Madurai Meenakshi Temple – भारत एक ऐसा देश है जहाँ आध्यात्म, भक्ति और श्रद्धा एक खास स्थान रखते हैं। इसीलिए भारत में कई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघर हैं जहाँ श्रद्धालु पूरे श्रद्धा भाव के साथ ईश्वर से प्रार्थना करने जाते हैं। भारत में ऐसे कई पौराणिक मंदिर हैं जिनकी अपनी कुछ खास मान्यताएं और उनसे जुड़ा अनोखा इतिहास है। दक्षिण भारत के मदुरई में स्थित मीनाक्षी मंदिर उन्ही मंदिरों में से एक है। दक्षिण भारत के श्रेष्ठ मंदिरों में शुमार इस मंदिर में अद्भुत रंगीन शिल्पकला आपका मन मोह लेगी। इसे मीनाक्षी अम्मन मंदिर भी कहते हैं। मीनाक्षी अम्मन मंदिर में पूजा अर्चना करने और इसकी अद्भुत खूबसूरती को देखने लोग भारी संख्या में देश विदेश से यहां आते हैं। यह मंदिर भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित है। मीनाक्षी का मतलब होता है मछली जैसे नेत्र वाली। देवी पार्वती के मछली जैसे बहुत ही सुंदर नैन थे इसलिए उन्हें मीनाक्षी नाम दिया गया और इसीलिये इस मंदिर को भी मीनाक्षी मंदिर कहते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव सुंदरेश्वर रूप में अपने गणों के साथ पाड्य राजा मलयध्वज की पुत्री मीनाक्षी (जो की देवी पार्वती का रूप थीं) से विवाह करने मदुरै पधारे थे। इस विवाह को विश्व का सबसे बड़ा विवाह माना गया है। इस विवाह का संचालन करने भगवान विष्णु स्वयं अपने निवास से यहाँ पहुंचे थे लेकिन इन्द्र देव के कारण उन्हें विलंभ हो गया। तो इस विवाह का संचालन स्थानीय देवता कूडल अझघआर को करना पड़ा। इस बात से क्रोधित हो कर विष्णु भगवान ने मदुरई कभी न आने का प्रण ले लिया। बाद में बाकी देवी देवताओं ने मिल कर भगवान विष्णु को मनाया और उनसे मीनाक्षी-सुंदरेश्वर का पाणिग्रहण करवाया। विवाह के बाद भगवान शिव और देवी पार्वती ने यहाँ का शासन कई वर्षों तक संभाला था और यहीं से उन्होंने अपनी स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी। इस विवाह और भगवान विष्णु को मनाने के क्रम को मदुरै में बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जिसे चितिरई तिरुविझा कहा जाता है।
पढ़ें- स्वर्गारोहिणीः हिमालय का दिव्य शिखर जहां युधिष्ठिर को खुद लेने आए थे इंद्र!
एक और किंवदंती के अनुसार मीनाक्षी अम्मन मंदिर की स्थापना इंद्र देव ने करवाई थी। इस कथा के अनुसार अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए इंद्र देव तीर्थ यात्रा पर निकले थे। जैसे ही वो स्वयम्भू लिंग के पास पहुंचे वैसे ही उन्हें महसूस हुआ कि कोई उनका बोझ उठा रहा है। इस चमत्कार को देखते हुए इन्द्र देव ने स्वयं ही इस मंदिर में लिंग को प्रतिष्ठित कर इस मंदिर का निर्माण करवाया।
पढ़ें- टपकेश्वर महादेव मंदिरः जिस गुफा में अश्वतथामा को भोलेनाथ ने पिलाया था दूध!
इस मंदिर के इतिहास के अनुसार मीनाक्षी अम्मन मंदिर को 14वीं शताब्दी में बनवाया गया था लेकिन मलिक कफ़ुर के राज में उनकी सेना ने इस मंदिर को तहस नहस कर दिया था जिसे 17वीं सदी में विश्वनाथ नायक ने पुनः निर्मित कराया था।
यह मंदिर लगभग 45 एकड़ भूमि में बना है। इस मंदिर में प्रवेश करने के मुख्य रूप से चार द्वार हैं- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम। इन सब में दक्षिणी द्वार सबसे ऊंचा है जिसकी लंबाई लगभग 170 फ़ीट है। इस मंदिर में 12 विशाल गोपुरम हैं जिनमें से दक्षिण द्वार का गोपुरम सबसे ऊँचा है। इन सभी भव्य गोपुरम पर खूबसूरत महीन चित्रकारी की गई है। मंदिर में 985 स्तंभ और 14 टॉवर हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का गर्भगृह 3500 वर्षों से भी पुराना है। इन्ही सारी विशेषताओं के कारण इस विशाल भव्य मंदिर को सात अजूबों में भी नामांकित किया गया है। इस विशाल मंदिर में भगवान शिव और माँ पार्वती के साथ विष्णु जी, कृष्ण भगवान, ब्रह्मा जी और माँ सरस्वती जैसे अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। जहाँ इस मंदिर की अनूठी खूबसूरती को देख पर्यटक और श्रद्धालु भौचक्के रह जाते हैं वहीं इस मंदिर की शिपकारी की एक और खास बात है कि इस मंदिर में आठ खम्बों पर लक्ष्मी माँ की प्रतिमाएं अंकित की गई हैं। साथ ही इन पर भगवान शिव की पौराणिक कथाएं भी अंकित हैं।
पढ़ें- अयोध्या और राम जन्मभूमि के पास ही है ये दरगाह, हिंदू-मुस्लिम साथ उड़ाते हैं यहां गुलाल!
