Navratri Special- चैत्र नवरात्र शुरू हो चुके हैं और इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा करने का विधान है. इस दौरान भारत के अलग-अलग कोनों में फैले हुए मां के प्रसिद्ध मंदिरों में भारी संख्या में भक्तों का जमावाड़ा लगता है.
नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था. बाद में इसे दोबारा बनाया गया. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं.
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर. मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है. शक्तिपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहां-जहां भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे. शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा गिरी थी.
कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर है. माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.
हमारे देश में अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां बार-बार जाने का मन करता है. एक ऐसा ही मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है. यह है मां करणी देवी का विख्यात मंदिर. यह भी एक तीरथ धाम है, लेकिन इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं.
कोलकाता का मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर यहां के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण सन 1847 में शुरू हुआ था. कहते हैं जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार मां काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए. उसके बाद इस भव्य मंदिर में मां की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई. सन् 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है.
यह मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है. माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है. इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है. श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है. मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है. शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं. मां अम्बा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति मां के भक्तों में अपार श्रद्धा है. मंदिर के गर्भगृह में मांकी कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है. यहां मां का एक श्री-यंत्र स्थापित है. इस श्री-यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं. नवरात्र में यहां का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है.
दुर्गा मंदिर वाराणसी के रामनगर में स्थित है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक बंगाली महारानी ने 18 वीं सदी में करवाया था. यह मंदिर, भारतीय वास्तुकला की उत्तर भारतीय शैली की नागारा शैली में बनी हुई है. इस मंदिर में एक वर्गाकार आकृति का तालाब बना हुआ है जो दुर्गा कुंड के नाम से जाना जाता है. यह इमारत लाल रंग से रंगी हुई है जिसमें गेरू रंग का अर्क भी है. मंदिर में देवी के वस्त्र भी गेरू रंग के है. एक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को मनुष्यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी. नवरात्रि और अन्य त्योहारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्तगण श्रद्धापूर्वक आते हैं.
श्री महालक्ष्मी मंदिर विभिन्न शक्ति पीठों में से एक है और महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है. यहां जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर आता है मां के आशीर्वाद से वह मुराद पूरी हो जाती है. भगवान विष्णु की पत्नी होने के नाते इस मंदिर का नाम माता महालक्ष्मी पड़ा.
श्रीसंगी कलिका मंदिर काली मां को समर्पित है और यह कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है. यह कर्नाटक का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और यहां पर मां दुर्गा के काली रूप की पूजा करने का विधान है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में स्थित है दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर. हसीन वादियों के लिए मशहूर यह मंदिर काफी पुराना है. ऐसी मान्यता है कि यहां सती का दांत गिरा था, जिसके कारण जगह का नाम दंतेश्वरी पड़ा.
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