Difference between Arzi and Darkhwast – राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित मेहंदीपुर बालाजी ( Mehandipur Balaji Mandir ) की विशेष महिमा है. संकट और बाधाओं से ग्रसित पीड़ित यहाँ बड़ी दूर दूर से आते हैं. बालाजी ( Mehandipur Balaji Mandir ) की महिमा ऐसी है कि यहाँ आते ही भक्त झूम उठते हैं और उनके सभी कष्ट कट जाते हैं. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के दर्शन करने के लिए जो भी श्रद्धालु आते हैं, वे समाधि वाले बाबा और तीन पहाड़ी मंदिर ज़रूर जाते हैं. तीन पहाड़ी ( Mehandipur Balaji Teen Pahadi Mandir ) के पास ही सात पहाड़ी मंदिर ( Mehandipur Balaji Saat Pahadi Mandir ) भी है. भक्त यहाँ भी जाते हैं. बालाजी मंदिर ( Mehandipur Balaji Mandir ) से थोड़ी ही आगे टोडाभीम (Todabheem) नाम का क़स्बा भी है. भक्त बालाजी ( Mehandipur Balaji Mandir ) के दर्शन तो करते हैं लेकिन कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर उन्हें मिल नहीं पाता है. ये सवाल हैं, अर्ज़ी, दरखास्त और सवामणि का अंतर ( What is Difference between Arzi and Darkhwast ), बालाजी की कहानी ( Story of Mehandipur Balaji ), आदि. बालाजी मंदिर पर ही हम एक विस्तारपूर्वक लेख लिख चुके हैं. आप यहाँ क्लिक करके उस आर्टिकल पर जा सकते हैं. इसके साथ ही, अगर आप समाधि वाले बाबा के बारे में जानकारी चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. तो आइए शुरू करते हैं मेहंदीपुर बालाजी की जानकारी ( What is Difference between Arzi and Darkhwast ) से जुड़ा ये ब्लॉग
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर पर दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु अक्सर ही ये सवाल पूछते हैं कि आख़िर इस जगह का नाम घाटा मेहंदीपुर बालाजी क्यों है. इसका जवाब हमने तीन पहाड़ी मंदिर के महंत से पूछा. महंत ने बताया कि दो पहाड़ों के बीच में ये मंदिर स्थित है. दो पहाड़ों की बीच की जगह को घाटा कहते हैं, मेहंदीपुर यहाँ एक गाँव का नाम है और बालाजी, हनुमान जी के बाल रूप को कहते हैं.
बालाजी मंदिर में, सबसे पहले श्री बालाजी महाराज की पूजा होती है. आप जब मंदिर की लाइन में लगते हैं तो सबसे पहले बालाजी के समक्ष पहुँचते हैं. बालाजी के साथ ही यहां भैरव जी दो रूप में विराजमान है. भैरव जी का पहला रूप भैरव महाराज है और दूसरा है एक कोतवाल कप्तान जी महाराज. इन दो दर्शनों के बाद, तीसरी पूजा प्रेतराज सरकार जी की होती है. प्रेतराज सरकार की पूजा अर्चना के बाद दीवान सरकार जी की पूजा जाती है. इसके बाद की पूजा बालाजी महाराज के पहले महंत श्री गणेश पुरी जी महाराज की होती है जिन्हें समाधि वाले बाबा जी के नाम से जाना जाता है. इन्हीं के अथक प्रयासों से बालाजी को प्रसिधी और विश्वख्याति मिल पाई है
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समाधि वाले बाबा और मेहंदीपुर बालाजी का रिश्ता ऐसे ही समझिए जैसे प्रभु रामचंद्र जी और हनुमान जी का रिश्ता. हनुमान के बिना राम अधूरे हैं और समाधि वाले बाबा के दर्शन के बिना, बालाजी के दर्शन भी पूरे नहीं होते हैं.
