नई दिल्ली. भारत में ऐसी कई जगह है जहां ऐसे शिवलिंग मौजूद है, जिसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी। इनमें से कई शिवलिंग ऐसे हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इनकी स्थापना खुद पांडवों ने की थी। तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ शिवलिंग के बारे में गंगेश्वर महादेव (Gangeshwar mahadev) मंदिर दमन दीव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में पांच शिंवलिंग एक साथ स्थापित है। इसकी मान्यता है कि वनवास और अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां इन शिवलिंग की स्थापना की थी।
सागर की लहरें शिवलिंग का जलाभिषेक करती
भारत में कई ऐसे शिव मंदिर हैं जहां सागर की लहरें शिवलिंग का जलाभिषेक करती हैं। दीव में गंगेश्वर महादेव Gangeshwar mahadev के नाम से मशहूर शिव मंदिर में पांच शिवलिंग जहां सागर की लहरें इन शिवलिंगों से टकराकर उनका जलाभिषेक करते हुए लौटती हैं। ऐसा ही एक मंदिर गुजरात के भावनगर में भी है। यहां कोलियाक तट से तीन किलोमीटर अरब सागर में निष्कलंक महादेव का मंदिर है। इस मंदिर में भी सागर की लहरें शिवलिंग पर अपना जल अर्पित करती हैं। यहां लोग ज्वार के उतरने का इंतजार करते हैं और फिर दर्शन के लिए पैदल ही मंदिर के अंदर तक जाते हैं। कई बार तो ज्वार इतना तेज उठता है कि बस मंदिर की पताका और खम्भ ही दिखता है।
ये है मान्यता
Gangeshwar mahadev मंदिर में शिवजी के पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं। पांचों शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी है। पांचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है। इनका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। कहते हैं कि महाभारत की युद्ध समाप्ति के बाद पांडव बड़े दुखी हुए कि उन्हें अपने ही सगे-सम्बन्धि यों की हत्या का पाप लगा है। श्रीकृष्ण के कहे अनुसार वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पार पहुंचे और भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे। भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से खुश हुए और पांचो भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वहीं पांचों शिवलिंग अभी भी हैं। जिस चबूतरे पर ये शिवलिंग बनें वहां पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी हैं। जिसे पांडव तालाब कहते हैं। श्रद्धालु पहले उसमें अपने हाथ पैर धोते हैं और फिर शिवलिंगों की पूजा अर्चना करते हैं।
यह मंदिर ‘सीशोर मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शिव लिंग समुद्र के किनारे पर स्थित है। समुद्र में ज्वार आने पर ये शिवलिंग समुद्र के पानी में डूब जाते हैं। यह दृश्य बेहद सुंदर होता है। देखकर ऐसा ही लगता है मानों खुद सागर अपनी लहरों से भगवान शिव की चरण वंदना कर रहा हो।
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