बाबा महाकाल की नगरी ( Ujjain ) उज्जैन, शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। इस शहर का प्राचीन नाम अवंतिका, उज्जयनी, अमरावती, सुवर्णगंगा था। ( Ujjain ) उज्जैन को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। उज्जैन विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर 12 साल पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। ये शहर मध्यप्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर से 55 किलोमीटर दूर है।
महाकालेश्वर मंदिर: ( Ujjain ) उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। उज्जैन के प्रथम और शाश्वत शासक भी महाराजाधिराज श्री महाकाल ही हैं, तभी तो उज्जैन को महाकाल की नगरी कहा जाता है। महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परंपरा में प्रसिद्ध दक्षिणमुखी पूजा का महत्व बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिग तीन खंडों महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर और श्री नागचंद्रेश्वर में विभाजित है। महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी है। कहा जाता है कि प्रतिदिन सुबह होने वाली महाकाल की भस्म आरती नहीं देखी तो आपका महाकालेश्वर दर्शन अधूरा है।
श्री बड़ा गणेश मंदिर: श्री महाकालेश्वर मंदिर के पास हरसिद्धि मार्ग पर बडे़ गणेश की भव्य मूर्ति विराजमान है। मंदिर परिसर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान प्रतिमा के साथ-साथ नवग्रह मंदिर और कृष्ण-यशोदा की प्रतिमाएं भी हैं।
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मंगलनाथ मंदिर: पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी भी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहां पूजा-पाठ करवाने आते हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
हरसिद्धि मंदिर: उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिद्धि देवी का मंदिर प्रमुख है। चिन्तामण गणेश मंदिर से थोड़ी दूर और रूद्रसागर तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर में सम्राट विक्रमादित्य द्वारा हरसिद्धि देवी की पूजा की जाती थी। हरसिद्धि देवी वैष्णव संप्रदाय की आराध्य है। शिवपुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद सती की कोहनी यहां गिरी थी।
शिप्रा घाट: उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में शिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। घाटों पर विभिन्न देवी-देवताओं के नए-पुराने मंदिर भी है। शिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान देखते ही बनता है, जब लाखों-करोड़ों श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं।
गोपाल मंदिर: गोपाल मंदिर उज्जैन नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। यहां पर भगवान कृष्ण (गोपाल) विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने 1833 के आसपास कराया था।
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गढ़कालिका देवी: गढ़कालिका देवी का मंदिर कालिका देवी को समर्पित है। महाकवि कालिदास गढ़कालिका देवी के उपासक थे। सातवीं शताब्दी के दौरान महाराजा हर्षवर्धन ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सत्य युग की है। इस मंदिर के पास से ही शिप्रा नदी बहती है।
भर्तृहरि गुफा: ग्यारहवीं शताब्दी के एक मंदिर के अवशेष को भर्तृहरि गुफा की गुफा कहा जाता है जिसका समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा। शिप्रा तट के ऊपरी भाग में भर्तृहरि गुफा है। इन गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर भर्तृहरि रहा करते थे और तपस्या करते थे। उनके द्वारा रचित श्रृगांरशतक, वैराग्यशतक और नीतिशतक बहुत प्रसिद्ध हैं। इनका संस्कृत साहित्य में बहुत ऊंचा स्थान है।
काल भैरव: काल भैरव मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है जो अत्यंत प्राचीन और चमत्कारिक है। यह मंदिर शिव जी के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है। आज भी मंदिर के अंदर काल भैरव की एक विशाल प्रतिमा है। प्राचीन काल में इस मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने कराया था। पुराणों में वर्णित अष्ट भैरव में काल भैरव का महत्वपूर्ण स्थान है।
सिंहस्थ (कुंभ मेला): सिंहस्थ उज्जैन का महान स्नान पर्व है। बारह वर्षो के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। पवित्र शिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियां चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होती हैं और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में संपन्न होती है।
How to reach Ujjain: उज्जैन सड़क, हवाई और रेल सेवा से जुड़ा है। उज्जैन के सबसे नजदीक हवाई अड्डा इंदौर है। इंदौर, भोपाल, रतलाम, ग्वालियर आदि से बस और ट्रेन की सुविधा है।
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