What is Difference between Arzi and Darkhwast – बालाजी में, सबसे पहले भक्त दरखास्त लगाते हैं. इस दरखास्त का मतलब वैसा ही है जैसा कि हम और आप क्लास में अटेंडेंस लगाते थे. बालाजी मंदिर में, इस दरखास्त के साथ हम कहते हैं कि बालाजी महाराज हम आपकी शरण में आ गए हैं. हमारी हाजिरी स्वीकार करो उसके बाद एक अरदास बालाजी महाराज के चरणो में लगाई जाती है. इसमें कोई भी शख़्स बालाजी के सामने अपने दो प्रश्न रख सकता है. अगर किसी व्यक्ति पर कोई संकट है या किसी प्रकार की प्रेतबाधा है या किसी भी तरह की मनोकामना है तो उसके लिए एक अरदास लगाई जाती है. अब यहां पर अर्जी और एक अर्जी में एक ही काम बताया जाता है और अर्जी को स्वीकार करने की दरखास्त दोबारा लगाई जाती है. यह श्री बालाजी के दरबार का नियम है।.
What is Difference between Arzi and Darkhwast – दरखास्त का मतलब है एक एप्लीकेशन जो श्री बालाजी महाराज के श्री चरणों में लगा दी गई. आप इसे अर्जी का छोटा स्वरूप भी कह सकते है. अर्जी का मतलब है अपने मनोकामना को एक तरह से बालाजी दरबार में दर्ज कराना होता है. जहां पर आप गए वहां पर आपकी हाजिरी लग गई तो कोई समस्या या बड़ी मनोकामना न होने पर इतने से आपकी बात ख़त्म हो जाती है लेकिन अगर किसी बड़ी मनोकामना के लिए आप यहाँ आते हैं तो आपको अर्ज़ी लगानी होती है
दरखास्त में एक बुनियादी अंतर और भी है. पहले दरखास्त सवा जो रुपये की लगती थी, फिर ये 5 रुपये की लगने लगी और अब 11 रुपये की लगती है. अर्जी भी इसी तरह से, पहले 81 रुपये की लगती थी, फिर 181 रुपये की लगने लगी और अब 281 रुपये की लगती है. दरखास्त के अंदर बालाजी के पांच छोटे-छोटे लड्डू और पांच पतासे दिये जाते हैं. ये एक छोटे दोने में होता है जबकि अर्जी के अंदर सवा किलो देसी घी के लड्डू बालाजी महाराज के लिए, ढाई किलो या सवा 2 किलो उबले हुए साबूत काली उड़द श्री भैरव जी महाराज के लिए और साढ़े 4 किलो चावल श्री प्रेतराज सरकार के लिए यह अर्जी होती है
बालाजी, हनुमान जी का बाल रूप है इसलिए उन्हें लड्डू प्रिय हैं, तो लड्डू चढ़ाए जाते हैं, बालाजी महाराज और गणेश जी महाराज के दोनों के लड्डू प्रिय हैं. इसके बाद भैरव जी महाराज को उड़द की पूजा ही विशेष है. भारत में, हर जगह उड़द से बने हुए खाद्य पदार्थ जैसे इमरती हो गई या गुलदाना हो गया यह भैरव जी महाराज को अर्पित किए जाते हैं. प्रेतराज सरकार मामले में, हमारे शास्त्रों में पहले से ही लिखा हुआ है कि जब भी हम कोई मृतक कर्म करते हैं, उसके अंदर चावल के आटे का प्रयोग ही किया जाता है. इसी हिसाब से मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में अर्ज़ी की व्यवस्था की गई है
जो श्रद्धालु वहां पर जाते हैं उनके लिए विशेष तौर पर है कि 40 दिन तक प्याज और लहसुन बिल्कुल बंद होता है. शराब मीट मांस का प्रयोग कभी नहीं होता और 41 दिन के बाद में शनिवार मंगलवार और अमावस पूर्णमासी यह दिन ऐसे होते हैं जिन पर प्याज लहसुन का प्रयोग बंद किया जाता है.
बात ये है कि ये प्रसाद नहीं है, यह होता है भोग. इसमें से आप कुछ भी ग्रहण नहीं करते हो, उसमें से आपको अंश मात्र ही मिलता है जो दरखास्त लगाता है, वही वह उस अंश को ग्रहण नहीं कर सकता है, चाहे वह पति पत्नी ही क्यों ना हो, चाहे वह संतान ही क्यों ना हो
प्राचीन काल मे राजा-महाराजा एवं धनाढ्य वर्ग के लोग अपने इष्ट देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह की वस्तुओं से सवामणी कराया करते थे. जैसे- सोने की सवामणी, चांदी की सवामणी, हीरे-जवाहरातों की सवामणी, फल-फूल इत्यादि की सवामणी.
