नई दिल्ली. अन्नपूर्णाश्वरी मंदिर (Annapoorneshwari Temple) एक हिंदू मंदिर है जो कर्नाटक के पश्चिमी घाटों के घने जंगलों और घाटियों में चिकमंगलूर से 100 किलोमीटर दूर, भारत के होरानडू में स्थित अन्नपूर्णाश्वरी (अन्नपूर्णा) को समर्पित है। यह भद्रा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर को आदिशक्तिनाथम्का श्री अन्नपूर्णाश्वरी अम्मनवारा मंदिर या श्रीक्षेत्र होरानडू मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि 8 वीं शताब्दी में ऋषि अगस्त्य ने यहां देवी का प्रतीक स्थापित किया था।
ऐसा कहा जाता है की इसAnnapurnashwari Temple मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसकी जानकरी इतिहास में कही पर भी नहीं है। लेकिन भक्तों का ऐसा मानना है की यहां जब इस मंदिर का निर्माण किया गया उस वक्त यह मंदिर बहुत ही छोटा था। सभी भक्तों का ऐसा विश्वास भी है की इस मंदिर का निर्माण खुद अगस्त्य ऋषि ने किया था।
शुरुआत में यह मंदिर काफी छोटा था और लेकिन कुछ समय बाद पाचवें धर्मकरतारु श्री डी बी वेंकटसुब्बा जोइस ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करके बहुत बड़ा किया था। लेकिन एक बार फिर से साल 1973 में इस मंदिर की पुनर्प्रतिस्थापना की गयी। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री अभिनव विद्यातिर्थ महास्वामीजी ने इस मंदिर में महाकुम्भ अभिषेक किया था। श्रृंगेरी के श्रृंगेरी शारदा पीठ के वे महास्वामीजी थे।
यहां के छटे धर्मकर्तारू ने यहापर नवग्रह मंदिर की स्थापना की थी। अन्नपुर्नेश्वरी मंदिर के रसोईघर में उन्होंने भाप पर खाना बनाने की पूरी व्यवस्था की थी, अन्नछ्त्र यहां के रसोईघर का नाम था और यहापर भक्तों के लिए भी रहने की पूरी व्यवस्था की गयी थी।
कहा जाता है की एक बार देवी का भगवान शिव के साथ भोजन के महत्व को लेकर झगड़ा हो गया था। ऐसा कहा जाता है की एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती पासे खेल रहे थे। लेकिन खेलते-खेलते भगवान शिव सब कुछ हार गए थे।
यह सब कुछ होने के बाद भगवान विष्णु ने भगवान शिव को एक बार फिर से खेलन को कहा था। भगवान विष्णु के कहने पर शिव भगवान फिर से खेले और वे खेल में जो कुछ भी हार गए थे वो सब कुछ जीत गए थे। ये सब देखकर देवी पार्वती नाराज हो गयी और उन्हें गुस्सा भी आया जिसकी वजह से देवी पार्वती और भगवान शिव के बिच में झगड़ा शुरू हो गया। उनके झगड़े को रोकने के लिए भगवान विष्णु वहा पर आये और उन्होंने दोनों को समझाया उन्होंने कहा की वह सब कुछ मोह माया का खेल था।
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इसके बाद में भगवान शिव ने कहा की दुनिया सब कुछ अस्थायी है जैसे की मोह माया भी अस्थायी होती है। इस पर उन्होंने एक निष्कर्ष निकाला की भोजन भी उसी तरह अस्थायी है। इस बातपर देवी ने असहमति जताई और देवी वहा से गायब हो गयी क्योंकि उन्हें यह साबित करना था की भोजन महत्वपूर्ण है और यह कोई माया नहीं। इसका परिणाम यह हुआ की प्रकृति पूरी तरह से थम गयी, ऋतू भी स्थिर हो गये और नए पेड़ पौधे आना पूरी तरह से बंद हो गए थे।
धीरे धीरे जमीन बंजर हो गयी और अकाल पड़ गया। इसकी वजह से मनुष्य, जंगली जानवर और राक्षस भी प्रभावित हुए थे और उनका जीवन पूरी तरह से कठिनाईयों से भर गया था जिसके चलते सभी भगवान की प्रार्थना करने लगे। यह सब देखकर भगवान शिव को अहसास हुआ की जीवन में भोजन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है और सभी जिव जंतु का जीवन इसपर ही निर्भर है।
