नई दिल्ली. जानकी मंदिर Janaki Temple (नेपाली: जानकी मंदिर) नेपाल के मिथिला क्षेत्र के जनकपुर में एक हिंदू मंदिर है, जो हिंदू देवी सीता को समर्पित है। यह मंदिर हिंदू-कोइरी नेपाली वास्तुकला का एक उदाहरण है। इसे अक्सर नेपाल में कोइरी वास्तुकला का सबसे महत्वपूर्ण मॉडल माना जाता है। पूरी तरह से चमकदार सफेद रंग में निर्मित और मुगल और कोइरी गुंबदों की मिश्रित शैली में 4,860 वर्ग फीट के क्षेत्र में निर्मित किया गया है।
आपको बता दें कि अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) के निर्माण की मंगल घड़ी आ गई है। मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन अगले महीने 5 अगस्त को होगा।
Janaki Temple यह तीन मंजिला संरचना है जो पूरी तरह से पत्थर और संगमरमर से बनी है। इसके सभी 60 कमरों में नेपाल के झंडे, रंगीन कांच, उत्कीर्णन और चित्रों से सजाया गया है, जिसमें सुंदर जालीदार खिड़कियां और बुर्ज हैं। किंवदंतियों और महाकाव्यों के अनुसार, राजा जनक ने रामायण काल में इस क्षेत्र (जिसे विदेह कहा जाता है) पर शासन किया था। उनकी बेटी जानकी (सीता) ने अपने स्वयंबर के दौरान भगवान राम को अपने पति के रूप में चुना था, और अयोध्या की रानी बन गईं। उनका विवाह समारोह पास के मंदिर में हुआ था, जिसे विवाह मंडप भी कहा जाता है। इस साइट को 2008 में यूनेस्को की अस्थायी साइट के रूप में नामित किया गया था।
5 अगस्त को Ram Mandir का भूमि पूजन, 5 गुंबदों के साथ ऐसा होगा डिज़ाइन
जानकी मंदिर का इतिहास (History of Janaki Temple)
जानकी मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था। क़रीब 4860 वर्ग फ़ीट में फैले इस मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु ने करवाया था।’पहले यहां जंगल हुआ करता था, जहां शुरकिशोर दास तपस्या-साधन करने पहुंचे थे। यहां रहने के दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी। उन्होंने ही इसे वहां स्थापित किया था।’टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु एक बार वहां गई थीं। उन्हें कोई संतान नहीं थी। वहां पूजा के दौरान उन्होंने यह मन्नत मांगी थी कि अगर भविष्य में उन्हें कोई संतान होती है तो वो वहां मंदिर बनवाएंगी। संतान की प्राप्ति के बाद वो वहां लौटीं और साल 1895 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 16 साल में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि उस समय इसके निर्माण पर कुल नौ लाख रुपए खर्च हुए थे, इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं। मंदिर में 12 महीने अखंड कीर्तन चलता रहता है। 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप यहां लोग करते हैं. साल 1967 से लगातार यहां अखंड कीर्तन चल रहा है।
प्रमुख पर्यटन स्थल (Tourist destination)
नौलखा मंदिर: जनकपुर में राम-जानकी के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे भव्य मंदिर का निर्माण भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने करवाया। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने अयोध्या में ‘कनक भवन मंदिर’ का निर्माण करवाया परंतु पुत्र प्राप्त न होने पर गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए जनकपुरी में1896ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया।
मंदिर निर्माण प्रारंभ के एक वर्ष के अंदर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी के निधन के बाद उनकी बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बाद में वृषभानु कुमारी के पति ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया। जानकी मंदिर को दान में बहुत-सी भूमि दी गई है जो इसकी आमदनी का प्रमुख स्रोत है।
