भारतवर्ष में कृष्ण जन्मोत्सव ( Janmashtami ) की धूम रहती है. पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक, सभी कृष्ण जन्मोत्सव ( Janmashtami ) को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन क्या आप सभी ये जानते हैं कि कृष्ण भगवान के जन्मदिन ( Janmashtami ) के दिन ही एक और देवी का जन्म हुआ था. ये वह देवी थीं जिन्हें कृष्ण के पिता ने यमुना नदी की जलधारा को पार करके लाया था और कृष्ण के स्थान पर देवकी के बगल में लिटाया था. यह हैं देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ). कंस ने इन्हें भी देवकी और वासुदेव की बाकी संतानों की तरह मारना चाहा था लेकिन देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) उसके हाथ से छिटककर दूर चली गईं और अपने वास्तविक रूप में आ गईं. अहम बात ये है कि दिल्ली में हम पांडवों के जिस इंद्रप्रस्थ की बात करते हैं, उसी इंद्रप्रस्थ के काल का ये मंदिर आज भी मौजूद है. ये मंदिर देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) को समर्पित है. दिलचस्प बात ये है कि इस मंदिर को किसी इंसान ने नहीं बल्कि खुद भगवान ने बनाया था.
योगमाया मंदिर को कुछ लोग जोगमाया मंदिर भी कहते हैं. इसे 5000 वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है. इसका अर्थ है कि यह हिंदू पुराणों में वर्णित द्वापरयुग काल का मंदिर है. यही वो काल था जब महाभारत का युद्ध भी हुआ था. देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) को आदि शक्ति महालक्ष्मी का अवतार कहा जाता है. यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि यहीं पर देवी सती का मस्तक भी गिरा था. यह आज भी पिंडी के रूप में यहां मौजूद बताया जाता है. देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) को सत्व गुण प्रधान देवी कहा जाता है. यही वजह है कि इस मंदिर में किसी भी तरह की बलि पर प्रतिबंध है.
देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) भगवान श्री कृष्ण की बहन थीं. वह कृष्ण को पालने वाले उनके माता-पिता यशोदा और नंद की बेटी थीं. कारागार में जब देवकी और वासुदेव के आठवें बच्चे की हत्या करने के इरादे से कंस ने इस बेटी को उठाकर दीवार पर पटका, तभी वह हाथ से छूटकर आकाश में पहुंच गईं. इस बालिका ने वहीं से भविष्यवाणी भी की. उसने कहा कि देवकी और वासुदेव के जिस बेटे के हाथों कंस की हत्या होगी, उसने जन्म ले लिया है. इसके बाद वह कन्या, विंध्याचल पर्वत पर जाकर बस गई और उसे विंध्यवासिनी के नाम से जाना गया. वहीं पर पर्वत के ऊपर उनका मंदिर भी है. ऐसा भी कहा जाता है कि देवी योगमाया का शीश दिल्ली की धरा पर है और उनके चरण विंध्याचल में हैं.
देवी योगमाया ( Devi Yogmaya ) का मंदिर महरौली में स्थित है. यह योगमाया मंदिर संभवतः दिल्ली का प्राचीनतम जीवंत मंदिर है. यह मंदिर कुतुब मीनार के पास ही है. इसकी प्राचीनता और कथाओं को दूर छोड़कर अगर आप मंदिर पर एक नज़र डालेंगे तो आपको यह बेहद सादगी भरा मंदिर प्रतीत होगा. बाहर की ओर बनी भित्तियों पर कलाकारी हैं. मंदिर के चारों ओर घरों की सघनता है और इसी वजह से दूर से मंदिर का शिखर दिखाई नहीं देता है. मुख्य मार्ग पर स्थित इस मंदिर का प्रवेश द्वार मंदिर सबसे अलंकृत हिस्सा है. आपको यहां अद्भुत वास्तुशिल्प और भव्य संरचना तो नहीं मिलेगी लेकिन इसकी महत्ता इससे तनिक भी कम नहीं हो जाती है. आप इस मंदिर को देखें उस शक्ति के लिए जिसके बूते युग बीत जाने, विदेशी शासकों के आने के बाद भी ये मौजूद है.
महरौली, दिल्ली के प्राचीनतम नगरों में से एक है. इस्लाम-पूर्व काल में यह पहली राजधानी रही है. किसी कालखंड में यह एक मज़बूत हिंदू व जैन क्षेत्र भी रहा है. बाद में, इसे इस्लामिक रूप में बदल दिया गया और इसके मूल स्वरूप को नष्ट कर दिया गया. अधिकांश मंदिरों को नष्ट कर मस्जिदों का निर्माण किया गया. अब यहां इस्लामिक शासकों के पहले की कुछ गिनती की ही संरचनाएं मौजूद हैं, और देवी योगमाया का मंदिर उनमें से एक है.
जब आप कुतुब कॉम्प्लैक्स से महरौली बस स्टेशन की ओर बढ़ेंगे, तभी रास्ते में आपको दाहिनी ओर पत्थर का बना प्रवेश द्वार दिखाई देगा. इसके दोनों ओर, द्वार को अलंकृत करते हुए सिंह की प्रतिमा है. इस प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद बाईं ओर आपको ये मंदिर दिखेगा.
जैन शास्त्रों में इसी महरौली क्षेत्र को योगिनीपुर बताया गया है. संभव है कि तब इस मंदिर के नाम पर ही इस नगर को जाना जाता रहा हो. इस क्षेत्र में कई प्राचीन जैन मंदिरों का अस्तित्व हैं, जिसमें से एक दादाबाड़ी है.
कुछ सूत्र ऐसा भी कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने किया था. यह बात तबकी है जब श्रीकृष्ण और अर्जुन महाभारत युद्ध के वक्त इस योगमाया मंदिर में आराधना करने आए थे. जयद्रथ द्वारा अभिमन्यु का वध किए जाने के बाद, अर्जुन ने प्रण लिया था कि अगली संध्या से पहले जयद्रथ का वध करेंगे अन्यथा अग्नि में प्राण अर्पण कर देंगे. कौरवों ने अर्जुन की प्रतिज्ञा का मोल समझते हुए जयद्रथ को अर्जुन से दूर रखा था. जब जयद्रथ का वध असंभव होने लगा तब कृष्ण और अर्जुन इस मंदिर आए थे और देवी से गुहार लगाई थी.
ये देवी योगमाया की ही माया थी कि सांझ से पहले ही सूर्य ग्रहण की स्थिति बन गई थी. इसके भ्रम में जयद्रथ जैसे ही असावधान हुआ, अर्जुन ने तीन चलाकर उसका वध कर दिया. वहीं, एक अन्य किवदंती के मुताबिक, महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने इस मंदिर का निर्माण किया था. हालांकि इन सबमें न पड़ते हुए हमें इसी बात से संतुष्ट हो जाना चाहिए कि यह प्राचीनकालीन मंदिर आज भी हमारे बीच है.
देवी योगमाया को चौहान राजाओं की कुलदेवी बताया गया है. कभी चौहान राजाओं ने दिल्ली के किला राय पिथौरा से राजपाट संभाला था. लाल कोट तोमर राजाओं द्वारा 8वीं. सदी में बनाया गया दिल्ली का दुर्ग है. मंदिर के पास एक सूर्य मंदिर भी था लेकिन अब उसका कुछ पता नहीं.
मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी का मंदिर
बाड़मेर का योगमाया मंदिर
जोधपुर का योगमाया मंदिर
वृंदावन का योगमाया मंदिर
मुल्तान में, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है
केरल के अलमथुरुथी में
त्रिपुरा में अगरतला के पास योगमाया मंदिर
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