Love Story: मोहब्बत Love Story में जुदाई का कोई मौसम नहीं होता, सच्ची मोहब्बत करने वाले बिछड़ कर भी हमेशा साथ रहते हैं. यही सबसे बड़ी वजह है कि हम पुराने समय के ऐसे ही मोहब्बत के किस्सों को पढ़कर और सुनते आ रहे हैं। ऐसे किस्सों को जानने के बाद हमें लगता है कि प्यार करने वालों की मंजिलें कभी आसान नहीं थीं। ऐसी ही मोहब्बत की एक कहानी बताएंगे जिसे पढ़कर आप कहेंगें वाह क्या कहानी है। इसके साथ ही हम आपको बताएंगे एक ऐसी दरगाह के बारे में जहां होती है प्रेमी जोड़ों की हर मन्नत पूरी।
पूरे भारत में Heer-Ranjha हीर-रांझा और सोनी-महिवाल पंजाब के कई लोकप्रिय प्रेम कहानी में से एक है जिसका अंत बहुत दुखद रूप से हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि यह लोग अलस जिंदगी में नहीं थे बस कल्पना में थे। लेकिन कुछ इतिहासकार का मनाना है कि यह असल में थे। वारिस शाह (पंजाबी: ) एक पंजाबी कवि थे जो मुख्य रूप से अपने “हीर रांझा” नामक काव्य-कथा के लिये मशहूर हैं। कहा जाता है कि उन्होंने हीर को “वारिस की हीर” बना कर अमर कर दिया।
हीर-रांझा की प्रेम कहानी की कुछ यूं हुई शुरुआत
हीर बहुत सख्त दिमाग वाली लड़की थी। एक रात रांझा चुपके से हीर की नाव में सो गया। यह देख हीर आगबबूला हो गई, लेकिन जैसे ही उसने जवां मर्द रांझे को देखा, वह अपना गुस्सा भूल गई और रांझा को देखती ही रह गई। तब रांझा ने उसे अपने सपनों की बात कही। रांझे पर फिदा हीर उसे अपने घर ले गई और अपने यहां नौकरी पर रखवा दिया। हीर-रांझा की मुलाकातें मोहब्बत में बदल गई, लेकिन हीर के चाचा को इसकी भनक लग गई और हीर की शादी दूसरे गांव कर दी गई। उसके बाद रांझा फकीर बनकर गांव-गांव घूमने लगा। जब वह हीर के गांव में पहुंचा तो उसकी आवाज सुनकर हीर बाहर आई और उसे भिक्षा देने लगी। दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। रांझा रोजाना फकीर बनकर आता और हीर उसे भिक्षा देने। दोनों रोजाना मिलने लगे।
यह हीर की भाभी ने देख लिया। उसने हीर को टोका तो रांझा गांव के बाहर चला गया। सारे लोग उसे फकीर मानकर पूजने लगे। उसकी जुदाई में हीर बीमार हो गई। जब वैद्य हकीमों से उसका इलाज न हुआ तो हीर के ससुर ने रांझे के पास जाकर उसकी मदद मांगी। रांझा हीर के घर चला आया। उसने हीर के सिर पर हाथ रखा और हीर की चेतना लौट आई। जब लोगों को पता चला कि वह फकीर रांझा है तो उन्होंने रांझा को पीटकर गांव से बाहर धकेल दिया। फिर राजा ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया। रांझा ने जब राजा को हकीकत बताई तो उसने हीर के पिता को आदेश दिया कि वह हीर की शादी रांझा से कर दे। राजा की आज्ञा के डर से उसके पिता ने मंजूरी तो दे दी, लेकिन हीर को जहर दे दिया। जब रांझा वापस लौटा और उसे हीर के मरने की खबर मिली तो उसने भी वहीं दम तोड़ दिया। हीर मर गई, रांझा मर गया, लेकिन उनकी मोहब्बत आज भी जिंदा है।
कब हुआ हीर और रांझा का जन्म
हीर अपने समय की बेहद खूबसूरत लड़की थी. हीर का जन्म पंजाब प्रांत के झांग गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान देश के बड़े शहरों में शुमार किया जाता है। हीर का ताल्लुक सियाल कबीले से था. इस कबीले के लोग काफी खानदानी जमींदार और गांव में खूब रसूख वाले थे।
इधर रांझा का जन्म पंजाब में बहने वाली चेनाब दरिया के पास गांव तख़्त हज़ारा में हुआ था. रांझा जाट कबीले से ताल्लुक रखता था।
हीर रांझा का असली नाम
हीर का असली नाम इज़्ज़त बीबी था, वह झांग में रहने वाले चुचक सियाल और मल्की की बहादुर बेटी थीं। वहीं, रांझा का असली नाम मियां उमर था, वह पास के गांव तख्त हज़ारा में रहने वाले भाइयों में से सबसे छोटे थे। जब भाइयों से जमीन को लेकर लड़ाई हुई तो रझां ने घर छोड़ दिया।
हीर-रांझा का यह मकबरा काफी अलग
हीर-रांझा का यह मकबरा काफी अलग है, यहां दूर-दूर से लोग इसकी शिरकत करने आते हैं। इस मकबरे पर लिखा है, “दरबार आशिक-ए-सादिक माई हीर वा मियां रांझा’। इसका मतलब प्रेमी माई हीर और मियां रांझा का दरबार उनके अमर प्रेम की प्रशंसा करता है। यहां, इन दो प्रेमियों के शुद्ध और अमर प्रेम के सम्मान में इन्हें एक ही कब्र में दफनाया गया है।
आज इतने सालों बाद नौजवान प्रेमियों के लिए यह जगह मक्का से कम नहीं है। जो प्रेमी अपनी पसंद से शादी करना चाहते हैं वह इनके मकबरे पर जरूर आते हैं। यहां आकर वह दुआ करते हैं और दरगाह की दरवाजे पर धागा बांधते हैं, वहीं लड़कियां रंग बिरंगी चुड़ियां चढ़ाती हैं। यहां तक कि जिन लोगों के दिल टूटे हैं वह भी यहां आकर सुकून पाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि उन्होने यहां पवित्र उपस्थिति का अनुभव किया है। अगर आप पाकिस्तान में रहते हैं या वहां जा सकते हैं तो हीर और रांझा के दरगाह पर जरूर जाएं।
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