Morena to Kutwar Mandir Tour – यह ब्लॉग, मुरैना ( Morena Tours ) में मेरी यात्रा के दूसरे दिन पर आधारित है. इस ब्लॉग में आप मुरैना में मेरी यात्रा ( Morena Tours ) के दूसरे दिन के शानदार सफ़र का वृत्तांत पढ़ेंगे. अगर आप मुरैना घूमने ( Morena Tours ) जा रहे हैं और आपके शेड्यूल में ककनमठ मंदिर की यात्रा ( Kakanmath Mandir Tours ), सिहोनिया जी का जैन मंदिर ( Jain Mandir Sihoniya Ji ), कुतवार का कुंती मंदिर ( Kunti Mandir Kutwar ), मितावली का 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali ), शनिचरा धाम ( Shanichara Dham ) और बटेश्वर के मंदिर ( Bateshwar Mandir ) हैं, तो मेरी यात्रा के ब्लॉग आपके बेहद काम आ सकते हैं. आप ऊपर सर्च बॉक्स में अंग्रेज़ी में Morena या हिन्दी में मुरैना लिखकर मेरे लिखे सभी ब्लॉग को ढूंढ सकते हैं.
मुरैना में मेरे पड़ाव के दूसरे दिन मुझे Morena to Kutwar Mandir Tour के लिए निकलना था. मैं सुबह सुबह अच्छे बालक की तरह उठ चुका था. नहा-धोकर थोड़ा सा ईश्वर को भी याद कर लिया था. अनिल जी के आने में अभी वक्त था और आठ का वक्त भी समय लेने वाला था आने में, सो मैं चल दिया नीचे. सुबह का मामला ही अलग था. जैसे किसी बॉलीवुड फिल्म में छोटे शहर वाली सुबह दिखाई जाती है, वैसी ही. अखबार वाला अखबार बांटता हुआ, एक-दो लोग शॉल ओढ़े हुए, दूध वाला दूध बांटता हुआ… कमाल की सुबह थी मुरैना की.
मैं रेलवे स्टेशन वाली इस रोड पर बढ़ा जा रहा था और साथ में आज की यात्रा ( Morena to Kutwar Mandir Tour ) की प्लानिंग भी किए जा रहा था. स्टेशन के ठीक सामने एक तिराहा था. इसी तिराहे पर एक ओर तो मुरैना रेलवे स्टेशन ( Morena Railway Station ) था और दूसरी ओर था एक रास्ता जो मुख्य बाज़ार की ओर जाता था.
इसी कोने पर एक भाई साब ठेले पर पोहे बेच रहे थे. अब मध्य प्रदेश आओ और नाश्ते में पोहे न खाओ, ऐसा हो सकता है. नोएडा की फिल्म सिटी में जो पोहे 30 रुपये के मिलते हैं और दोबारा प्याज़ मांगने पर ठेले वाले आंखें तरेर कर देखते हैं, वह पोहा यहां मात्र 10 रुपये का मिला, जी हां भाईयो बहनों मात्र 10 रुपये का.
अब दिल्लीवाले दोबारा प्याज़ न मांगे, ऐसा हो सकता है. मैंने भी दोबारा प्याज़ मांगी. पोहे वाले भैया ने भी दिल खोलकर खिलाया. कमाल की सुबह और कमाल का पोहेवाला. वाह से आहा तक. मज़ा बांध दिया भाई ने. अब जब सुबह इतनी प्यारी हो तो दिन खूबसूरत होने ही वाला था.
मैं आज की यात्रा ( Morena to Kutwar Mandir Tour ) के लिए जब वापस धर्मशाला की ओर बढ़ा, तब तक अपने अनिल जी भी आ चुके थे. अनिल जी को लेकर मैं अपने रूम में गया. वहां उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से मुझे करह आश्रम, कुतवार, मितावली की बात तो बताई ही, डकैतों के सिद्धांत और उसूल भी बता डाले. है न कमाल की बात. उन्होंने मुझे डाकू माधव सिंह ( Dacoit Madhav Singh ) की कहानी सुनाई. मुरैना में डाकू माधव सिंह का किस्सा सुनकर मानों मेरे रोंगटे तन चुके थे. और तो और, 70 के दशक वाली बॉलीवुड फिल्में भी दिमाग में घूमने लगी थीं.
अनिल जी के साथ संवाद तब और रोचक हो गया जब उनसे मेरा एक और परिचय निकल आया. वे मेरे एक नहीं दो-दो मित्रों के जानने वाले निकल गए. अब भला क्या चाहिए था. अब मैंने रूम लॉक किया और अनिल जी के साथ नीचे आ गया. कमरे का उस दिन का किराया चुकाया और बढ़ गया आज की यात्रा ( Morena to Kutwar Mandir Tour ) की शुरुआत ऑटो स्टैंड की ओर.
बड़ी चिकचिक झिकझिक के बाद, मुरैना यात्रा के दूसरे दिन 1000 रुपये में एक ऑटो दिनभर के लिए बुक कर पाया. सौदा तो हुआ था कि इतने में वे मुझे कुतवार, मितावली, बटेश्वर, शनिचरा मंदिर और करह आश्रम लेकर जाएंगे. लेकिन आगे आप जानेंगे कि मैं कहां जा पाया और कहां नहीं. खैर, ऑटो में ( Morena to Kutwar Mandir Tour ) बैठकर एक गलती समझ में आई.
