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Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena : चंबल का मंदिर जहां 50 साल से हो रहा रामनाम का कीर्तन

Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena : चंबल (Chambal), रहस्य और इतिहास की धरती है. इसी धरती पर स्थित है पटिया वाले बाबा का धाम यानी करह धाम (Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena)… चंबल के जंगलों में जहां हिंसक जानवरों की गर्जनाएं और डकैतों की बंदूकें लोगों को डराया करती थीं, वहां आज धर्म और भक्ति की अविरल धारा बह रही है.

मुरैना से 20 किलोमीटर दूर है पटिया वाले बाबा धाम || Patiya Wale Baba Dham Distance

मुरैना शहर (Morena City) से 20 किलोमीटर और ग्वालियर (Gwalior) से 30 किलोमीटर की दूरी पर ग्वालियर-मुरैना हाइवे (Gwalior – Morena Highway) पर पावन करह धाम (Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena) स्थित है. चंबल के बीहड़ में यह धार्मिक स्थान है. यह एक तपोभूमि हैं जहां पर कई महान धर्मात्माओं ने तपस्या की है. लेकिन इस सिद्ध स्थल को पटिया वाले बाबा (Patiya Wale Baba) ने दूर दूर तक प्रसिद्ध कर दिया.

पटिया वाले बाबा के जल का है खास महत्व || Patiya Wale Baba Jal Importance

यहां से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. यहां एक कुआं है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके जल के स्पर्श मात्र से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं. लोग मानते हैं कि कुत्ते का काटा शख्स अगर यहां स्नान कर ले, तो उसकी तकलीफ दूर हो जाती है. कुएं को ढंककर उसके चार कोनों पर चार हैंडपंप लगाए गए हैं. दूर दूर से आने वाले भक्त इस जल का स्पर्श करना नहीं भूलते हैं.

धनेला गांव में स्थित है पटिया वाले बाबा का मंदिर || Patiya Wale Baba in Dhanela Village

यह स्थान धनेला गांव के पास स्थित है. पटिया वाले बाबा की मूर्ति के स्थान के बगल में रामनाम का कीर्तन 50 से ज्यादा वर्षों से अनवरत चल रहा है. यूं तो मंदिर में हर शाम और सुबह प्रसाद का वितरण होता है लेकिन यहां हर साल सियापिया का मेला लगता है. यहां पर हर वर्ष लगने वाला ये मेला बहुत प्रसिद्ध हैं. हर साल माघ महीने की पूर्णिमा से फाल्गुन माह की नवमी तक यहां ”सियपिय मिलन मेला” लगता है.

इस मेले में लाखों की भीड़ इकट्ठा होती है और मालपुए खीर का प्रसाद वितरित होता है. इस दौरान यहां की छटा देखने लायक होती है. इस मेले के दौरान भीड़ को संभालने के लिए भारी पुलिसबल तैनात किया जाता है.

”करह धाम ‘ की गौशाला में लगभग 500 से ज्यादा गायों की सेवा की जाती है. अशक्त रोगी या तकलीफ झेल रहे लोगों के लिए यहां एक अस्पताल भी है.

कौन हैं पटिया वाले बाबा || Who is Patiya Wale Baba

करह धाम को जिन पटिया वाले बाबा के नाम से जाना जाता है, आइए उनके बारे में भी जान लेते हैं

” करह ” को ” धाम ” (Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena) बनाने में पटिया वाले बाबा रामरतन दास महाराज की अग्रणी भूमिका है. सांक नदी के किनारे स्थित जरारा गांव के गुर्जर परिवार (Gurjar Family) में जन्म हुआ था रतन सिंह का… जीवन की शुरुआत से ही उनका झुकाव धर्म के प्रति था. बचपन में ही पिता चतुर्भुज सिंह का निधन हो गया था जिसके बाद मां विजय कुंवरि ने इनका पालन पोषण किया.

रतन सिंह का मन घर परिवार में नहीं लगता था. नूराबाद के सीताराम मंदिर में रहने वाले तपसी बाबा से उनका संपर्क हुआ. भक्ति का झुकाव और मजबूत हुआ जिसके बाद ये करह में रामजानकी मंदिर के सामने पड़ी पटिया पर आकर तपस्या करने लगे. ये सिद्ध बाबा कहलाए. कभी सर्प और कभी शेर इनके साथ आकर लीलाएं किया करते थे.

वर्षों पटिया पर तप करने के कारण ये ”पटिया वाले बाबा” के नाम से प्रसिध्द हुए. इस क्षेत्र के लोग किसी भी काम की शुरुआत पटिया वाले बाबा के जयकारे और उनके आशीर्वाद से ही करते हैं.

धाम पहुंचते ही आपको सबसे पहले खिलौनों, तस्वीरों और प्रसाद की दुकानें दिखाई देती हैं. यहां धाम की परिक्रमा करने के लिए एक पथ है. आप इस पथ पर चलकर पूरे धाम की परिक्रमा कर पाते हैं. परिक्रमा के रास्ते में आपको मोर दिखाई देते हैं, मोर शब्द से ही मुरैना बना है.

पटिया वाले बाबा को लगता है भोग || Patiya Wale Baba Bhog

पटिया वाले बाबा का आसन आज भी उसी तरह से रखा गया है जैसे सालों पहले रखा जाता था, जब पटिया वाले बाबा हर रोज यहां बैठते थे. हर शाम को धाम के अलग अलग मंदिरों में भोग लगाने के साथ उन्हें भी भोग लगाया जाता है.

आज मंदिर परिसर बहुत बड़ा हो चुका है. कई देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई गई. सालों पहले एक बाबा हुए जिन्होंने बरगद का वृक्ष भी लगाया. तमाम निर्माण हुए हैं… पटिया वाले आज भी इस धाम की पहचान हैं और चंबल के निवासियों की अटूट आस्था इस धाम पर बनी हुई है…

करह धाम नाम कैसे पड़ा? || Karah Dham Patiya Wale Baba in Morena Story

धाम में एक और महान बाबा रामदास हुए. सिद्ध बाबा रामदास ने यहां बरगद का वृक्ष भी लगाया. सिध्द रामदास का ” कढ़ाह” सदैव अग्नि पर चढ़ा रहता था और हर आने-जाने वाले श्रृध्दालु को दूध का प्रसाद मिलता था. यही कढ़ाह बाद में कड़ाह हुआ और अन्तराल में ” करह ” नाम से प्रसिद्ध हुआ.

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