Kyun Zaroori Hai Bhairav Baba ke Darshan: कहा जाता है कि पहाड़ों की माता वैष्णो देवी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. जो सच्चे मन से इनके दरबार में जाता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. ऐसा है सच्चा दरबार- मां वैष्णो देवी का.
मां की पुकार आने पर भक्त कोई न कोई बहाना लेकर उनके दरबार में पहुंच जाता है. हसीन वादियों में त्रिकुटा पर्वत की गुफा में वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. वैष्णो देवी माता का मंदिर कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. उस मंदिर की ऊंचाई करीब 5,200 फीट है. हर साल लाखों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं. कई घंटों की लंबी चढ़ाई के बाद उन्हें माता रानी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है.
लेकिन भक्त तब तक माता के दरबार में वापस नहीं लौट सकते जब तक वे भैरव बाबा के दर्शन नहीं कर लेते. कहा जाता है कि माता रानी के दर्शन करने के बाद तब तक दर्शन अधूरा माना जाता है जब तक भक्त भैरव बाबा के दर्शन नहीं कर सकता. माता रानी की कृपा भैरव की प्रजा पर ही होती है. मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन क्यों जरूरी हैं, इसके लिए एक कथा प्रचलित है, जिसे हम और आप जरूर जानना चाहेंगे.
यहां हम चर्चा करेंगे कि वैष्णो माता मंदिर की यात्रा भैरवनाथ मंदिर के दर्शन के बिना अधूरी क्यों है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि एक बार मां वैष्णो देवी के भक्तों ने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया.. माता रानी पुत्री का रूप धारण कर वहां पहुंचीं. माँ ने श्रीधर से गांव के सभी लोगों को भंडारे के लिए दान करने के लिए आमंत्रित करने के लिए कहा.
न्योता पाकर गांव के कई लोग श्रीधर के घर भोजन करने पहुंचे. तब वैष्णो देवी ने सभी को भोजन परोसना शुरू किया. भोजन परोसते समय कन्या भैरवनाथ के पास चली गई लेकिन भैरवनाथ भोजन में मांस-मदिरा खाने की जिद करने लगा.
कन्या ने उसे समझाने का प्रयास किया कि भैरवनाथ क्रोधित होकर कन्या को बंदी बनाना चाहता है. लेकिन उससे पहले ही वायु रूपी वायु त्रिकुटा पर्वत की ओर उड़ चली.
इसी पर्वत की एक गुफा में पहुंचकर माता ने 9 माह तक तपस्या की है. मान्यता के अनुसार उस समय हनुमानजी अपनी माता की रक्षा के लिए उनके साथ थे.
भैरवनाथ भी उसका पीछा करते-करते गुफा में पहुंच गया. तब माता गुफा के दूसरे छोर से निकल गईं. यह गुफा आज अर्धकुंवारी या आदिकुंडी के नाम से फेमस है. गुफा के दूसरे द्वार से निकलने के बाद भी भैरवनाथ ने माता का पीछा नहीं छोड़ा. तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरवनाथ का संहार किया.
भवन से 8 किमी दूर त्रिकुटा पर्वत की भैरव घाटी में भैरवनाथ का सिर कट गया. उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है.
हालांकि, वध के बाद, भैरवनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह क्षमा मांगता है.
करुणामयी माता ने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि वरदान देते हुए कहा कि जब तक मेरे बाद कोई भक्त आपके सामने प्रकट नहीं होगा, तब तक मेरी दृष्टि पूर्ण नहीं मानी जाएगी.
उल्लेखनीय है कि इस पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद भी 8 किलोमीटर की गहराई में जाकर भैरवनाथ के दर्शन करते हैं. ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो सके और उन्हें माता रानी के दर्शन का पूरा फल मिले.
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