Kumbh 2019: 15 जनवरी से प्रयागराज में कुंभ 2019 की शुरुआत होने जा रही है, जो कि 4 मार्च तक चलेगा। इस मेले में लाखों की तादाद में लोग शाही स्नान करने के लिए आते हैं। वहीं कुंभ मेले में नागा साधु भी बड़ी संख्या में आते हैं। कुंभ मेले में स्नान के साथ-साथ नगा साधु पर भी सब लोगों का ध्यान रहता है।
नगा साधु हिन्दू संस्कृति को मानने वाले वो साधु हैं जो नग्न रहते हैं और युद्ध कला में काफी कुशल होते हैं। नगा अलग-अलग अखाड़ों में रहा करते हैं और ये जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा दी गई परंपरा को मानते हैं।
कई बरसों से नगा साधुओं को जहां एक तरफ आस्था की निगाहों से देखा जाता है तो वहीं इन्हें हैरत भरी और रहस्य की नजरों से भी देखा जाता है। आम लोगों के बीच में ये एक आश्चर्य का विषय है इसमें कोई शक नहीं हैं क्योंकि इनकी वेशभूषा, साधना, रहन-सहन सब कुछ बहुत हैरानी भरा होता है।
नगा साधु के आश्रम हरिद्वार और कई अन्य तीर्थ स्थलों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां पर ये लोग आम जीवन से मुश्किल और कठोर अनुशासन में रहते हैं। वहीं साथ ही इन्हें काफी गुस्से वाला भी माना जाता है। गौरतलब है कि ये कभी किसी को बेवजह नुकसान नहीं पहुंचाते। कोई नहीं जानता कि ये कब खुश हो जाएं और कब नाराज। ऐसा माना जाता है कि दुनिया बदलती जा रही है लेकिन ये शिवभक्त अपने इसी रूप में रहते हैं।
नगा साधु ठंड से बचने के लिए 3 तरह के योग करते हैं। ये एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हुए होते हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वो अपनी सैन्य पहचान दर्शाते हैं। ये साधु कुंभ मेले में ही सबसे ज्यादा दिखते हैं।
ये लोग कोई कपड़े नहीं पहनते हैं इसलिए इन्हें दिगंबर भी कहते हैं क्योंकि आकाश ही इनका वस्त्र होता है। नागा साधु कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर में राख लपेटते हैं, ये साधु कुंभ मेले में सिर्फ शाही स्नान के वक्त ही खुलकर लोगों के सामने आते हैं, नहीं तो ये आमतौर पर लोगों से दूरी ही बना कर रखते हैं।
गौरतलब है कि ज्यादातर नगा साधु पुरुष होते हैं, कुछ महिलाएं भी नगा साधु हैं पर वो सार्वजनिक रूप से नग्न नहीं होती हैं लेकिन एक भगवा वस्त्र लपेट कर रहती हैं। इन लोगों को दुनिया में क्या हो रहा है उससे कोई लेना देना नहीं होता है। इनकी जटाओं की भी एक अलग पहचान है। जटाओं के लिए कहा जाता है कि अखाड़ों के वीर नागा संन्यासी लंबी जटाओं को बिना किसी चीज का इस्तेमाल किए खुद ही रेत और भस्म से संवारते हैं।
17 श्रृंगार करते हैं नागा साधु
नगा साधुओं के लिए ये चीज काफी ज्यादा मानी जाती है कि वो 17 तरह के श्रृंगार से सजते हैं। हालांकि वो ऐसा खास अवसर पर ही करते हैं और ईष्ट देव विष्णु या शंकर की आराधना करते हैं। इनका 17वां श्रृंगार बहुत ज्यादा खास माना जाता है। ये इन्हें महिलाओं से भी एक कदम आगे रखता है। जिसे भभूति श्रृंगार कहते हैं।
ये लोग अपनी लड़ाई की क्षमता के लिए काफी मशहूर थे। लेकिन भारत की आजादी के बाद से इन लोगों के अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया था। इन अखाड़ों के मुखियाओं ने अपने मानने वालों को भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों के बारे में पढ़ने और उन्हें मानने के लिए जीवन गुजारने के लिए कहा। इस वक्त 13 मुख्य अखाड़े हैं जिनमें हर एक के ऊपर एक महंत है। ये अखाड़े – श्री निरंजनी अखाड़ा, श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा, श्री महानिर्वाण अखाड़ा, श्री अटल अखाड़ा, श्री आह्वान अखाड़ा, श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंचाग्नि अखाड़ा, श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, श्री वैष्णव अखाड़ा, श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, श्री उदासीन नया अखाड़ा, श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।
एक नगा साधु बनने के लिए कठिन और लंबी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। नगा साधुओं के समुदाय में शामिल होने के लिए लगभग 6 साल का वक्त गुजारना होता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक लंगोट के अलावा ये लोग कुछ भी नहीं पहनते हैं। वहीं अंत में कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद लंगोट को भी त्याग देते हैं और जीवन भर नग्न ही रहते हैं।
आपको बता दें कि हर किसी अखाड़े की तरफ से पहले अच्छी तरह से जांच-पड़ताल की जाती है और योग्य व्यक्ति को ही उसमें प्रवेश दिया जाता है। उसे पहले लंबे वक्त तक ब्रह्मचारी के रूप में ही रहना होता है। जिसके बाद उसे महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है। वहीं आखिरी प्रक्रिया में महाकुंभ के वक्त खुद का पिण्डदान और दंडी संस्कार करना होता है।
वहीं नागाओं को 24 घंटे अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना खाना खाए खड़ा रहना होता है और इस दौरान कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन रहता है। इसके बाद अखाड़े के साधु दीक्षा ले रहे नागा के लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर खत्म कर दिया जाता है और उन्हें नपुंसक बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही वो वो नगा साधु बन पाते हैं।
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