जानकी मंदिर Janaki Temple परिसर के भीतर प्रमुख मंदिर के पीछे जानकी मंदिर उत्तर की ओर ‘अखंड कीर्तन भवन’ है जिसमें 1961 ई. से लगातार सीताराम नाम का कीर्तन हो रहा है। जानकी मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्णण मंदिर है जिसका निर्माण जानकी मंदिर के निर्माण से पहले बताया जाता है। परिसर के भीतर ही राम जानकी विवाह मंडप है। मंडप के खंभों और दूसरी जगहों को मिलाकर कुल 108 प्रतिमाएं हैं।
विवाह मंडप (धनुषा) : इस मंडप में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से 14 किलोमीटर ‘उत्तर धनुषा’ नामक स्थान है। बताया जाता है कि रामचंद्र जी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को अवशेष कहा जाता है। पूरे सालभर ख़ासकर ‘विवाह पंचमी’ के अवसर पर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है।
नेपाल के मूल निवासियों के साथ ही अपने देश के बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान तथा महाराष्ट्र राज्य के अनगिनत श्रद्धालु नज़र आते हैं। जनकपुर में कई अन्य मंदिर और तालाब हैं। प्रत्येक तालाब के साथ अलग-अलग कहानियां हैं। ‘विहार कुंड’ नाम के तालाब के पास 30-40 मंदिर हैं। यहां एक संस्कृत विद्यालय और विश्वविद्यालय भी है। विद्यालय में छात्रों को रहने और भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है। यह विद्यालय ‘ज्ञानकूप’ के नाम से जाना जाता है।
मंडप के चारों ओर चार छोटे-छोटे ‘कोहबर’ हैं जिनमें सीता-राम, माण्डवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण एवं श्रुतिकीर्ति-शत्रुघ्र की मूर्तियां हैं। राम-मंदिर के विषय में जनश्रुति है कि अनेक दिनों तक सुरकिशोरदासजी ने जब एक गाय को वहां दूध बहाते देखा तो खुदाई करायी जिसमें श्रीराम की मूर्ति मिली। वहां एक कुटिया बनाकर उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा, इसलिए अद्यपर्यन्त उनके राम मंदिर के महन्त संन्यासी ही होते हैं जबकि वहां के अन्य मंदिरों के वैरागी हैं।
जनकपुर में अनेक कुंड हैं
यथा-रत्ना सागर, अनुराग सरोवर, सीताकुंड इत्यादि। उनमें सर्वप्रमुख है प्रथम अर्थात् रत्नासागर जो जानकी मंदिर से करीब 9 किलोमीटर दूर ‘धनुखा’ में स्थित है। वहीं श्रीराम ने धनुष-भंग किया था। कहा जाता है कि वहां प्रत्येक पच्चीस-तीस वर्षों पर धनुष की एक विशाल आकृति बनती है जो आठ-दस दिनों तक दिखाई देती है।
मंदिर से कुछ दूर ‘दूधमती’ नदी के बारे में कहा जाता है कि जुती हुई भूमि के कुंड से उत्पन्न शिशु सीता को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने जो धारा बहायी, उसने उक्त नदी का रूप धारण कर लिया।
कैसे पहुंचे
नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। जनकपुर से करीब 14 किलोमीटर उत्तर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। नेपाल की रेल सेवा का एकमात्र केंद्र जनकपुर है। यहां नेपाल का राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। जनकपुर जाने के लिए बिहार राज्य से तीन रास्ते हैं। पहला रेल मार्ग जयनगर से है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिठ्ठामोड़ से बस द्वारा है, तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगांउ से बस द्वारा है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिला से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है। बिहार की राजधानी पटना से इसका सीतामढ़ी होते हुए सीधा सड़क संपर्क है। पटना से इसकी दूरी 140 की मी है।
हर साल, नेपाल, भारत, श्रीलंका और अन्य देशों के हजारों तीर्थयात्री भगवान राम और सीता की पूजा करने के लिए राम जानकी मंदिर जाते हैं। रामनवमी, विवाह पंचमी, दशैन और तिहार के त्योहारों के दौरान कई श्रद्धालु मंदिर आते हैं।
यहां से काठमांडू जाने के लिए हवाई जहाज़ भी उपलब्ध हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है. यहां के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथलांचल जैसे ही हैं। वैसे प्राचीन मिथिला की राजधानी माना जाता है यह शहर। भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में यहां आते हैं।
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