समयानुसार भोग की सवामणी होने लगी. ये सभी कार्य अपने देवी-देवता और इष्ट को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं.
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में सवामणी का नियम क्या है
सवामणी जब भी लगानी हो तो एक दिन पहले या सुबह-सुबह कार्यालय में लिखवा लें. सवामणी, प्रसाद का एक रुप है. जो श्री बालाजी महाराज से यह मन्नत मानता हैं कि – हे !! श्री बालाजी महाराज, मेरी परेशानी/दुःख/संकट दूर हों, मैं आप को सवामणी का प्रसाद चढाउंगा. वह मन्नत पूरी होने पर सवामणी चढ़ाता हैं. सवामणी कार्यालय से ही लें, बाहर से बनी सवामणी का भोग नहीं लगता
सवामणी तीन प्रकार की होती है — 1. खीर पूरी (रु 1300) 2. हलवा पूरी (रु 1500) 3. लड्डू पूरी (रु 2200) इनके साथ सब्जी भी मिलती है. आजकल हलवा-पूरी तथा लडडु-पूरी वाली सवामणी ज्यादा प्रचलित है. सवामणी लगभग 70-80 व्यक्तियों के लिए पर्याप्त होती है, परन्तु अब शायद महंगाई बढनें के कारण कार्यालय वाले भाव बढ़ाते जा रहे हैं तथा मात्रा घटाते जा रहे हैं, फिर भी श्रद्धालु लोग कार्यालय से ही सवामणी लेते है, क्योंकि बाहर से बनी सवामणी का भोग नहीं लगता.
जब आप पहली बार सवामणी अपनी रसीद दिखाकर लाते हैं और वह कम पङ जाती है, तो उस रसीद को फैंकें नहीं, रसीद को दोबारा दिखाकर 10-12 लोगों के लिए फिर से सवामणी ला सकते हैं. सवामणी मिलने का समय दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक होता है. श्री बालाजी महाराज को कार्यालय वाले ही भोग लगवाते हैं, भैरवराज व प्रेतराज सरकार को आपने जाकर भोग लगवाना होता है, इसके बाद सवामणी का प्रसाद बर्तनों में अपने ठहरने के स्थान पर लाएं.
किसी ब्राह्मण द्वारा इसमें से विधिवत पितरों, गायों, कौओं, स्वान तथा कन्या का भोजन निकलवाकर उन्हें खिलायें. इसके बाद उस ब्रहामण को भी भोजन करवाकर कुछ दक्षिणा जरुर दे देवें. (यदि आप की श्रद्धा हो और आप कर भी सकें तो वहां पर घूमनें वाले गरीबों, भिखारियों या सन्तों को भी सवामणी का प्रसाद श्रद्धापूर्वक बिठा कर खिलायें व साथ में थोड़ी-थोड़ी दक्षिणा भी दें) इसके बाद आप सवामणी का प्रसाद ग्रहण करें, प्रसाद को नीचे ना गिराएं तथा इसका सम्मान करें.
नोट : सवामणी का प्रसाद जब आप लिखवाएगें तब कार्यालाय वाले आपसे पूछेंगे कि कितने लोग हो ? आप जितने लोग बोलेंगें वह रसीद पर उतने लोग लिख देंगें, हमारी सलाह यह है कि आप अकेले भी हों तो भी 70-80 लोग लिखवाएं क्योंकि जितनी सवामणी जितने लोगों की कार्यालय वाले लिखेंगें उतनी उनको बनानी पड़ेगी यदि आप सवामणी लेते समय कम भी लेंगें तो आपके हिस्से की बची सवामणी कार्यालय वालों को बाँटनी पड़ेगी यानि आपकी सवामणी कई लोग खांएगें यदि आप कम लोग लिखवाएगें तो वह कम ही बनाएंगे, उनके पास बचेगी नही तो वह बाँटेगें किसे? अतः जब आप पूरे पैसे दे रहे हैं तो सवामणी भी पूरी लें और जब सवामणी लेने जाएं तो 70-80 लोगों के लिए ही लाएं चाहे उसे गरीबों में बाँट दें.
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