Delhi Historical Temple : यूं तो भारत की राजधानी दिल्ली (या new delhi) का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास देखने वाली कई Delhi temples हैं। उनमें से कुछेक इतनी प्राचीन हैं कि उन्हें हस्तिनापुर से ढिल्ली और ढिल्ली से दिल्ली Delhi तक के सफर का गवाह माना जा सकता है। आज हम दिल्ली के 11 ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे शायद आपने इससे पहले कभी नहीं कही पढ़ा होगा।
श्री किलकारी भैरव मंदिर या भैरो मंदिर प्रगति मैदान (पुराना किला) के पीछे में स्थित है। यह माना जाता है कि इस Temple का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। जिनके बिग्रह में भैरव बाबा का चेहरा और दो बड़ी-बड़ी आंखों के साथ बाबा का त्रिशूल दिखाई पड़ता है। पांडवों द्वारा निर्मित पहला भैरव मंदिर है। भैरो मंदिर भक्तों को देवता पर शराब चढ़ाने की अनुमति देता है।
मंदिर के दो पंख हैं – दुधिया भैरव मंदिर, जहां मूर्ति को दूध चढ़ाया जाता है और किलकारी भैरव मंदिर, जहां भक्त पीठासीन देवता को शराब चढ़ाते हैं। यह भी माना जाता है कि भीम (पांडवों में से एक) ने इस मंदिर में पूजा की और सिद्धियों को भी प्राप्त किया।
यदि आप भैरव देवता शराब चढ़ाना चाहते हैं तो आप अपने साथ शराब जरूर कैरी करें । मंदिर में शराब नहीं बिकती है और आस-पास में भी एक दुकान नहीं है।
अक्षरधाम मंदिर को स्वामीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। दुनिया के सबसे विशाल हिंदू Temple के तौर पर उसका नाम गिनेस बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में भी दर्ज है। इसमें 10,000 साल पुरानी भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और वास्तुकला को दर्शाया गया है। मंदिर परिसर के अंदर नीलकंठ नाम का एक थिअटर है, जहां स्वामीनारायण की जिंदगी की घटनाएं दिखाई जाती हैं। यहां का म्यूजिकल फाउंटेन भी बहुत खूबसूरत है। हर शाम यहां 15 मिनट का शो चलता है।
अक्षरधाम मंदिर का म्यूजिकल फाउंटेन काफी प्रसिद्ध है। इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। क्या बच्चे और क्या बूढ़े, अक्षरधाम मंदिर आकर हर किसी का मन रम जाता है। अगर आप दिल्ली में हैं तो आपको यहां जरूर जाना चाहिए।
राजधानी दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में प्राचीन हनुमान मंदिर का अलग ही महत्व है। यहां पर उपस्थित बाल हनुमानजी स्वयंभू हैं। वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालु रोज ही दर्शन के लिए आते हैं लेकिन मंगलवार को यहां काफी भीड़ रहती है। इस मंदिर का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि माना जाता है कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। दिल्ली जिसका पहले नाम इंद्रप्रस्थ था, उस पर पांडवों का राज था। पांडवों ने राजधानी में जिन पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी यह मंदिर उनमें से एक है।
इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि अपनी दिल्ली यात्रा के समय संत तुलसीदास जी भी इस मंदिर में आए थे और पूजन अर्चन किया था। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना इसी मंदिर में की थी। मंदिर में बाल हनुमानजी के अलावा श्रीराम-सीता और लक्ष्मण, श्रीराधा कृष्ण, श्री हनुमानजी महाराज, संतोषी माता, शिव शंकर पार्वती, शिवलिंग, नंदी, हनुमानजी का गदा, मां दुर्गा, लक्ष्मी नारायण, भगवान गणेश, मां सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर के बाहर मिठाई और फूलों की कई दुकानें हैं। श्रद्धालु मंदिर में हनुमानजी को लाल रंग का चोला और लड्डू चढ़ाते हैं।
चांदनी चौक स्थित गौरी शंकर मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। यहां समय-समय पर सत्संग का आयोजन किया जाता है। मंदिर सुबह 5 बजे से 10 बजे तक तथा शाम को 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। गौरी शंकर मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है।
शिवलिंग को मराठा सैनिक आपा गंगाधर ने स्थापित किया था। मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1959 में वेणी प्रसाद जयपुरिया ने कराया था। मंदिर में गौरी शंकर के साथ गणेश व कार्तिकेय की भी प्रतिमा है। कुछ साल पहले राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा स्थापित की गई है।
108 फीट हनुमान मंदिर, जिसे संकट मोचन धाम के नाम से भी जाना जाता है, दिल्ली के मेट्रो ब्लू लाइन के साथ स्थित झंडेवाला मेट्रो स्टेशन के बहुत करीब स्थित है। मंदिर का निर्माण 1994 में शुरू हुआ और परियोजना को पूरा करने के लिए लगभग 13 साल लग गए। मंदिर कला, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी का एक अद्भुत टुकड़ा है। मंदिर की ऊंचाई 108 फीट है जिसमें जम्मू एवं कश्मीर में वैष्णो देवी श्राइन के समान एक गुफा है। इस गुफा में पिंडी के रूप में एक पवित्र पिंड भी है और गंगा नदी के रूप में पानी का एक पवित्र प्रवाह है।
