Govardhan Puja | Krishna Janmashtami | Govardhan Parvat Parikrama | Krishna Parvati Kahani | Krishna History | कृष्ण गोवर्धन पर्वत कथा | गोवर्धन पर्वत | कन्हैया की कहानी – गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) 23 किलोमीटर लंबी या 14 मील की परिक्रमा के रूप में हिंदू धर्म में खास स्थान रखता है. इस परिक्रमा को तेज कदमों से करने में 5 से 6 घंटे का वक्त लगता है. देशभर से श्रद्धालु गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Hill Parikrama) के लिए हर दिन ब्रज में पहुंचते हैं. गुरु पूर्णिमा, पुरुषोत्तममास या गोवर्धन पूजा के पावन अवसर पर लगभग 5 लाख लोग इस पवित्र पर्वत की परिक्रमा के लिए यहां पहुंचते हैं.
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गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Hill Parikrama) के लिए किसी तरह की समय सीमा नहीं है. जो श्रद्धालु दंडवत परिक्रमा करते हैं, उन्हें कई बार हफ्ते और कई बार महीने इसे पूर्ण करने में लग जाते हैं. दंडवत परिक्रमा एक डंडे से स्पॉट यानी जगह बनाकर उसके बराबर लेट लेटकर की जाती है. ऐसा करने वाले श्रद्धालु पत्थर से निशान बनाकर अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. कुछ साधु 108 दंडवत परिक्रमा भी करते हैं.
वृंदावन के 6 गोस्वामी लगातार गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) की परिक्रमा को करते हैं. खासतौर से सनातन गोस्वामी और रघुनाथ दास गोस्वामी. सनातन गोस्वामी अपनी परिक्रमा थोड़ी ज्यादा लंबी करते हैं. यह 24 मील लंबी परिक्रमा होती है जो चंद्र सरोवर, श्याम ढक, गंथुली ग्राम, सूर्य कुंड, मुखरई और किलोल कुंड से होकर गुजरती है.
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गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) की परिक्रमा कई बड़ी हस्तियों ने भी की है. इन हस्तियों में माधवेंद्र पुरी, अद्विता आचार्य, नित्यानंद, वल्लभाचार्य, नरोत्तम दास ठाकुर, श्रीनिवास आचार्य, राघव गोस्वामी, विश्वनाथ चक्रवर्ती और चैतन्य महाप्रभु हैं. चैतन्य महाप्रभु ने जब पहली बार गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) देखा तो वह धरती पर गिर पड़े. पर्वत को छूने के बाद वह आंसुओं को रोक नहीं सके और बेहाल हो गए.
भगवान कृष्ण से संबंधित होने की वजह से गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) का बड़ा महत्व है. इस वक्त इसका उच्चतर स्तर 25 मीटर (82 फीट) है और यह बेहद चौड़ा है. यह उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है. कृष्ण ने जब ब्रज के लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाया तभी उन्होंने लोगों से इस गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) की पूजा करने को कहा था. कृष्ण ने इस पर्वत की परिक्रमा भी करने को कहा था. इसी के बाद से गोवर्धन भगवान से जुड़ा पर्व गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) मनाया जाने लगा.
इस पर्व में भगवान गोवर्धन की पूजा (Govardhan Puja) होती है. यह दिवस दीपावली के अगले दिन होता है. आस्थावान लोग रात में जागकर 56 भोग बनाते हैं और भगवान को अर्पित करते हैं. इस काज को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ भोजन का पहाड़ भी होता है. कई तरह के व्यंजन जिसमें दाल, कढ़ी, सब्जी, पूड़ी, चटनी, आचार और सलाद प्रभु को अर्पित किए जाते हैं और फिर लोगों में वितरण भी किया जाता है. हजारों-लाखों भक्त गिरिराज को अर्पण करने के लिए प्रसाद लाते हैं. इसके उपरांत वह गोवर्धन परिक्रमा करते हैं.
परिक्रमा के इस नियम को तब और भी श्रेष्ठकर माना जाता है जब यह दूध के साथ किया जाता है. एक मिट्टी के बर्तन में दूध भरकर उसमें छिद्र कर दिया जाता है. भक्त एक हाथ में इसे लेते हैं तो दूसरे हाथ में एक और धूप से भरा बर्तन लेकर चलते हैं. गोवर्धन पर्वत (Govardhan Hill) की परिक्रमा मानसी गंगा कुंड से शुरू होती है और फिर राधाकुंड गांव में भगवान हरीवेद के भी दर्शन कराती है, यहीं पर वृंदावन रोड परिक्रमा पथ से जुड़ती है. 21 किलोमीटर की परिक्रमा के बाद महत्वपूर्ण शिला, राधा कुंड, श्याम कुंड, धन घाटी, मुखरविंदा, रीनामोचना कुंड, कुसुम सरोवर और पंचारी जैसे पवित्र स्थल भी आते हैं. इसका समापन मानती कुंड पर होता है.
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इस्कॉन (Iskcon) श्रद्धालुओं की परिक्रमा
वृंदावन में इस्कॉन (Iskcon) श्रद्धालुओं की परिक्रमा का भी खास महत्व है. हालांकि इस परिक्रमा की न तो कोई निश्चित शुरुआत की जगह है और न ही अंत. एक संभावित शुरुआत इसकी इस्कॉन मंदिर (Iskcon Mandir) से ही होती है, जिसमें 10 किलोमीटर (6.2 मील) की दूरी को लगभग 3 घंटे में तय किया जाता है. इसे आमतौर पर एकादशी के दिन किया जाता है. इस रूट की शुरुआत इस्कॉन (Iskcon Mandir)से होती है और यह कृष्ण बलराम मंदिर, कालिया घाट, मदन मोहन मंदिर, लाल पत्थर टावर, इमली टीला वृक्ष, श्रृंगार वट, केसी घाट, टेकरी रानी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, चैतन्य महाप्रभु के मंदिर से होकर वापस मथुरा-वृंदावन रोड पर आ जाती है. इस सड़क को पर करने के बाद एक किलोमीटर की दूरी के बाद ये परिक्रमा अपने शुरुआती स्थल तक पहुंच जाती है.
ब्रज मंडल (Braj Mandal) परिक्रमा
1986 से ही, ब्रज मंडल (Braj Mandal) परिक्रमा अक्टूबर-नवंबर के दौरान होती है. यह उसी रास्ते से होकर गुजरती है जिसपर से चैतन्य महाप्रभु होकर गए थे. श्रद्धालु इस यात्रा में ब्रज भूमि के 12 वनों का दर्शन करते हैं. इसके लिए पूरे एक महीने की समयावधि लगती है. ब्रज मंडल में 12 वन और 24 उपवन हैं. 12 वनों में मधुवन, तलावन, कुमुदवन, बहुलावन, कामवन, खादिरावन, वृंदावन, भद्रवन, भंदीरावन, बेलवन, लोहावन और महावन हैं. 24 उपवन में गोकुल, गोवर्धन, बरसाना, नंदग्राम, संकेत, परामद्रा, अरिंग, सेसई, मट, ऊंचाग्राम, केलवम, श्री कुंड, गंधर्ववन, पारसोली, बिलच्छू, बच्चावन, आदिबद्री, कराहला, अजनोख, पिसाया, कोकिलावन, दाढ़ीग्राम, कोटवन और रावल है.
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