मुरैना यात्रा के मेरे इस ब्लॉग ( Morena Tour Blog ) में आप जानेंगे कि किस तरह और किन अनुभवों से गुज़रते हुए मैं मितावली गांव ( Mitawali Village, Morena ) पहुंचा था. मितावली, मुरैना का वही गांव ( Mitawali Village, Morena ) है जहां 13वीं सदी का 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali Morena ) है. हालांकि इस आर्टिकल में ही, हमने मितावली के 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali Morena ) के वीडियो को भी शामिल किया है. आप हमारे यूट्यूब चैनल का वह वीडियो यहां देख पाएंगे लेकिन ब्लॉग में कुछ ऐसी बातें और अनुभव है जो वीडियो में शामिल नहीं है. चलिए मितावली यात्रा के वृत्तांत की शुरुआत करते हैं.
कुतवार में कुंती मंदिर में दर्शन कर चुका था. अब बारी थी आगे बढ़ने की. ऑटो में बैठकर मैं चल दिया मितावली में 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali ) की ओर. कुछ ही आगे एक गांव में हरसिद्धी माता का मंदिर ( Harsiddhi Mata Mandir ) है. ये मंदिर भी महाभारत काल का ही है. इस मंदिर में मैंने ज्यादा वक्त नहीं लगाया. दर्शन करके आगे बढ़ चला.
हरसिद्धी माता के मंदिर ( Harsiddhi Mata Mandir ) में दर्शन के बाद जब मैं आगे बढ़ा तो खराब सड़क मिली. बेहद खराब. यहां काम चलने की वजह से भी दिक्कत हो रही थी. हां, ये सड़क बन जाने के बाद तो अच्छी व्यवस्था कर देगी. लोग भी आराम से पहुंच पाएंगे. लेकिन अभी बहुत दिक्कत थी.
वाहन बढ़ा जा रहा था और मैं जिस ख्वाहिश को लेकर मुरैना आया था, वह पूरी होने जा रही थी. 64 योगिनी मंदिर के बारे में बहुत सुना था, पढ़ा था. अब जिस जगह के बारे में मन में जिज्ञासा भरी हो वहां पहुंचने से पहले जिज्ञासा का चरम पर पहुंचना भी लाजिमी थी.
राजवीर भाई ने आधे घंटे बाद मुझे दूर से मितावली की पहाड़ी पर बने 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) को दिखाया. गजब का दृश्य था. सोचिए दोस्तों, जिस भी शासक ने इस मंदिर को बनवाया, क्या कल्पना रही होगी उसके मन में. खेतों के बीच मैं हवाओं का अहसास लेकर आगे बढ़ा जा रहा था.
अब मितावली गांव का प्रवेश द्वार और कुछ दूर आगे एक बोर्ड भी आ चुका था. आगे चलकर ऑटो रुका और दाहिनी ओर 64 योगिनी मंदिर का प्रवेश द्वार था. यहां राजवीर भाई ने मुझसे पूछा- क्या मैं भी चलूं? मैंने हां कहा तो वह भी आगे साथ चल दिए.
मितावली के इस 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali ) पहुंचकर तो लगा था कि बस आ ही गया लेकिन थोड़ा बढ़ने के बाद जब सीढ़ियां मिलनी शुरू हुईं तो थक गया. चौड़ी चौड़ी, बड़ी बड़ी सीढ़ियां थीं. इन्हें पर्वत को काटकर बनाया गया था. इनपर चढ़ते चढ़ते सांस फ़ूल गई. आखिरकार शिखर पर पहुंच चुका था. शिखर यानि की अब और चढ़ाई नहीं करनी थी.
64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) मेरे ठीक सामने था. यहां आकर जब सूचना वाली पट्टिका पर ध्यान गया तब पहली बार जाना कि इसे एकत्तरसो महादेव मंदिर ( Ekattarso Mahadev Mandir ) भी कहते हैं. बाहर इसके निर्माण की संरचना देखकर ककनमठ मंदिर ( Kakanmath Mandir ) भी याद गया. ककनमठ मंदिर ( Kakanmath Mandir Sihoniya ) की तरह ही इसके पत्थरों को भी एक के ऊपर एक रखकर इसे तैयार किया गया था.
बहुत दिन से सुनता आ रहा था कि अंग्रेज़ों ने भारत का संसद भवन जिस मंदिर से प्रेरित होकर बनवाया था, वह मुरैना का 64 योगिनी मंदिर ही है. हालांकि, कहीं इसका लिखित में ब्यौरा नहीं मिलता है लेकिन यहां आकर आप उसे साक्षात महसूस कर पाते हैं. आपके ह्रदय से बरबस ही निकलता है, वाह… क्या कमाल की कारीगरी है!
बाहर की गोलाई देखते देखते मैं पीछे की ओर चला गया था. फिर वापस लौटा. आगे दरवाज़े पर बैठकर राजवीर भाई से तस्वीरें खिंचवाई. मैंने कहा- आइए आपकी भी खींच देता हूं. वह बोले- मैं तो आता रहता हूं. मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) के अंदर कदम रखते ही मुझे ऐसा अहसास हुआ कि वहां अब भी कुछ ऐसा था जो रहस्यमयी था. एक दबी हुई खामोशी का अहसास मैं कर पा रहा था.
वैसे तो अकेले में आने में डरने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन फिर भी अंदर से ऐसा लगा कि अच्छा किया जो राजवीर भाई को साथ चलने के लिए कह दिया. दोस्तों, 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) का जब निर्माण हुआ था, तब यहां तंत्र साधना हुआ करती थी. ऐसा बताया जाता है कि मुर्दा शरीर में प्राण डालकर उससे क्रियाएं करवाई जाती थीं.
64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) में आज भी मौजूद गुप्प सी खामोशी ने मुझे कई बार डराया. मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं तंत्र साधना वाले कमरे में जाकर खड़ा हो सकूं. हालांकि गर्भगृह में मैं गया और वहां जाकर शिवलिंग को प्रणाम भी किया.
इस मंदिर के निर्माण में कारीगरी का दिलचस्प नमूना आज भी दिखाई देता है. छतों से पानी निकलने के लिए समुचित रास्ते बनाए गए थे. इस 64 योगिनी मंदिर में गर्भगृह ( 64 Yogini Mandir Garbhagriha ) एकदम बीचोंबीच है. दरवाज़े से प्रवेश करते ही सामने शिवलिंग दिखाई देता है. है न कमाल की संरचना?
64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir ) में मैं करीब आधे घंटे रुका. यहां से बाहर आकर सामने एक और छोटा सा मंदिर दिखाई दिया. यह कुछ ऊंचाई पर था. सो यहां तक गया और पाया कि वहां मूर्ति तो कोई नहीं थी लेकिन फिर भी वहां पूजा की गई थी. यहां से मुरैना का नज़ारा बेहद खूबसूरत दिखाई दे रहा था. हरियाली ने तो मुझे दिवाना बना ही दिया था और ऊपर से रुक रुककर होती बारिश इसमें और चार चांद लगा रही थी.
मितावली के 64 योगिनी मंदिर ( 64 Yogini Mandir Mitawali) की यात्रा के बाद अब बारी थी बटेश्वर के मंदिर जाने की. बटेश्वर के मंदिरों के समूह की नायाब कहानी आप हमारे यूट्यूब चैनल पर वीडियो में देख सकते हैं. मिलते हैं अगले ब्लॉग में, अपना ध्यान रखिएगा. ब्लॉग पढ़ने के लिए शुक्रिया 🙂
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