Char Dham Yatra – क्या है Gangotri, Yamunotri, Kedarnath, Badrinath की पौराणिक कथा!
उत्तराखंड के चार धाम ( Char Dham Yatra ) या फिर 4 धाम का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। ये उत्तराखंड की 4 सबसे पवित्र जगहों से बना है, इनमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री ( Badrinath Dham, Kedarnath Dham, Gangotri Dham and Yamunotri Dham ) शामिल है। ये चारों जगह ( Char Dham Yatra ) एक टूरिस्ट प्लेस के रूप में सामने कब आई ये कोई नहीं जानता है। इन सभी जगहों की अपनी एक हिस्ट्री है, जो इन्हें पवित्र 4 धाम ( Char Dham Yatra ) में बदलती है। 1950 तक उत्तराखंड के चार सबसे पवित्र स्थलों पर जाने का मतलब था पैदल यात्रा करना। साधुओं के अलावा जो लोग यात्रा करने में सक्षम हो पाते थे वहीं छोटे चार धाम के सबसे संभावित और नियमित तीर्थयात्री थे। साल 1962 के भारत और चीन युद्ध के बाद,भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए। अब पवित्र तीर्थ के पास के पॉइंट्स तक तक सड़कें जा रही है। इससे बाकी लोगों को भी चार धाम की यात्रा करने का मौका मिला।
गंगोत्री धाम – Gangotri Dham
शिवलिंग चोटी के आधार स्थल पर गंगा पृथ्वी पर उतरी जहां से उसने 2,480 किलोमीटर गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा शुरू की। इस विशाल नदी के उद्गम स्थल पर इस नदी का नाम भागीरथी है जो महान तपस्वी भागीरथ के नाम पर है जिन के आग्रह पर गंगा स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आयी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम के बाद बनी इस नदी का नाम गंगा हो जाता है।
प्राचीन काल में गंगोत्री धाम में कोई मंदिर नहीं था। यहां पर भागीरथी शिला के निकट एक मंच था, जहां साल के तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी और इन मूर्तियों को गांवों के विभिन्न मंदिरों जैसे श्याम प्रयाग, गंगा प्रयाग, धराली और मुखबा आदि गावों से लाया जाता था। बाद में फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था।लेकिन 18वीं सदी में गढ़वाल के गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मंदिर का निर्माण करवाया। ये भी माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में इस मंदिर की मरम्मत करवाई थी।
गंगोत्री की पौराणिक कथा – Story of Gangotri Dham
कहा जाता है की, पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ के कठिन तप से हुआ, जो सूर्यवंशी राजा और भगवान राम के पूर्वज थे। मंदिर के बगल में एक भागीरथ शिला (एक पत्थर का टुकड़ा) है जहां पर भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की थी। कहा जाता है कि जब राजा सगर ने अपना 100वां अश्वमेघ यज्ञ किया तो इन्द्रदेव ने अपना राज्य छिन जाने के डर से उस घोड़े को ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने घोड़े की खोज करते हुए तप में लीन कपिल मुनि को परेशान और अपमानित किया। कपिल मुनि के क्रोधित होने पर उन्होंने अपने आग्नेय दृष्टि से तत्क्षण सभी को जलाकर भस्म कर दिया। क्षमा याचना किये जाने पर मुनि ने बताया कि राजा सगर के पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी जब गंगाजल उनका स्पर्श करेगा।
उत्तराखंड के चार धाम या फिर 4 धाम का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। ये उत्तराखंड की 4 सबसे पवित्र जगहों से बना है, इनमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल है। ये चारों जगह एक टूरिस्ट प्लेस के रूप में सामने कब आई ये कोई नहीं जानता है। इन सभी जगहों की अपनी एक हिस्ट्री है, जो इन्हें पवित्र 4 धाम में बदलती है। 1950 तक उत्तराखंड के चार सबसे पवित्र स्थलों पर जाने का मतलब था पैदल यात्रा करना। साधुओं के अलावा जो लोग यात्रा करने में सक्षम हो पाते थे वहीं छोटे चार धाम के सबसे संभावित और नियमित तीर्थयात्री थे। साल 1962 के भारत और चीन युद्ध के बाद,भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए। अब पवित्र तीर्थ के पास के पॉइंट्स तक तक सड़कें जा रही है। इससे बाकी लोगों को भी चार धाम की यात्रा करने का मौका मिला।
सगर के कई वंशजों द्वारा आराधना करने पर भी गंगा ने अवतरित होना अस्वीकार कर दिया। अंत में राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये 5500 सालों तक घोर तप किया। उनकी भक्ति से खुश होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आकर उनके शापित पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देना स्वीकार कर लिया। देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के वेग से भारी विनाश की संभावना थी और इसलिये भगवान शिव को राजी किया गया कि वो गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें। भागीरथ ने तब गंगा को उस जगह जाने का रास्ता बताया जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी थी और इस प्रकार उनकी आत्मा को मुक्ति मिली। माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।
यमुनोत्री धाम – Yamunotri Dham
यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद है, जो कि समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार ये असित मुनी का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। जो भूकम्प से विध्वंस हो चुका था, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया।
पौराणिक कथा – Story of Yamunotri
यमुनोत्री के बारे मे वेदों, उपनिषदों और विभिन्न पौराणिक किताबों में विस्तार से वर्णन किया गया है। पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई। इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है। कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं। इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना और यमराज पैदा हुए यमुना नदी के रूप मे पृथ्वी मे बहने लगीं और यम को मृत्यु लोक मिला। ऐसा कहा जाता है की जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वो आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना में स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े, इसलिए इस दिन यमुना के किनारे पर पूजा की जाती है।
केदारनाथ धाम- Kedarnath Dham
चार धामों में सर्वाधिक ऊचांई पर स्थित धाम केदारनाथ है। केदारनाथ शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भारत के 4 धाम (पूर्व में– जगन्नाथ, पश्चिम में- द्वारिका, उत्तर में- बद्रीनाथ, दक्षिण में- रामेश्वरम) की स्थापना करने के बाद शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और इस मंदिर के पीछे शंकराचार्य की समाधि है। ये मंदिर कत्युरी निर्माण शैली का है। शीतकाल मे यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है, इस लिए शीत काल में केदारनाथ की डोली को ओंमकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में रखा जाता है। यहां के पुजारी दक्षिण भारत के रावल होते है।
पौराणिक कथा – Story of Kedarnath Dham
हिमालय के केदार की चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। ये स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक पहाड़ की चोटी पर स्थित है।
बद्रीनाथ धाम – Badrinath Dham
बदरीनाथ मंदिर, जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, ये मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। ये चार धाम और पंच-बदरी में भी है। ये समुद्रतल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुरु शंकराचार्य ने इसका निर्माण कराया था। महाभारत और पुराणों में इसे बद्रीवन, विशाला बद्रीकात्रम के नाम से जाना जाता था। ये मंदिर नर और नारायण नामक दो पर्वतों के मध्य में स्थित है।
पौराणिक मान्यता – Story of Badrinath Dham
जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो वो 12 धाराओं में बंट गई। जिनमे से एक धारा इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से पहचानी गई जिसे वर्तमान में अलकनंदा नदी के रूप में जाना जाता है। इस नदी के तट पर ही बद्रीनाथ धाम स्थित है, जो कि भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। ये पंचबद्री में से एक है। माना जाता है कि बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण गढ़वाल के राजा द्वारा कराया गया था, जिसका पुनरूद्धार 8वीं शदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था।