चूना-सुर्खी से बने इस मंदिर को वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया था. मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां के जल से कान का बहना ठीक हो जाता है.

इस दो मंजिले मंदिर का बेलनाकार गुंबद व प्राचीन लखौरी ईंटों का प्रयोग इसे अद्भुत बनाता है.मंदिर की बनावट को बारीकी से देखने से लगता है कि मंदिर के ऊपरी भाग में शिव मंदिर तो नीचे गुफानुमा फौजी पोस्ट था. मंदिर के नीचे भाग के चारो ओर छोड़े गए छोटे खिड़कीनुमा दीवार से तैनात राजा के सिपाही तीर-धनुष व अन्य हथियार के साथ तैनात रहते थे.

मंदिर के नीचे गुफा है, जहां कैथेश्वरी मां की शक्ति विद्यमान है.इसी कारण इस शिव मंदिर का नाम कैथा शिव मंदिर पड़ा। यह मंदिर गोला रोड के एनएच 23 पर रामगढ़ शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है. सन 1670 में बना यह शिव मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। मंदिर की बनावट मुगल, बंगाली, राजपूत शैलियों का मिश्रण है.

टूटी झरना मंदिर || Tuti Jharna Mandir

रामगढ़ में ही शिव जी का एक और बेहद प्राचीन मंदिर स्थित है. झारखंड के रामगढ़ में बसा एक मंदिर जिसे ‘टूटी झरना’ के नाम से जाना जाता है. मंदिर में भोलेनाथ का जलाभिषेक साल के बारह महीने चौबीस घण्टें होता रहता है. वैसे तो आमतौर पर लोग 2 या 3 बार जलाभिषेक करते हैं, लेकिन 24 घंटों तक जलाभिषेक किसी को भी हैरान कर सकता है. ये मंदिर, रामगढ़ कैनटोमेंट इलाके से लगभग 7 किमी की दूरी पर स्थित है.

इस मंदिर का इतिहास साल 1925 से जुड़ा हुआ है. जब अंग्रेज रामगढ़ जिले से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे. पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें जमीन के अंदर कुछ चीज दिखाई पड़ी. अंग्रेजों ने पूरी खुदाई की और आखिरी में मंदिर पूरी तरह से नजर आ गया. मंदिर के अंदर भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली थी. प्रतिमा की नाभी से अपने आप जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता रहता है.

बता दें कि मान्यता के अनुसार प्रभु शिव जी के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं. यहां लगे हुए दो हैंडपंप भी रहस्यों से घिरे हुए हैं. यहां लोगों को पानी के लिए हैंडपंप चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि इसमें से अपने-आप पानी नीचे गिरता रहता है. बता दें कि लोग दूर-दूर से यहां पूजा करने आते हैं और साल भर मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

पतरातू डैम || Patratu Dam

रामगढ़ की यात्रा में अब चलते हैं पतरातू डैम की ओर. रामगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पतरातू डैम. रांची से इसकी दूरी 35 किमी की है. पतरातू रेलवे स्टेशन से छह किमी और भुरकुंडा रेलवे स्टेशन से 15 किमी है। पिठौरिया से इसकी दूरी 22 किमी और ओरमांझी से 30 किमी की दूरी का सफर तय कर इस डैम का मनमोहक नजारा लिया जा सकता है। काफी मनमोहक और सुकून देनेवाली यहां की वादियां पिकनिक का आनंद उठाने वाले लोगों को बार-बार आने के लिए मजबूर करती हैं.

तीन तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ पतरातू डैम का जीवन रेखा नलकारी नदी है। जो रांची-पिठोरिया और पतरातू तालाटांड के पहाड़ियों से निकलकर पतरातू डैम पहुंचती है. पतरातू डैम पर बनाया गया है पतरातू लेक रिसॉर्ट. इस रिसॉर्ट में आने के लिए प्रति व्यक्ति टिकट 20 रुपये है. चार साल से अधिक उम्र के बच्चों की टिकट लेनी होती है. यहां बच्चों के लिए ढेरों झूले हैं. बच्चे यहां आकर खूब इंजॉय करते हैं. यहां झारखंड की संस्कृति से जुड़ी वस्तुएं भी खरीदारी के लिए मिलती हैं.

यहां पर्यटन विहार और सरोवर विहार है. यहां भोजन की भी अच्छी व्यवस्था है. यहां पर ऐसी बोट उपलब्ध हैं जिनपर आप सवार होंगे तो ऐसा महसूस होगा कि आप पतरातू डैम में नहीं बल्कि कश्मीर के डल झील की सैर कर रहे हैं. डैम क्षेत्र में नौका विहार का भी अपना एक अलग मजा है. डैम के किनारे बना प्रसिद्ध देवी स्थल मां पंचबहिनी मंदिर भी लोगों को अपनी ओर खींचता है. पर्यटक वहां जाकर पूजा-अर्चना कर मत्था टेकते हैं.

रामगढ़ की यात्रा के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन रामगढ़ कैंट स्टेशन है. आप अगर पतरातू जाना चाहते हैं, तो वहां भी एक रेलवे स्टेशन मौजूद है. उसका नाम भी पतरातू है. कुछ और भी रेलवे स्टेशन हैं, जिनमें रांची रोड, बरकाकाना, रांची और कोडरमा है. लेकिन इन सभी की दूरी यहां से बढ़ जाती है.

आपको रामगढ़ कैंट स्टेशन से ऑटो मिल जाता है. आप उसे बुक करके इन सभी जगहों पर घूम सकते हैं.

बात करें नजदीकी हवाई अड्डे की तो यहां से नजदीकी एयरपोर्ट रांची एयरपोर्ट है और उसकी यहां से दूरी 70 किमी है.

दोस्तों रामगढ़ में ठहरने के लिए होटल भी मौजूद हैं. आप अपने बजट के हिसाब से इन होटलों में बुकिंग कर सकते हैं.

वीडियो पर अपनी राय जरूर दें. ये हमारे लिए बेहद जरूरी है. मिलते हैं अगली बार ऐसी ही एक नई पेशकश में. अपना ध्यान रखिए… और देखते रहिए ट्रैवल जुनून…

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