ऐसे ख़राब हालात देखकर देवी पार्वती को बहुत दुख हुआ उन्हें सभी की दया आयी और वे काशी के लोगों को खाना देने के लिए चली गयी। उसके बाद में भगवान शिव भी काशी में चले गए और उन्होंने भी अपने कटोरे में खाना पाने के लिए देवी से भिक्षा मांगी, वहापर भगवान शिव को देखकर देवी पार्वती ने उन्हें अपने करछुल में भोजन दिया।
यहां पर जो भी व्यक्ति अन्नदान करता उसे बहुत शुद्ध और पवित्र कार्य माना जाता है और ऐसा करनेवाले पर देवी अन्नापुर्नेश्वरी की कृपादृष्टि सदा बनी रहती है। भक्तों का ऐसा मानना है की इस तरह से अन्नदान करने से जीवन में कभी भी भूखा नहीं रहना पड़ता। यहां पर भक्त अपने बच्चों का नामकरण करने के लिए भी आते है साथ ही यहापर अक्षरअभ्यासम (Aksharaabhyaasam) का धार्मिक संस्कार भी किया जाता है।
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किसी भी धर्म और जाती के व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के तीन समय का मुफ्त में खाना दिया जाता है। आनेवाले भक्तों के लिए सुबह में नाश्ता, दोहपर और रात का खाना दिया जाता है। शाम के समय में यहापर भक्तों के लिए चाय और काफी की व्यवस्था भी की गयी है।
यहां पर देवी अन्नापुर्नेश्वरी के दर्शन करने के लिए कई सारी सीढ़िया चढ़कर जाना पड़ता है। इस मंदिर के गोपुरम पर कई सारे हिन्दू धर्म के देवी और देवताओ की मुर्तिया दिखाई देती है। इस मंदिर का सबसे अहम और बड़ा भवन मंदिर के बाये हिस्से में है।
इस मंदिर के छतोपर बहुत ही सुन्दर और आकर्षक और नक्काशी का काम दिखाई देता है। इस मंदिर के चारो और आदि शेष दिखाई देता है साथ ही इस मंदिर के गर्भगृह के चारो और आदि शेष दिखाई देता है। कूर्म अष्टगज और अन्य मिलके पद्म पीठ बनता है।
यह मंदिर सुबह 6:30 बजे से रात में 9:30 तक खुला रहता है
होरानादु अन्नापुर्नेश्वरी मंदिर के त्यौहार – Horanadu Annapoorneshwari Temple Festival
नवरात्रि – सितम्बर और अक्टूबर के महीने में नवरात्री का त्यaहार बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार कुल नौ दिनों तक चलता है और इस दौरान दुर्गा देवी के नौ अवतारों की पूजा की जाती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुस्मंदा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री यह सब दुर्गा देवी के अवतार है। विजयादशमी के दसवे दिन चंडिका देवी के लिए होम का भी आयोजन किया जाता है।
अक्षय थादिगे- अप्रैल और मई महीने के दौरान अक्षय थादिगे का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। इस दिन के अवसर पर ही अन्नापुर्नेश्वरी देवी ने यह नया अवतार लिया था। इसी दिन से ठंडी के दिन ख़त्म हो जाते हैं और गर्मी के दिन शुरू हो जाते है। इसी दिन से त्रेतायुग की शुरुआत होती है ऐसा माना जाता है। भक्तों का ऐसा मानना है की इस दिन किसी को भी कोई बीमारी नहीं होती और इस दिन में कोई भी अशुभ काम नहीं होता।
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रथोत्सव- यह त्योहार फरवरी और मार्च महीने के दौरान मनाया जाता है। यह त्योहार कुल 5 दिनों तक चलता है। पहले दिन गणपति पूजा, गणपति होम और महा रंग पूजा की जाती है। दुसरे दिन ध्वजारोहण और पुष्पकरोहन किया जाता है और तीसरे दिन ब्रह्मोत्सव और रथोत्सव मनाया जाता है।
इन सब त्योहारों के अलावा यहापर दीपावली, शंकर जयंती और हावी जैसे त्यौहार भी मनाये जाते हैं।
देवी पार्वती का यह मंदिर बहुत भव्य और आकर्षक है। इस मंदिर में चारों और आदि शेष होने की वजह से मंदिर काफी अद्भुत दीखता है। यह एक ऐसा मंदिर है जहापर साल भर सभी महत्वपूर्ण त्यौहार मनाये जाते है। यहापर नवरात्रि, रथोत्सव और अक्षय तृतीय जैसे बड़े त्यौहार मनाये जाते है।इन त्योहारों के समय में मंदिर में भक्त बहुत दूर दूर से देवी के दर्शन करने के लिए आते है।
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