Teerth Yatra

कैसी थी हनुमान जी की हिमालय से Sanjeevani Booti लाने की यात्रा

हनुमान ( Hanuman ) कैसे लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) लेकर आये थे. ये किस्सा, बड़ों से लेकर छोटों तक में आज भी खूब चर्चा में रहता है. जब मेघनाद की शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण ( Laxman ) मूर्छित हो गए थे. तब कैसे हनुमान जी ( Hanuman Ji ) उनके लिए संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) लेकर आये थे.

रामायण ( Ramayan ) की मान्यता ऐसा अनुसार माना जाता है कि लक्ष्मण ( Laxman ) के प्राण वापस लाने के लिए हनुमान जी ( Hanuman Ji ) हिमालय ( Himalaya ) से संजीवनी पर्वत को ही उठा के ले आये थे. इस दौरान क्या-क्या हुआ. किस तरह से रास्ते में एक अप्सरा ने उनकी मदद की. आज जानेंगे ऐसे ही कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में.

श्रीलंका ( Sri Lanka ) से काफी दूर स्थित इलाके में मौजूद ‘श्रीपद’ नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही, वह जगह है जहां पर द्रोणागिरी का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमान जी ( Hanuman Ji ) अपने साथ ले गए थे. बताया जाता है कि इस जगह को ‘एडम्स पीक’ भी कहते हैं. श्रीलंका ( Sri Lanka ) के दक्षिणी तट गाले में बेहद आकर्षक इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा भी कहते हैं. जबकि कुछ लोग कहते हैं कि वह द्रोणागिरी का पहाड़ था. बता दें द्रोणागिरी हिमालय ( Himalaya ) में स्थित था.

 

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जब मेघनाद की शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण जी ( Laxman Ji ) मूर्छित होकर गिर गए थे. तब हनुमान जी ( Hanuman Ji ) ही उनके लिए संकटमोचन बनें और लंका ( Lanka ) से सुषेण वैद्य को लेकर आए. तब वैद्य ने बताया कि इस शक्ति बाण का इलाज हिमालय ( Himalaya ) के द्रोणाचल पर्वत के शिखर पर पाई जाने वाली संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) से ही हो सकता है. जिसको सूर्योदय होने से पहले लाना होगा.

इस बूटी से ही लक्ष्मण जी ( Laxman Ji ) के प्राण बच सकते हैं. ये सुनते ही राम  ( Ram ) भक्त हनुमान जी ( Hanuman Ji ) संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) को लेने के लिए वहां से निकल पड़े. वहीं जब रावण ( Ravan ) को इस बात की सूचना मिली तो उसने हनुमान जी ( Hanuman Ji Journey ) को रोकने के लिए कई बाधाएं डाली यही नहीं कईं षड़यंत्र भी रचे. उसने कालनेमि को इस काम में लगा दिया, जिससे कि किसी तरह भी हनुमान जी ( Hanuman Ji ) समय से उस संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti )को लेकर ना पहुंच सकें.

रावण ( Ravan ) किसी तरह से भी हनुमान जी ( Hanuman Ji ) को रोकना चाहता था. इसीलिए रावण ( Ravan ) ने कालनेमि से कहा कि हनुमान ( Hanuman Ji ) को रोकने के लिए हर प्रकार की माया रच डालो, जिससे की उनकी यात्रा में विघ्न पैदा हो जाए. रावण ( Ravan ) की इस बात पर कालनेमि ने कहा कि रामदूत हनुमान ( Hanuman Ji ) को माया से मोहित कर पाने में कोई भी समर्थ नहीं है. और अगर कोई ये करने का प्रयास भी करता है तो वो निश्चित ही उनके हाथों मारा जाएगा.

​इस पर रावण ( Ravan ) ने कालनेमि से कहा कि अगर तुम मेरे आदेश को नहीं पूरा करोगे, तो फिर तुम्हें ही मरना होगा. तब कालनेमि ने सोचा कि रावण ( Ravan ) के हाथों मरने से अच्छा है कि वह हनुमान जी ( Hanuman Ji ) के हाथों से ही क्यों ना मारा जाए. उसने अपनी माया से हनुमान जी ( Hanuman Ji ) के रास्ते में ही एक सुंदर कुटिया का निर्माण किया और इसके बाद वो वहां एक ऋषि का वेश धारण कर बैठ गया.

