Morena Nareshwar Temple Fact : मुरैना चंबल के बीहड़ों के लिए जाना जाता है. बीहड़ों ने इस भूमि को कुख्यात प्रसिद्धि दिलाई है. इस क्षेत्र में महाभारत काल से लेकर मध्यकाल तक के कुछ स्मारकों के साथ कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल हैं. ये स्मारक देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं. इनमें से अधिकांश स्थल मुरैना शहर और ग्वालियर शहर के करीब हैं, जिसके नजदीक अपने आप में बहुत कुछ है.
नरेश्वर 8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान निर्मित अपने खूबसूरत मंदिरों के लिए जाना जाता है. इन मंदिरों के समूह की खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी और प्रक्रिया अभी भी जारी है. पहाड़ के तीन किनारों पर अभी भी लगभग 21 मंदिर खड़े है. नरेश्वर मंदिर नागर शैली के हैं और गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासनकाल में बनाए गए थे.
पहाड़ पर एक तालाब है जिसमें सीढ़ियां हैं जो मंदिरों से घिरी हुई हैं. पहाड़ की चट्टानों को काटकर टैंक बनाया गया है. बरसात के दिनों में तालाबों से गिरने वाले झरने का पानी शिवलिंग को छूकर निकल जाता है. ऐसे में यहां का नजारा काफी मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है. यहां पर शिव और हनुमान जैसे विभिन्न देवताओं की मूर्तियां हैं.
आपको बता दें कि यहां पहुंचने का रास्ता ठीक नहीं है. उबड़-खाबड़ रास्तों से कुछ किलोमीटर चलने के बाद यह जगह जंगल से घिरे पहाड़ों में मौजूद है.
वर्तमान में यहां 21 मंदिरों की शृंखला है, जिनमें एक मंदिर हरसिद्धि माता का है, बाकी मंदिरों में शिवलिंग विराजे हैं. 21 मंदिरों के अलावा 20 से 25 मंदिर पत्थरों के रूप में बिखरे पड़े हैं. यहां के मंदिरों का निर्माण वर्गाकार हुआ है, जो देश में कहीं नहीं दिखाई देता. नरेश्वर मंदिर का मुख्य शिवलिंग भी वर्गाकार यानी चौकोर है.
आश्चर्य से भरे इस स्थान पर जल निकासी और संरक्षण का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. पहाड़ी की चोटी पर मंदिरों के पीछे दो तालाब हैं, जो बरसात में लबालब हो जाते हैं. इन तालाबों का पानी मंदिर के ऊपर, बीच से और नीचे होकर इस तरह निकाला गया है कि इनसे मंदिरों को आज तक कोई नुकसान नहीं हुआ.
शिवलिंग का जलाभिषेक भी अपने आप इस पानी से होता है. जब बरसात में तालाब लबालब होते हैं, तब शिवलिंग का अभिषेक प्राकृतिक रूप से ही होता है.
एएसआई द्वारा यहां जीर्णोद्घार काम शुरू करवाने से पहले धसके पड़े पत्थर के ढेरों को खंगाला गया. इन ढेरों से यहां बने मंदिरों के कई हिस्से निकले. इन हिस्सों को जोड़कर कुछ मंदिर फिर से खड़े किए जा चुके हैं. इनमें से एक हनुमान मंदिर भी है. इस मंदिर समूह में हनुमान मंदिर के अलावा एक दुर्गा मंदिर भी है, जो ऊंचाई पर अलग बना हुआ है.
नरेश्वर मंदिर तक का रास्ता बेहद दुर्गम है. ग्वालियर से करीब 30 किमी और मुरैना से करीब 50 किमी दूर स्थति नरेश्वर शिव मंदिरों की श्रृंखला एक तरह से तीन जिलों के जंक्शन पर है. ये तीन जिले हैं भिंड, मुरैना और ग्वालियर. हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हो सका है कि मंदिरों को गुप्त काल में बनवाया गया या फिर गुर्जर प्रतिहार काल में.
