Kashi Vishwanath Darshan – मंदिरों में वीआईपी सिस्टम (खासकर पैसे देकर दर्शन करना) का हमेशा से विरोधी रहा हूँ। आज से लगभग 2 साल पहले उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग ( Mahakal Jyotirling ) में सौगंध ली थी कि जिस मंदिर में पैसे देकर इंसान उसके सामने ‘वीआईपी’ बन जाता हो, जिसने उसे बनाया है, वहां कभी नहीं जाऊंगा। इसके बाद कई मंदिरों को ‘ना’ कहा। लेकिन ईश्वर तो ईश्वर ही हैं ना। देखिए क्या ‘खेल’ किया।
सोचा कि 14 जनवरी को शाम को मकर संक्रांति के मौके पर काशी विश्वनाथ बाबा ( Kashi Vishwanath Darshan ) के दर्शन किए जाएं। 13 जनवरी को 3 महीने के अपने बेटे और पत्नी के साथ वाराणसी पहुंचा तो सोचा कि एक बार आज दर्शन कर लेते हैं और फिर मकर संक्रांति पर फिर से कर लिए जाएंगे। शाम करीब 4 बजे मंदिर के पास पहुंचा तो देखा कि काफी लंबी लाइन लगी हुई है। मुझे तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन 3 महीने के बच्चे के साथ 3-4 घंटे लाइन में लगना पत्नी के लिए संभव नहीं था।
खैर, मैंने वहां से वापस जाने का फैसला किया और रास्ते भर यही सोचता रहा कि शायद विश्वनाथ बाबा ( Kashi Vishwanath Darshan ) इस बार दर्शन देने के मूड में नहीं हैं। देश शाम बनारस के एक परिचित पत्रकार को फोन किया और कहा कि पत्नी और बच्चे के लिए कोई जुगाड़ हो सकता है क्या? उन्होंने सुझाव दिया कि हाल में शुरू हुई 300 रुपये वाली वीआईपी व्यवस्था के तहत दर्शन किए जा सकते हैं। यह व्यवस्था मुझे समझ में नहीं आई तो शाम को घाट पर चला गया।
रात बीती। अगली सुबह फिर से मैं अकेला मंदिर पहुंचा तो पता लगा कि 1 किलोमीटर दूर से वाहनों का आवागमन रोक दिया गया है और मकर संक्रांति के साथ-साथ सोमवार होने की वजह से भयंकर भीड़ है। मैं मायूस होकर वापस आ ही रहा था कि रास्ते में छोटे भाई Prakhar Bajpai का फोन आया और उसने यूं ही दर्शन के बारे में पूछ लिया। मैंने उसे यथास्थिति बताई तो उसने कहा कि आप दर्शन कब करना चाहते हैं? मैंने कहा- कभी भी हो जाएं। थोड़ी देर के बात उसने एक नंबर मेसेज किया और कहा कि बात कर लीजिए, दर्शन हो जाएंगे। मैंने उस नंबर पर फोन किया तो पता लगा कि वह वाराणसी के जिला पूर्ति अधिकारी का नंबर है। उन्होंने दर्शन का समय पूछा तो मैंने शाम का समय बता दिया।
थोड़ी देर में उन्होंने वॉट्सऐप पर एक लेटर भेजकर कहा कि इस लेटर को मंदिर के पास दिखा दीजिएगा, ठीक से दर्शन हो जाएंगे। मैंने धन्यवाद बोलकर फोन काटा तभी एक अन्य व्यक्ति का फोन आया और उन्होंने कहा कि आप जब दर्शन के लिए आइएगा तो इसी नंबर पर फोन कर दीजिएगा, मैं आपके साथ ही चलूंगा। शायद वह विभाग के ही कोई अधिकारी थे। दोपहर तीन बजे से ही उनका फोन आने लगा। भीड़ और बंद रास्तों की वजह से मैं शाम 4:30 बजे मंदिर पहुंच पाया। खैर वह मिले और उन्होंने विश्वनाथ बाबा के भव्य दर्शन कराए।
सोचा था कि कभी इस तरह से ‘जुगाड़’ वाले दर्शन नहीं करूंगा लेकिन जिस उद्देश्य के साथ भारी ठंड में 3 महीने के बच्चे को काशी लेकर गया था, वह उद्देश्य यदि पूरा न होता तो भी कष्ट होता। यही तो शिव महिमा है, कहां सिर्फ दर्शन की ही संभावना नहीं थी और कहां भव्य दर्शन के साथ-साथ पूर्ण पूजन भी संपन्न हुआ।
(पत्रकार विश्व गौरव ने इस लेख को दिनांक 21 जनवरी के दिन अपने फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया था)
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