Golden Temple : दिल्ली और उत्तर भारत में रहकर आपने जिस ट्रैवल डेस्टिनेशन के बारे में सबसे ज्यादा सुना होगा वो पंजाब में अमृतसर का गोल्डन टेंपल जरूर होगा. हालांकि, आप में से बहुत सारे लोग गोल्डन टेंपल यानी स्वर्ण मंदिर गए भी होंगे. हालांकि जो लोग अभी तक गोल्डन टेंपल नहीं गए हैं या जो लोग गोल्डन टेंपल जाकर भी कुछ जानकारियों से चूक गए हैं तो ये ट्रैवल बलॉग आपके बेहद काम का है.
दिल्ली से अमृतसर पंजाब जाने के लिए आपको कुल 7 घंटा और 32 मिनट का समय लगता है. यह समय बस से अमृतसर जाने में लगता है. अमृतसर दिल्ली से 450 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. भारत में उत्तर भारत के सभी राज्यों के ISBT यानि अंतर्राज्यीय बस अड्डे से पंजाब रोडवेज की बस आसानी से आपको मिल जाएगी. इसका किराया साधारण किराए जितना ही है. वहीं पंजाब जाने के लिए आपको वॉल्वो बस की सुविधा भी दिल्ली ISBT यानी बस स्टॉप से मिल जाएगी. जो आपको सीधा पंजाब “अमृतसर” बस स्टॉप तक पहुंचाएगी. वही यहां से आपको ऑटो मिल जाएगा. गोल्डन टेम्पल जाने तक के लिए आपको 50 रुपये का किराया चुकाना होगा. गोल्डन टेंपल को हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा भी कहा जाता है.
चारों तरफ से जल कुण्ड यानि जल सरोवर से घिरा हुआ ये गुरुद्वारा पूरे अमृतसर और पंजाब की शान और गौरव का प्रतीक बना हुआ है. इस सरोवर का निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था. यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है. इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर अथवा गोल्डन टेंपल के नाम से भी जाना जाता है. इतना ही नहीं, श्री हरमंदिर साहिब की नींव भी एक मुसलमान ने ही रखी थी.
इतिहास के मुताबिक सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिसंबर, 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी. सिखों के लिए स्वर्ण मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है. सिखों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं, जिनकी स्वर्ण मंदिर और सिख धर्म में अटूट आस्था है. इतिहास में नज़र डालें तो पूरा का पूरा अमृतसर शहर इसी सरोवर के चारों तरफ बसा हुआ है. ये सरोवर उस समय अमृतसर शहर को जल की पूर्ति करवाता था. गुरु राम दस सिखों के गुरु थे जिन को गुरु की उपाधि 30 अगस्त 1574 को दी गई थी.
गोल्डन टेंपल में प्रवेश करने के लिए आपको किसी भी प्रकार की कोई पर्ची या टिकट नहीं लेना होता है. यह बेहद ही शानदार और देखने में बेहद खूबसूरत है. यहां सुबह और शाम के समय गुरुबाणी पढ़ी जाती है और 24 घंटे धीमी आवाज़ में इसको स्पीकरों में चला के रखा जाता है. प्रवेश द्वार से लेकर गुरूद्वारे के भीतर जब तक आप यहां रहेंगे तब तक आप अपने सिर को खुला नहीं छोड़ सकते. यह यहां का नियम है जो स्त्री और पुरुष दोनों पर लागू होता है. प्रवेश द्वार से गुरूद्वारे तक पहुंचने तक आपको अपने मार्ग के चारों तरफ बेहतरीन पंजाब की कलाकृतियां और झलकियां दीवारों और पुतलों में मिल जाएगी. वहीं अगर आप पंजाबी खान-पान का स्वाद चखना चाहते हैं तो वो सभी ज़ायके भी यहां मौजूद हैं. परन्तु गुरूद्वारे के आस-पास कुछ भी खाना-पीना मना है जिसका आपको खास ख्याल रखना होगा.
ट्रैवल जुनून की राय में घूमने के लहज़े से देखें तो ये एक बेस्ट ऑप्शन हो सकता है. वहीं अगर खूबसूरती के बारें में बात करें तो भी ये बेहद शानदार टूरिस्ट प्लेस साबित हो सकता है. प्रति वर्ष यह 10 लाख से भी अधिक लोग घूमने आते हैं. रहने के लिए आपको गुरूद्वारे परिसर में ही धर्मशाला मिल जायेगी जिसके लिए आपको कोई पैसा नहीं देना होगा. और आप चाहते हैं तो आप परिसर से बाहर निकल कर अपने लिए होटल भी ले सकते हैं जो कि आपको 500 से 1000 रूपए तक का एक रात के लिए मिल जायेगा. जिसके लिए आपको ज्यादा दूर भी नहीं जाना पड़ेगा.
वैसे तो हम सभी जानते हैं की पंजाबी खाना भारत का सबसे लज़ीज़ खाना और स्वादिष्ट खाना होता हैं। लेकिन अगर अमृतसर आये हैं तो अमृतसरी नान और यहां के स्ट्रीट चाय और पकोड़े का आनंद लेना न भूलें जो कि एक विशेष प्रकार की बैंगन की चटनी के साथ परोसे जाते है जो कि बेहद स्वादिष्ट लगते हैं और यहां के स्ट्रीट फ़ूड में यहां के कुलचे भी बेहद फेमस हैं. वहीं मिठाई में रबड़ी वाली जलेबी भी. यहां के हर ढाबे में आपको मक्के की रोटी और बड़ा गिलास लस्सी का ज़रूर मिल जायेगा और सर्दियों की समय में सरसों का साग भी आपको चखने को मिल जायेगा. जो कि पंजाबी खाने का अहम हिस्सा है.
अमृतसर से 2 घंटे की दूरी पर लुधियाना और 2 घंटे की दूरी पर ही वाघा-बॉडर मौजूद हैं. गोल्डन टेंपल प्रवेश द्वार से ही आपको वाघा-बॉर्डर के लिए बस, जीप, और टूरिस्ट बस मिल जाएगी जिसका किराया मात्र 300 से 400 रूपए तक का आपको देना होगा. जो कि आपको वाघा बॉर्डर तक ले जाएगी. ये हिंदुस्तान और पाकिस्तान की सरहद पर स्तिथि है.
वहीं, आप अगर यहा आये हैं तो जलियांवाला बाग भी ज़रूर जाये. ये ट्रैवल जूनून की आपसे गुज़ारिश है. ये यहां से 1 घंटे की दूरी पर ही मौजूद है. जो आपको भारत के आज़ादी के दौर में ले जाएगी. ये वो जगह है जहां हज़ारों भारतीयों का बलिदान आज भी गवाही देता है.
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