Dussehra 2020 : यहां होती है रावण की पूजा, कभी नहीं जलाया गया रावण का पुतला
Dussehra 2020 : 25 अक्टूबर के दिन पूरे भारत में दशहरा मनाया जाएगा, इस दिन हर दगह रावण का पुतला दहन किया जाता है. इसके साथ ही रावण दहन के साथ नवरात्रि के नौ दिनों का समापन हो जाएगा. दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत कहा जाता है. हिंदू पचांग के अनुसार, दशहरा दीवाली से ठीक 20 दिन पहले आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है.
नवरात्रि दशहरा हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता. हर साल यह पर्व आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है. पूरे देश में विजयादशी के दिन रावण के पुतले को फूंकने की परंपरा है. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे उस शहर के बारे में जहां पर रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है बल्कि उसकी पूजा की जाती है और उन्हें पूरे आदर सत्कार दिया जाता है.
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Dussehra 2020 : मगर हमारे ही देश में एक ऐसा गांव भी है जहां रावण की पूजा होती है. जी हां ,यूपी के ग्रेटर नोएडा के बिखरख गांव में आज के दिन दशहरा नहीं मनाया जाता बल्कि यहां आज के दिन माहौल खुशहाल नहीं बल्कि गमगीन रहता है. यहां के लोगों का ऐसा मानना है कि रावण का जन्म इसी गांव में हुआ था.
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ऐसे में यहां दशहरा के दिन लोग न तो पूजन करते हैं और ना इस गांव में रामलीला का मंचन और रावण के पुतले का दहन किया जाता है. बिसरख गांव में रहने वाले लोग प्राचीन समय से ही यहां दशहरा नहीं मनाते हैं. कहा जाता है कि इस गांव में लंकापति राजा रावण के पिता ऋषि विश्रवा इसी गांव में रहते थे और इसी गांव से गाजियाबाद के प्रसिद्ध दूधेश्वर नाथ मंदिर पूजा के लिए जाते थे. इस गांव के सभी निवासी रावण को गांव का बेटा मानते हुए दशहरा में लंकापति के पुतले का दहन नहीं करते हैं.
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इस गांव में रावण का एक मंदिर भी है. बिसरख गांव के लोगों की माने तो गांव में स्थित एक मंदिर है, जहां कभी रावण के पिता ऋषि विश्रवा करते थे. इस मंदिर के बाहर लंकेश रावण के चित्र भी बने हुए हैं. साथ ही बिसरख के आस-पास ऐसे 3 मंदिर और भी हैं, जहां रावण के पिता पूजा अराधना के लिए जाते थे. इस प्राचीन शिव मंदिर के महंत राम दास के अनुसार ‘लंका नरेश इस गांव में पैदा हुए थे, इसी कारण इस मंदिर को रावण मंदिर के नाम से जाना जाता है. रावण का बचपन बिसरख गांव में बीता था, वह हमारे गांव के पुत्र थे इस कारण हम रावण के पुतले नहीं जलाते हैं.