इस मंदिर में एक पवित्र सरोवर भी है जो करीब 175 फ़ीट लम्बी और 120 फ़ीट चौड़ी है। कहा जाता है कि इंद्रा देव की पूजा के लिए इसी पवित्र सरोवर में स्वर्ण कमल खिले थे। इस सरोवर को आधी तीर्थम कहते हैं। सभी भक्त पूजा करने से पहले इस सरोवर की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति अमावस्या के दिन, महीने के पहले दिन, ग्रहण के दिनों में या किसी पर्व के दिन इस सरोवर में स्नान कर भगवान की अर्चना करता है त उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पढ़ें- कामाख्या मंदिरः जहां एक मूर्ति की योनि (vagina) से बहता है रक्त!
मीनाक्षी मंदिर से जुड़ा एक प्रमुख उत्सव है ‘तिरुकल्याणं’ जो अप्रैल के महीने में बड़े ही ज़ोर शोर से मनाया जाता है। यह पावन उत्सव पूरे 10 दिन तक चलता है। इस उत्सव के दौरान करीब 10 लाख से भी ज़्यादा लोग आते हैं। इसके अलावा शिवरात्रि और नवरात्रि भी यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। प्रतिदिन इस मंदिर में 20-25 हज़ार लोग भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। शुक्रवार के दिन यह संख्या बड़ कर 30-40 हज़ार हो जाती है।
पढ़ें- सबरीमाला मंदिरः भगवान अयप्पा के बारे में कितना जानते हैं आप?
हर शुक्रवार को शाम 5.30 बजे मंदिर में देवी माँ मीनाक्षी और सुंदरेश्वर भगवान की भव्य स्वर्ण मूर्ति को एक झूले पर रखा जाता है जो की 16वी सदी का है। इसको ऊंजल मडप्पम कहते हैं।
मंदिर का समय: मंदिर के पट सुबह 5 बजे खुलते हैं और दोपहर 12.30 बजे बन्द हो जाते हैं। इसके बाद शाम 4 बजे से रात 9.30 बजे तक द्वार खुले रहते हैं।
ये भी पढ़ें- हाजी अली दरगाहः 400 सालों से समंदर में बुलंद हैं ये नायाब इमारत
कैसे पहुंचे:
रेल मार्ग: मदुरई भारत के सभी बड़े शहरों से रेल मार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग: मदुरई एयरपोर्ट शहर के केंद्र से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित है। चेन्नई, बैंगलुरू, दिल्ली, हैदराबाद और मुम्बई जैसे सभी बड़े शहरों से मदुरई हवाईजहाज़ से भी जाया जा सकता है। दुबई और कोलोंबो जैसे देशों से भी मदुरई तक इंटरनेशनल फ्लाइट्स आती हैं।
सड़क मार्ग: मदुरई स्टेट और नेशनल हाइवे से जुड़ा हुआ है इसलिए यहाँ सड़क मार्ग से भी आया जा सकता है। मदुरई में कुल 3 बस टर्मिनल हैं जहां तक आसपास के सभी राज्यों से नित्य बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ से प्राइवेट और सरकारी दोनों ही बसों की सुविधा उपलब्ध है।
Maha Kumbh Mela in 2025 : कुंभ मेला हर 3 साल, अर्ध कुंभ मेला हर… Read More
Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan : उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन के साथ दिव्य आनंद… Read More
Kulgam Travel Blog : कुलगाम शब्द का अर्थ है "कुल" जिसका अर्थ है "संपूर्ण" और… Read More
Vastu Tips For Glass Items : बहुत से लोग अपने रहने की जगह को सजाने… Read More
Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए यात्रा करना मज़ेदार और सशक्त बनाने वाला… Read More
Kishtwar Tourist Places : किश्तवाड़ एक फेमस हिल स्टेशन है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध… Read More