 

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इसी दौरान जब हनुमान जी ( Hanuman Ji ) आकाश मार्ग से जा रहे थे तब अचानक से हनुमान जी ( Hanuman Ji ) को प्यास लगी, तभी वो वहां पर स्थित सुंदर कुटिया देखकर नीचे आ गए. हनुमान जी ने ( Hanuman Ji ) ऋषि का रूप धारण किये कालनेमि को प्रणाम किया और पीने के लिए जल मांगा. तभी कालनेमि ने कहा कि राम ( Ram ) और रावण ( Ravan ) के बीच युद्ध हो रहा है. जिसमें राम जी ( Ram Ji ) ही विजयी होंगे. मैं यहां से सब देख पा रहा हूं. तभी कालनेमि ने अपने कमंडल की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इसमें शीतल जल है, आप इसे ग्रहण कर सकते हैं. तभी हनुमान जी ( Hanuman Ji ) ने कालनेमि से कहा कि इतने से जल से उनकी प्यास नहीं बुझ सकेगी. कृपया कोई और जलाशय के बारे में बताएं.

तभी कालनेमि ने हनुमान जी ( Hanuman Ji Journey ) को एक जलाशय दिखाया और उनसे कहा कि वो वहां पर जाकर जल पीकर स्नान कर सकते हैं. जिसके बाद ही वो उनको फिर दीक्षा देगा. हनुमान जी ( Hanuman Ji ) बताए गए जलाशय में पहुंच गए और वहां स्नान करने लगे, तभी वहीं पर एक मकड़ी ने उनका पैर पकड़ लिया. जिसके बाद हनुमान जी ( Hanuman Ji ) ने उसका मुख फाड़ दिया, जिससे वह तुरन्त ही मर गई.

इसके बाद ही वहां पर एक दिव्य अप्सरा प्रकट हुई. अप्सरा ने हनुमान जी ( Hanuman Ji ) से कहा कि श्राप मिलने के कारण उसे मकरी बनना पड़ा था. अब आपके दर्शन मिलने से मैं पवित्र हो गई और मुनि के श्राप से भी अब मैं पूरी तरह से मुक्त भी हो गई हूँ. इसके बाद अप्सरा ने हनुमान जी ( Hanuman Ji ) को बताया कि आश्रम ( Ashram ) में बैठा हुआ ऋषि एक राक्षस है, जिसका नाम कालनेमि है.

इस बात का पता लगते ही जानकर हनुमान जी ( Hanuman Ji ) तुरंत कालनेमि के पास गए और बोले कि मुनिवर! सबसे पहले आप गुरुदक्षिणा ले लीजिए. मंत्र मुझे बाद में दीजिएगा. इतना कहने के बाद ही हनुमान जी ( Hanuman Ji ) ने उस कालनेमि को अपनी पूंछ में लपेट लिया और वहीं पर पटक कर मार डाला. मरते वक़्त कालनेमि का राक्षस स्वरुप हनुमान जी ( Hanuman Ji ) के सामने आया. कालनेमि ने मरते वक़्त राम ( Ram ) का नाम लिया. जिसके बाद राम ( Ram ) नाम लेने भर से ही उसका उद्धार हो गया.

मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी ( Hanuman Ji ) हिमालय ( Himalaya ) की कंदराओं में संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) की खोज करते रहे, लेकिन उन्हें संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) की सही से पहचान नहीं थी. जिसके कारण वो द्रोणागिरी पहाड़ के ही एक टुकड़े को ही ले आए. मान्यताओं के अनुसार यह वहीं पहाड़ है. इसी पहाड़ को ले जाकर युद्धक्षेत्र पहुंचे हनुमान जी ( Hanuman Ji Journey ) ने पहाड़ वहीं रख दिया. वैद्य ने संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) को पहचाना और लक्ष्मण जी ( Laxman Ji ) का उपचार इसी जड़ी बूटी ( Booti ) से किया.

तब से ही उस पहाड़ को सारी दुनिया रूमास्सला पर्वत के नाम से जानती है. श्रीलंका ( Sri Lanka ) की खूबसूरत जगहों ( Beautiful Places ) में से एक उनावटाना बीच इसी पर्वत के पास है. उनावटाना का मतलब ही है आसमान से गिरा.

जब हनुमान जी ( Hanuman Ji ) संजीवनी बूटी ( Sanjeevani Booti ) का पहाड़ उठाकर श्रीलंका ( Sri Lanka ) पहुंचे तो उसका एक टुकड़ा रास्ते मे ही रीतिगाला में गिर गया. रीतिगाला की खासियत है कि आज भी जो जड़ी-बूटियां उगती हैं, वो वहां स्थित आसपास के इलाके से एकदम अलग हैं.

श्रीलंका ( Sri Lanka ) के नुवारा एलिया शहर से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित हाकागाला गार्डन में हनुमान जी ( Hanuman Ji ) के लाए पहाड़ का दूसरा बडा़ हिस्सा भी गिरा. तभी से इस जगह की मिट्टी और पेड़ पौधे अपने आसपास के इलाके से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं.

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