International Society for Krishna Consciousness ISKCON : ISKCON दुनिया में कृष्ण भक्ति का दूसरा नाम बन चुका है. इस संस्थान ने बीते कुछ दशकों में न सिर्फ बुलंदी को छुआ है बल्कि लाखों अनुयायी भी बनाए हैं. इस लेख में हम जानेंगे कि ISKCON क्या है (What is ISKCON), ISKCON कैसे काम करता है (What is ISKCON Work?), ISKCON कमाई कैसे करता है (How ISKCON Earns?), ISKCON की स्थापना कैसे हुई थी (When ISKCON Was Founded?), ISKCON का हेडक्वॉर्टर कहां है (Where is ISKCON Headquarter), ISKCON का फुल फॉर्म (ISKCON Full Form) क्या है… आइए जानते हैं ISKCON के बारे में सबकुछ (All About ISKCON) इस लेख में…
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ कहिए या ISKCON… इसे अंग्रेजी में International Society for Krishna Consciousness ISKCON कहते हैं… हिन्दी में उच्चारण इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉनशियसनेस – इस्कॉन है. इसे “हरे कृष्ण आंदोलन” के नाम से भी जाना जाता है.
ISKCON की स्थापना 13 जुलाई 1966 को अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुई थी. आज देश-विदेश में ISKCON के कई मंदिर और विद्यालय हैं. ISKCON के दुनिया भर में 1 हजार से ज्यादा सेंटर्स हैं. अगर बात भारत की करें तो यहां इसके 400 सेंटर हैं. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में 12 ISKCON मंदिर हैं.
जैसा कि हमने ऊपर बताया- ISKCON का फुल फॉर्म “International Society for Krishna Consciousness ISKCON” है. अगर बात हिन्दी में करें तो इसका मतलब “अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ” है.
दुनिया का पहला ISKCON मंदिर भारत में नहीं बल्कि परदेस में बनाया गया था. दुनिया के पहले ISKCON मंदिर का निर्माण न्यूयॉर्क में 1966 में उसी साल हुआ था जिस साल इस संस्थान की स्थापना हुई थी. इस मंदिर की स्थापना भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने की थी.
भगवान कृष्ण का संदेश पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए जिस दिव्यात्मा ने ISKCON (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) की स्थापना की थी, उसका नाम स्वामी प्रभुपाद है. आज हर इस्कॉन मंदिर में प्रभुपाद की प्रतिमा जरूर दिखाई देती है. स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1896 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था.
प्रभुपाद ने 49 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था. सन्यास लेने के बाद स्वामी जी ने पूरे विश्व में घूम-घूम कर हरे रामा हरे कृष्णा का प्रचार किया.
स्वामी प्रभुपाद् ने 1957 में इस संस्था की स्थापना करने की योजना तैयार की थी लेकिन किसी कारणवश ऐसा न हो सका. स्वामी प्रभुपाद ने शुरुआत में संस्था का नाम भक्तों का संघ रखा था. इसके लिए प्रभुपाद ने तब दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञापन भी दिया था. विज्ञापन में कहा गया कि ऐसे पढ़े लिखे नौजवानों की जरूरत है जो दुनिया भर में भगवद् गीता का संदेश फैला सकें. विज्ञापन में चयनित लोगों की यात्रा, भोजन और वस्त्र का खर्च संस्था द्वारा उठाए जाने की बात कही थी.
कृष्ण भक्ति के उद्देश्य को दुनिया भर में बढ़ाने का मकसद आगे चलकर न्यूयॉर्क में सन् 1966 में International Society of Krishna Consciousness (ISKCON) की स्थापना के रूप में सामने आया.
यह एक ऐसा संगठन है, जहां हर जाति और मजहम के लोग भेदभाव से मुक्त होकर कृष्ण की अराधना करते हैं. प्रभुपाद ने साल 1968 में सैन फ्रैंसिस्को में पहली जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया गया. सन 1970 में उनके द्वारा ही ISKCON (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) और इससे जुड़े कार्यों के सही संचालन के लिए Governing Body Commission (GBC) की स्थापना की गई थी.
अगले 12 वर्षों के अंदर प्रभुपाद ने 10,000 से ज्यादा सदस्यों को दीक्षा प्रदान की. कृष्णभावना को दुनिया भर में पहुंचाने के मकसद से प्रभुपाद ने 14 बार विश्व यात्रा की. अलग-अलग देशों में 108 से ज्यादा मंदिरों की भी स्थापना की. उन्होंने कई गुरुकुल, स्कूलों, गौशाला व कृषि क्षेत्रों की स्थापना की.
75 वर्ष की आयु में प्रभुपाद कुछ विदेशी शिष्यों के साथ वह भारत आए. इसके बाद भारत में भी ISKCON (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) भक्ति की शुरुआत हुई. 1972 में, उन्होंने भक्ति वेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना की. 14 नवंबर 1977 को 81 वर्ष की उम्र में धर्मनगरी मथुरा में स्वामी प्रभुपाद ने अंतिम सांस ली.
अपने सिद्धांत के साथ ही, ISKCON (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) के अनुयायी मुख्यत: 4 नियमों का पालन करते हैं-
इस्कॉन के अनुयायी को तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना होता है. उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का त्याग करना होता है.