नरेश्वर मंदिर के नजदीक ही एक गांव है. स्थानीय लोगों ने मंदिर पर तैनात ASI गार्ड ने हमें बताया कि मंदिर किसी पुराने नगर का हिस्सा था. किसी जमाने में यहां से बड़ी सड़क होकर गुजरा करती थी. तब यहीं पर पान की खेती भी हुआ करती थी. पुरात्तव विभाग को खुदाई में नगर के प्रवेश द्वार भी मिले हैं.
नरेश्वर मंदिर में ऊपर की ओर जाकर आप प्राचीन काल में बनाए गए शिव मंदिरों की नींव दिखाई देती है. यहां पर आपको शिवलिंग पर जलाभिषेक के बाद बहने वाले जल के लिए बनाई गई नाली भी दिखाई देती है. नाली से होकर जल तालाब में जाता था. आज भी ये तालाब वर्षा के जल से भरा रहता है.
नरेश्वर मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प बात ये भी है कि यहां का मुख्य शिवलिंग वर्गाकार यानी चौकोर है. ऐसा चोकौर शिवलिंग सिर्फ भोपाल के भोजपुर मंदिर में ही दिखाई देता है. हालांकि, नरेश्वर मंदिर में तलाशे गए पुराने शिवलिंगों में से कई अंडे के आकार के, कई पिंडी व मणि के आकार के हैं.
जब आप नरेश्वर मंदिर पहुंचते हैं तो आपके दिमाग में बटेश्वर मंदिरों की श्रृंखला भी उभरने लगती है. ये मंदिर भी लगभग उसी शैली में बनाए गए थे. जिला पुरातत्व अधिकारी अशोक शर्मा ने दैनिक जागरण अखबार को बताया था कि बटेश्वर मंदिर समूह 8वीं से 10वीं सदी के बीच गुर्जर-प्रतिहार राजवंश में बने और 13वीं सदी में नष्ट हो गए थे या कर दिए गए थे…
वहीं, नरेश्वर मंदिर समूहों को गुप्तकाल यानी तीसरी से पांचवीं सदी के बीच बनाया गया और इनका विस्तार 8वीं से 9वीं सदी के बीच बड़े पैमाने पर हुआ. बटेश्वरा में अभी भी 140 मंदिर भग्नावस्था में हैं, तो नरेश्वर में भी 20 से ज्यादा मंदिरों के अवशेष या ढांचे डेढ़ वर्ग किलोमीटर के इलाके में पत्थरों की तरह बिखरे पड़े हैं.
मुरैना रेल के माध्यम से पूरे भारत से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. यह मुंबई दिल्ली कोलकाता बंगलुरु जैसे कई महत्वपूर्ण शहरों से सीधे जुड़ा हुआ है यदि आप उड़ान के माध्यम से यात्रा करना चुनते हैं, तो आपको ग्वालियर हवाई अड्डे के लिए उड़ान लेनी होगी, जो नजदीकी है मुरैना के लिए हवाई अड्डा. ग्वालियर शहर मुरैना से सिर्फ 40 किमी दूर है. दोनों शहर बसों और प्राइवेट कैब सेवा के माध्यम से बहुत अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं.
नजदीकी हवाई अड्डा ग्वालियर हवाई अड्डा है जो मुरैना से लगभग 50 किलोमीटर दूर है.
मुरैना रेलवे स्टेशन उत्तर मध्य क्षेत्र के अंतर्गत मुरैना जिले का एक मुख्य रेलवे स्टेशन है. इसका कोड एनसीआर है. स्टेशन में दो प्लेटफार्म होते हैं. कई बड़े शहरों के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं.
मुरैना NH-3 हाईवे पर NH-3 आगरा-बॉम्बे रोड पर स्थित है
यह ग्वालियर से लगभग 40 किमी और धौलपुर से लगभग 30 किमी दूर है.
मुरैना से नूराबाद कस्बे से होकर रिठौरा और रिठौरा से नरेश्वर पहुंचा जा सकता है. इसी तरह ग्वालियर से मालनपुर होकर यहां पर पहुंचा जा सकता है. मंदिर से करीब तीन किमी पहले ही वाहनों को छोड़ना पड़ता है और पैदल ही नरेश्वर के मंदिरों तक पहुंचा जा सकता है.
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