हिमालयन पिरामिड के नाम से विख्यात बेजोड़ कला का नमूना रॉक कट टेंपल मसरूर एक अनोखा और रहस्यमयी इतिहास समेटे हुए हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार शायद 8वीं सदी में बना यह मंदिर उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है. देखा जाए तो पत्थरों पर ऐसी खूबसूरत नक्काशी करना बेहद मुश्किल काम है. ऐसे में ये कारीगरी करने के लिए दूर से कारीगर लाए गए थे लेकिन यह कारीगरी किसने की इसके आज तक पुख्ता सबूत नहीं मिल पाए हैं.
मसरूर रॉक कट टेंपल को अजंता-एलोरा ऑफ हिमाचल भी कहा जाता है. हालांकि ये एलोरा से भी पुराने हैं. पहाड़ काटकर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढ़ियां और दरवाजे बनाए गये हैं. मंदिर के बिल्कुल सामने मसरूर झील है जो मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है.
मसरूर मंदिर कांगड़ा के दक्षिण में 15 किमी की दूरी पर मसरूर टाउन में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है. 15 शिखर मंदिरों वाली यह संरचना गुफाओं के अंदर स्थित हैं जो मसरूर मंदिर के रूप में जाना जाता है. 15 मंदिरों में, ठाकुरद्वार मंदिर जिसमें हिंदू देवी-देवताओं राम, लक्षमण, और सीता की काले पत्थर की छवियां हैं, जबकि भगवान शिव की मूर्ति बीच में है.
इसमें अन्तराल में एक वर्गाकार गर्भगृह है, जबकि मंदिर के दूसरी ओर एक आयताकार मंडप है जिसमें चार विशाल स्तंभ और चार सहायक धार्मिक स्थलों के साथ एक मुखमंडप है.
इंडो – आर्यन वास्तुकला की शैली का प्रतिनिधित्व करते हुये, 10 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण पत्थर के एक ठोस टुकड़े का उपयोग करके किया गया था, इसकी स्थापत्य शैली के कारण, इसे अजंता-एलोरा मंदिर की याद ताजा करने वाला कहा जाता है. हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के वास्तुशिल्प डिजाइन को 8 वीं या 9 वीं शताब्दी से जोड़ा जा सकता है.
झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब दिखाई देता है. उत्तर भारत में यह इस तरह का एकलौता मंदिर हैं. सदियों से चली आ रही दन्त कथाओं के मुताबिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए बनवाया गया था.
मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी देवताओं की आकृति देखने को मिल जाती हैं. बलुआ पत्थर को काटकर बनाए गए इस मंदिर को 1905 में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान भी हुआ था. इसके बावजूद ये आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. सरकार ने इसे राष्ट्रीय संपत्ति के तहत संरक्षण दिया है. मंदिर को सर्वप्रथम 1913 में एक अंग्रेज एचएल स्टलबर्थ ने खोजा था.
8वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था तथा समुद्र तल से 2500 फुट की ऊंचाई पर एक ही चट्टान को काट कर बना देश का एकमात्र मंदिर माना जाता है।
आज भी विशाल पत्थरों के बने दरवाजानुमा द्वार हैं, जिन्हें ‘स्वर्गद्वार’ के नाम से जाना जाता है. कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, पांडव अपने स्वर्गारोहण से पहले इसी स्थान पर ठहरे थे, जिसके लिए यहां स्थित पत्थरनुमा दरवाजों को ‘स्वर्ग जाने का मार्ग’ भी कहा जाता है.
आप मसरूर मंदिर के दर्शन पूरे साल कभी भी कर सकते हैं पर इसका सबसे सही और उचित समय है मार्च से अक्टूबर के महीने का.
मसरूर मंदिर कांगड़ा घाटी से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. आप कांगड़ा पहुंच कोई भी निजी कैब या टैक्सी बुक करा कर यहां तक पहुंच सकते हैं.
Maha Kumbh 2025 : उत्तर प्रदेश का प्रयागराज इस समय देश के केंद्र में है… Read More
Christmas : इस लेख में हम बात करेंगे कि क्रिसमस क्यों मनाया जाता है और इससे… Read More
Christmas Shopping 2024 : क्रिसमस आने वाला है. ऐसे में कई लोग किसी पार्टी में… Read More
Kumbh Mela 2025 : उत्तर प्रदेश का प्रयागराज इस समय देश के केंद्र में है… Read More
Hot water : सर्दियां न केवल आराम लेकर आती हैं, बल्कि कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं… Read More
Jaunpur Tour : उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर की यात्रा करना हमेशा एक सुखद अनुभव… Read More