Teerth Yatra

Hinglaj Mata Mandir : पाकिस्तान में इस पहाड़ी पर क्यों चढ़ाई करते हैं हिंदू?

Hinglaj Mata Mandir : कराची से लगभग 330 किलोमीटर की दूरी पर बने हिंगलाज माता के मंदिर ( Hinglaj Mata Mandir ) तक पहुंचने के रास्ते में 300 फीट ऊंचा ज्वालामुखी, चंद्रगुप आता है। जिसको पार कर के ही लोगों को जाना पड़ता है। आपको बता दें कि लोगों का कहना है कि ये ज्वालामुखी भक्तों की इच्छाएं पूरी करता है। श्रद्धालु ज्वालामुखी में नारियल और फूल डालते हैं। कुछ लोग ज्वालामुखी से निकलने वाली गिली मिट्टी को भी अपने साथ ले जाते हैं और अपने घर पर उस मिट्टी से छोटा सा घर बनाते हैं, जिससे घर में सौभाग्य बना रहे। साथ ही लोगों का मानना है कि ऐसा करने से अच्छा वक्त आएगा और अच्छी किस्मत भी होगी। इस स्थान की यात्रा काफी मुश्किल है। धूल भरी आंधियों और तेज धूप का सामना करके ही हिंगलाज माता के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

चंद्रगुप एक 300 फीट लम्बा मिट्टी का ज्वालामुखी है जो कि मंगल ग्रह जैसा दिखता है और ये बलोचिस्तान ( Balochistan ) में स्थित है। ये जगह धार्मिक कारणों की वजह से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यहां पर हर साल अप्रैल में 4 दिनों के लिए तीर्थ का आयोजन होता है, जिसके लिए हिन्दू पाकिस्तान और भारत से भी यात्रा करने के लिए आते हैं। इस तीर्थ की शुरुआत कराची से होती है और ये हिंगलाज माता के मंदिर में खत्म होती है। ये कुल 330 किलोमीटर की यात्रा है। तीर्थ का एक अनुष्ठान है चन्द्र्गुप की चढ़ाई ( Chandragup Trekking )

आपको बता दें कि इस ज्वालामुखी पर चढ़ना काफी मुश्किल काम है। किसी भी पेड़ के बिना इस रेतीले इलाके पर ऊपर की तरफ चढ़ना गर्मी के दिनों में काफी ज्यादा कठिनाई भरा होता है। यात्रा थार रेगिस्तान के पश्चिम से शुरू होती है जो अरेबियन समुन्द्र से होते हुए बलोचिस्तान के रेगिस्तान में दोबारा अंदर जाकर खत्म होती है।

कराची से 6-7 मील चलकर हाव नदी पड़ती है। यहीं से माता हिंगलाज की यात्रा की शुरूआत होती है। श्रद्धालु हिंगोल नदी ( Hingol River ) के किनारे जयकारों के साथ माता का गुणगान करते हुए आगे बढ़ते हैं। पहाड़ों को पार करने के बाद भक्‍त मंदिर तक पहुंचते हैं। रास्ते में मीठे पानी के 3 कुंए पड़ते हैं। मान्‍यता है कि इसका पानी पीकर यात्री पवित्र होकर माता के दर्शन करते हैं।

ये तीर्थ यात्रा हिंगलाज देवी मंदिर ( Hinglaj Mata Mandir ) में खत्म होती है, जो कि ल्यारी तहसील, बलोचिस्तान में बसा है। हिंगलाज देवी ( Hinglaj Mata Mandir ) कि मान्यता सबसे ज्यादा हिन्दुओं में हैं। ये एक शक्ति पीठ है। ऐसा माना जाता है कि सती देवी का सर पाकिस्तान में इसी जगह पर गिरा था। गौरतलब है कि यहां के लोकल मुस्लिम भी इस यात्रा में हिस्सा लेते हैं। मुसलमान इसे नानी का हज के नाम से जानते हैं। इससे नजर आता है कि बेश दोनों सरहदों पर और हुकुमतों में टकराव है, लेकिन आस्था के मामले में दोनों देशों के नागरिक एक साथ है। हिंदूओं के लिए इस शक्तिपीठ ( Shaktipeeth ) की बहुत मान्यता है, माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने अपनी यात्रा के वक्त इस शक्तिपीठ में दर्शन किए थे। हिंदू ग्रंथों में भी कहा गया है कि भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ने भी इस जगह पर तप किया था।

साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर मनोरथ सिद्धि के लिए गुरु गोरखनाथ, गुरु नानकदेव, और दादा मखान जैसे संत भी यहां पर आ चुके हैं। ऊंची पहाड़ी पर बना ये मंदिर एक गुफा के रूप में हैं। इसमें कोई भी दरवाजा नहीं है। कहा जाता है कि हिंगलाज माता यहां रोज सुबह स्नान करने के लिए आती है। मंदिर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमाएं भी है। यहां पर ब्रह्मकुंड और तीरकुंड 2 प्रसिद्ध तीर्थ भी है।

हिंगलाज माता का दूसरा रूप तनोट माता का मंदिर ( Tanot Mata Mandir ) भारत में है। तनोट माता का मंदिर जैसलमेर जिले से करीब 130 किलोमीटर दूर है। 1965 की जंग के बाद ये मंदिर काफी चर्चित हो गया था। दरअसल लड़ाई में पाकिस्तान की तरफ से 3000 से भी ज्यादा बम गिराए गए थे, जिसमें इस मंदिर को एक खरोंच तक भी नहीं आई थी। यहां तक तो मंदिर परिसर में गिर 400 बम तो फटे तक नहीं थे। अब ये बम मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे गए हैं।

Pic Courtesy: tripoto

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