ये गलती ऐसी थी कि जब शाम को मेरी विदिशा की टिकट है ही. साढ़े 6 की ट्रेन है ही तो क्यों नहीं मैंने धर्मशाला का कमरा खाली कर दिया. बैग ऑटो में रख सकता था और ऑटो तो मुझे शाम को यहीं छोड़ देता. ऐसा करके मैं अपना 350 रुपये बचा लेता. लेकिन अब पछताए क्या होता जब दिनभर का दे दिया किराया. है न? कमरे का किराया दे चुका था. सो पछतावा मैंने कलेजे से निकालकर बारिश की बूंदों में बहा दिया.
अब हम बढ़ चले थे कुतवार की ओर. कुतवार पांडवों का ननिहाल है. यहीं पर देवी कुंती का एक मंदिर ( Kunti Mandir Kutwar ) है. यहां से आसन नदी बहती है. मंदिर के समीप पहने वाली इसी नदी में मां कुंती ने कर्ण को बहाया था. यहां शिला पर आज भी सूर्य देवता के घोड़ों के निशान देखे जा सकते हैं.
जब ऑटो ने मुख्य मार्ग को छोड़ा और कुतवार के लिए एक वीराने में चल रहा था, तब मेरी अक्ल के ढक्कन खुले. मैं जहां एक दिन पहले बस से जाने की सोच रहा था, वहां बगैर साधन या वाहन बुक किए पहुंच पाना असंभव है.
मुरैना की हरी भरी लहलहाती खेती ( Farming in Morena ) ने मुझे आकर्षित किया तो एक पेड़ के नीचे ऑटो रुकवा लिया. यहां मैंने खेत देखे और वीडियो भी बनाया. यहां मैंने देखा कि मुरैना भर में लोग अपने पूर्वजों की याद में छतरियां बनवाते हैं. यह रिवाज यहां हर जगह है.
पहले तो मुझे ये मज़ार जैसा लगा था लेकिन अपने ऑटो वाले भैया ने मेरी जानकारी को दुरुस्त कर दिया.
कुतवार मंदिर ( Kunti Mandir Kutwar ) जैसे जैसे करीब आता जा रहा था, रास्ता और भी खराब होता जा रहा था. खुशी ये थी कि मार्ग का काम चल रहा था और कुछ दिन में ये तैयार होने वाला था. कुतवार डैम ( Kutwar Dam ) पर राजवीर भाई ने खुद ही ऑटो को रोका. यहां गांव के दो लड़के मुझे मिले. मैंने उनसे जानकारी ली तो पता चला कि ये इलाका गुर्जर बाहुल्य आबादी वाला है.
कुतवार डैम ( Kutwar Dam ) के आसपास की खूबसूरती देखते ही बन रही थी दोस्तों. कमाल का नज़ारा था. बारिश ने तो चार चांद लगा दिए थे कुतवार डैम ( Kutwar Dam ) के आसपास. मुझे हर जगह हर दिशा में कुछ न कुछ ऐतिहासिक इमारतें दिखाई दे रही थीं. सोचा कहां कहां जाऊं. ये सब तो अपने वाहन से ही संभव हो सकता है.
कुतवार डैम ( Kutwar Dam ) पर कुछ देर रुकने के बाद हम बढ़ चले कुतवार मंदिर की ओर. मंदिर पर पहुंचते पहुंचते बारिश तेज़ हो गई. यहां जो महात्मन थे, वह कहीं जाने की जल्दी में थे. उनका कोई कार्यक्रम फिक्स था. मैंने बाकी 4-5 लोगों से बात करना चाहा तो उन्होंने मुझे महात्मा जी से ही बात करने को कहा.
मैं उनके पास गया और विनम्रता से कहने लगा. मैंने अनुरोध किया कि अगर आप कुछ जानकारी मंदिर के बारे में दे पाएं तो बहुत मेहरबानी होगी. महात्मा ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया और जानकारी देने लगे.
ये मंदिर ऐसी जगह बना है जहां कभी ऋषि दुर्वासा ने चातुर्मास किया था. उस दौरान देवी कुंती ने उनकी सेवा की थी. दुर्वासा के ही वरदान का फल था कि कुंती ने सोच मात्र से ही कर्ण को जन्म दे दिया था. महात्मा की दी गई जानकारी ने मेरे ह्रदय को छू लिया.
यहां एक शिवलिंग भी है, जिसका आकार घटता-बढ़ता रहता है. आप ये पूरा वीडियो नीचे देख पाएंगे.
अब बारी थी वह जगह देखने की जहां कुंती को सूर्य देवता ने दर्शन दिए थे और यहीं पर कुंती ने कर्ण को बहाया था. मंदिर के पास आसन नदी के किनारे पर वह शिला आज भी मौजूद है जहां सूर्य देवता का रथ उतरा था. मैं उनके घोड़ों के पदचाप देखकर हतप्रब था. शिला धंसी हुई थी. कमाल है दोस्तों.
आसन नदी, जिसमें कर्ण को बहाया गया था, उसे कर्णखाक भी कहते हैं. इस नदी में जगह जगह कमलपुष्प खिले हुए थे. मैंने यहां आने से पहले सुना था कि मुरैना में कभी डकैत हुआ करते थे. ये सुनकर डर तो आया था लेकिन यहां आकर मुझे इस मुरैना से प्यार हो चुका था.
दिल की गहराईयों वाला प्यार. मेरी विनती है आप सभी से कि इस ब्लॉग के साथ संलग्न वीडियो को ज़रूर देखें. अगले ब्लॉग में आगे की यात्रा का वृत्तांत आप सभी से शेयर करूंगा. अपना ध्यान रखिएगा. ब्लॉग पढ़ने के लिए आभार 🙂
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