Chhath Puja : छठ पूजा सूर्य देव को समर्पित चार दिवसीय त्योहार है, जिन्हें सूर्य देव के नाम से भी जाना जाता है. यह मुख्य रूप से बिहार और उससे सटे नेपाल में महिलाओं द्वारा अपने परिवार की भलाई के लिए मनाया जाता है. इस त्योहार के पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है. दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है, जो आत्मा और मन की स्वच्छता पर जोर देता है.
खरना के दिन अरवा चावल और गुड़ से महाप्रसाद बनाया जाता है. यह प्रसाद चूल्हे पर बनाया जाता है, जहां आम की लकड़ी को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. –*सवाल यह उठता है कि चूल्हे को गर्म करने के लिए ईंधन के तौर पर आम की लकड़ी का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है. देवघर के मशहूर ज्योतिषी पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 को इस लकड़ी के महत्व के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि प्रचलित मान्यता के अनुसार आम की लकड़ी सबसे शुद्ध और पवित्र मानी जाती है. इसलिए इसी लकड़ी से खरना का प्रसाद बनाया जाता है. छठ पूजा पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. यह त्यौहार झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.
छठ पूजा 2023: सूर्योदय, सूर्यास्त का समय || Chhath Puja 2023: Sunrise, sunset timings
शुक्रवार, 17 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:50 बजे
सोमवार, 20 नवंबर को सूर्योदय का समय: प्रातः 06:20 बजे
द्रिक पंचांग के अनुसार, खरना के दिन, भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना पानी पिए व्रत रखते हैं. सूर्यास्त के ठीक बाद सूर्य देव को भोग लगाने के बाद व्रत खोला जाता है. दूसरे दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का तीसरा दिन शुरू होता है. छठ पूजा के तीसरे या मुख्य दिन फिर से बिना पानी के पूरे दिन का उपवास रखा जाता है. डूबते सूर्य को अर्घ्य देना तीसरे दिन का मुख्य अनुष्ठान है. यह वर्ष का एकमात्र समय है जब डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. तीसरे दिन का उपवास पूरी रात चलता है. पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है.
छठ के चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. सूर्य को अर्घ्य देने के बाद 36 घंटे का व्रत खोला जाता है.छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी और सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है. केला, डाभ निम्बू, नारियल, गन्ना, सुथनी और सुपारी छठ मैया को चढ़ाए जाने वाले फल हैं.
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