मंगलवार और शनिवार हनुमान मंदिर के लिए विशेष दिन हैं। शाम के दौरान आरती में एक बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है। आरती के बीच में एक दर्शया आयोजित किया जाता है, जहां हनुमान की दोनों बाहें छाती खोलती और बंद करती तो सभी भक्तों को एक अद्भुत झलक मिलती है।
दिल्ली के झंडेवाला देवी मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है। यहां पर दूर-दूर से भक्त, मां के पावन दर्शनों के लिए आते हैं। यहां भक्त मां भगवती से अपनी मानसिक शांति, स्वास्थ्य, सुख और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
यहां आने पर भक्तों का हिलता विश्वास दृढ़ होता है। जो भी इस मंदिर में आता है, यहां की अदृश्य आध्यात्मिक तरंगे उसके मन एवं हृदय को पावन कर देती हैं।
भगवान शिव परम-ब्रह्म के भौतिक रूप हैं, जिन्हें महादेव, शंकर और भोलेनाथ के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू त्रिदेव (3 भगवान) में से एक रूप है, वह ब्रह्मांड में विनाश और बहाली के लिए जिम्मेदार हैं उनकी पत्नी शक्ति माता नव दुर्गा के रूप मे पूजी जाती हैं। सावन सोमवार, सोलह सोमवार और शिवतेरश श्री शिव मंदिरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन हैं।
प्राचीन, पुराणों मे वर्णित, त्रेता युग से ही स्थापित हिरण्यगर्भ सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव के स्वरूप को धारण किए यह मंदिर श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाभारत काल से स्थापित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर, प्राचीन नीली छतरी मंदिर पांडवों कालीन, यह मंदिर जन साधारण में नीली छतरी मंदिर नाम से प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के गर्भगृह के द्वार पर योगमाया का मंत्र लिखा हुआ दीखता है। श्रद्धालु इसे पढ़कर और जप कर ही आगे बढ़ते हैं।
गर्भगृह में देवी योगमाया का विग्रह काफी भव्य और मनमोहक है। यह जमीन पर एक कुण्ड में विराजित है। इस कुण्ड के गोलाकार घेरे में भगवती योगमाया का सिर प्रतिष्ठित है।
माया को अशरीरी माना गया है, शायद इसलिए यहां प्रतीकात्मक रूप से केवल सिर की पूजा होती है। देवी योगमाया के अनेक मंदिर हैं, लेकिन हस्तिनापुर और महाभारत के इतिहास से जुड़े होने के कारण इस देवी मंदिर का महत्त्व बढ़ जाता है। देवी योगमाया के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थी, जो उनसे बड़ी थीं।
यमुना नदी के तट पर स्थित दिल्ली का सबसे प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर लद्दाख बौद्ध विहार या बौद्ध मठ है। बौद्ध मॉनेस्टी तक पहुंचने के लिए कश्मीरी गेट सबसे निकटतम मेट्रो स्टेशन एवं बस स्टेंड है। चमकीले रंग से शोभायमान मंदिर के अंदर विशालकाय भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में कई छोटे प्रार्थना पहिए (प्रेयर वील्स) तथा एक बड़ा मंदिर के मुख्य द्वार पर लगे हुए हैं। जिन्हें घूमने में क्या बच्चे, बड़ों को भी कभी आनंद आता है।
नई दिल्ली का कमल मंदिर बहाई संप्रदाय से संबंधित है। बहाई धर्म दुनिया के नौ महान धर्मों का संयोजन है और इसकी स्थापना पैगंबर बहाउल्लाह ने की थी। यह मंदिर तालाबों और बगीचों के बीच आधे खुले तैरते कमल के आकार में बना है। इस मंदिर में किसी भी भगवान की कोई मूर्ति नहीं लगी है।
बहाई समुदाय के पास पूरे एशिया में पूजा करने का एक ही स्थान है– कमल मंदिर। एक वर्ष में यहां करीब 45 लाख पर्यटक आते हैं। दिसंबर 1986 में नई दिल्ली में बहाई समुदाय ने कमल मंदिर का निर्माण करवाया था। कमल मंदिर को इसके आकार से अपना नाम मिला है। कमल – शांति, पवित्रता, प्रेम और अमरत्व का प्रतीक है और इस मंदिर का डिजाइन इस खूबसूरत फूल के समान बनाया गया है।
कालकाजी मंदिर के नाम से विख्यात ‘कालिका मंदिर’ देश के प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक है। जहां नवरात्र में हजारों लोग माता का दर्शन करने पहुंचते हैं। इस पीठ का अस्तित्व अनादि काल से है। माना जाता है कि हर काल में इसका स्वरूप बदला। मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती ‘महाकाली’ के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया।
तब से यह मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। मौजूदा मंदिर temple बाबा बालक नाथ ने स्थापित किया। उनके कहने पर मुगल सम्राज्य के कल्पित सरदार अकबर शाह ने इसका जीर्णोद्धार कराया।
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