इस्कॉन के अनुयायियों को अनैतिक आचरण जैसे जुआ, पब, वेश्यालय का भी त्याग करना होता है.
इस्कॉन के अनुयायी को हर रोज एक घंटे का वक्त शास्त्रों के अध्ययन में बिताना होता है. इसमें गीता के साथ साथ भारतीय धर्म और इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन शामिल रहता है.
सबसे आखिरी और सबसे अहम- हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ नाम की माला 16 बार जपनी होती है.
भारत में पश्चिम बंगाल के मायापुर में Iskcon (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) का हेडक्वॉर्टर है. अनुमान लगाया गया है कि संप्रदाय के 10 लाख से भी ज्यादा विदेशी सदस्य हैं.
पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में स्थित है मायापुर. यहीं पर न सिर्फ इस्कॉन (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) का हेडक्वॉर्टर है बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा वैदिक तारामंडल भी संस्था यहां बनवा रही है. इसके साल 2024 में बनने की संभावना है.
दुनिया के इस सबसे बड़े वैदिक तारामंडल मंदिर के निर्माण में 100 मिलियन डॉलर खर्च होने की संभावना है. एक बार बन जाने पर यह कंबोडिया के 400 एकड़ के अंगकोरवाट मंदिर की जगह दुनिया का सबसे बड़ा वैदिक मंदिर बन जाएगा.
दुनिया में सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक होने जा रहा यह मंदिर सबसे बड़े गुंबद के साथ होगा. वैदिक तारामंडल मेहमानों को ब्रह्मांडीय निर्माण के अलग अलग हिस्सों का भ्रमण कराएगा, बह्मांड से जुड़ी बातों की यहां पर जानकारी दी जाएगी. यह आगरा के ताजमहल और वेटीकन के सेंट पॉल कैथेड्रल से भी विशाल होगा.
वैदिक मंदिर का आर्किटेक्चर अमेरिका में कैपिटल बिल्डिंग के डिजाइन से प्रेरित है. यहां हर फ्लोर पर 10 हजार भक्त बैठ सकेंगे.
इस्कॉन जिस एक सबसे बड़े तरीके से पैसे कमाता है, वह डोनेशन है. ये डोनेशन इस्कॉन (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) के सदस्य और उसके सपोर्टर्स देते हैं. इस्कॉन कई तरह के बिजनेस भी संचालित करता है. इस्कॉन मंदिरों, रेस्टोरेंट और स्कूलों सहित कई बिजनेस संचालित करता है. ISKCON Life Patron Membership Program भी इसकी कमाई का अहम जरिया है.इसी वजह से इस्कॉन मंदिर और सेंटर्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
इस्कॉन में प्रभुपाद का बनाया नियम है दान, पुस्तकों की बिक्री, रेस्टोरेंट, गिफ्ट की बिक्री या कलाकृतियों से होने वाली किसी एक मंदिर की आमदनी दूसरे मंदिर का ट्रांसफर नहीं होगी. धन जुटाने के लिए हर मंदिर खुद ही अपनी योजना तैयार करता है.
हरे कृष्ण आंदोलन का लक्ष्य भक्ति योग या कृष्ण भक्ति से सभी के कल्याण को बढ़ावा देना है. ये संस्था प्रेम के आधार पर एक आदर्श समाज बनाने का प्रयास करती है. हरे कृष्ण आंदोलन का अंतिम लक्ष्य प्रत्येक जीव को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने में मदद करना है.
हरे कृष्ण (International Society for Krishna Consciousness ISKCON ) की वेबसाइट के अनुसार इसके फॉलोअर्स खुद को “गंभीर तपस्या, प्रार्थना और ध्यान” के लिए समर्पित रखते हैं. हरे कृष्ण अनुयायी जो विवाह नहीं करना चाहते हैं और अपना जीवन मंदिरों में बिताना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. इसके बावजूद आपको ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है.
हरे कृष्ण (International Society for Krishna Consciousness ISKCON ) भक्तों को अपने जप मनकों पर प्रतिदिन कम से कम 16 माला हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना होता है, मंदिर में सुबह और शाम की कक्षाओं में भाग लेना होता है, त्योहारों और अन्य भक्ति गतिविधियों में भाग लेना होता है, और भगवान कृष्ण की शिक्षाओं के आधार पर जीवन जीना होता है.
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) की स्थापना 1972 में दुनिया की आबादी के बीच भक्ति योग के अभ्यास को फैलाने के लिए की गई थी. हरे कृष्ण वैदिक संप्रदाय की सबसे बड़ी शाखा हैं, जिसकी उत्पत्ति गौड़ीय-वैष्णव संप्रदाय से हुई थी. अध्यात्मवादियों का लक्ष्य खुद को कृष्ण की ऊर्जा से जोड़ना और चेतना की शुद्ध, प्राकृतिक अवस्था प्राप्त करना है.
हरे कृष्ण भक्त अपने मंदिरों को साफ रखने के लिए सिर मुंडवाते हैं और भगवा वस्त्र पहनते हैं.
इस्कॉन (International Society for Krishna Consciousness ISKCON) के पूरी दुनिया में 800 से ज्यादा मंदिर और सेंटर्स हैं और इसके लाखों फॉलोअर्स हैं.
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