Keeda Jadi Yarsagumba : क्या है कीड़ा जड़ी और यह किस काम आती है? आइए जानते हैं इस हिमलायन वियाग्रा के बारे में सबकुछ...
Keeda Jadi Yarsagumba: मई-जून के महीने में उत्तराखंड में पहाड़ के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ पिघलने के साथ ही घास के मैदानों में एक नायाब जड़ी (Keeda Jadi Yarsagumba) की तलाश शुरू हो जाती है. इस पहाड़ी राज्य में पिथौरागढ़, चमोली, बागेश्वर, मुंसियारी व कुमाऊं की अन्य जगहों पर ग्रामीण लोग, जिसमें बच्चे भी होते हैं, इस बेशकीमती जड़ी की खोज शुरू कर देते हैं.
इनकी नजरें घास में छिपे एक पीले-भूरे रंग की जड़ी पर होती हैं. दिन खत्म होने तक, कुछ खुशकिस्मत लोगों को 15 जड़ी मिल जाती है जबकि कुछ के हाथ खाली रह जाते हैं. नाकाम लोगों की नजरें अब अगले दिन पर रहती हैं. अगस्त के अंत तक इस जड़ी की तलाश पूरी हो चुकी होती है और फिर ग्रामीण दलालों के पास इसे लेकर पहुंचते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी एक किलो की मात्रा 15 से 18 लाख के बीच बिकती है.
इस कीड़ा जड़ी (Keeda Jadi Yarsagumba) को ग्रामीणों से खरीदने वाले दलाल पहाड़ की दुर्गम यात्राओं से होकर इसे चीन और जापान की सीमा के भीतर पहुंचाते हैं, जहां ये और भी ऊंचे दामों पर बिकती है.
नायाब जड़ी: इस जड़ी को लेकर हाहाकार तब मचना शुरू हुआ जब 90 के दशक में स्टुअटगार्ड वर्ल्ड चैंपियनशिप में 1500 मीटर, 3 हजार मीटर और 10 हजार मीटर कैटिगरी में चीन की महिला धावकों ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए शानदार प्रदर्शन किया. चीनी धावकों के ट्रेनर ने बाद में मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने ऐथलीट्स को यारशागुंबा (Keeda Jadi Yarsagumba) का सेवन नियमित रूप से कराया है.
बस इस बयान के बाद, जो फंगस कुछ साल पहले 4 लाख रुपये प्रति किलो के दाम पर बिकता था, उसकी कीमत दोगुने से भी ज्यादा हो गई. इस वक्त तो यह 15 से 18 लाख रुपये प्रति किलो के दाम पर बिकता है.
हिमालय चिकित्सीय पौधों का स्थान हैं, यहां दुर्लभ पौधों की ऐसी प्रजातियां मौजूद हैं जो और कहीं नहीं पाई जाती हैं. इन पौधों की दुर्लभता और उपचार करने की शक्ति की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में ये बेहद ऊंची कीमत में बिकते हैं.
ऐसा ही एक समृद्ध जैविक संसाधन कॉर्डीसेप्स सीनेंसिस है, जिसे स्थानीय लोग कीड़ा जड़ी के नाम से जानते हैं. यह कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज कर सकता है, साथ ही ये नपुंसकता को भी मिटा देता है.
इसी वजह से इसे हिमालयी वियाग्रा भी कहते हैं. इसे कैटरपिलर फंगस (अंग्रेजी) और यारशागुंबा (तिब्बती) के नाम से भी जाना जाता है.
आयुर्वेद में यारशागुंबा को जड़ी बूटी माना गया है. यह एक मृत कीड़ा होता है. हिमालयी वियाग्रा यारशागुंबा किसी तरह का बुरा प्रभाव यानी साइडिफेक्ट नहीं डालती है. वहीं, ऐसा देखा गया है कि अंग्रेजी वियाग्रा से दिल कमजोर हो जाता है.
यारशागुंबा एक कीड़ा है. यह समुद्र तल से 3800 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है. इसकी मौजूदगी अभी तक हिमालय की पहाड़ियों में ही पाई गई है.
इसकी थोड़ी मात्रा भारत और तिब्बत में पाई जाती है जबकि नेपाल में यह प्रचुर मात्रा में है.
यह कीड़ा भूरे रंग का होता है और जड़ी के रूप में इसकी कुल लंबाई लगभग 2 इंच की रहती है. यह कीड़ा हिमालयी क्षेत्र में पनपने वाले कुछ विशेष किस्म के पौधों पर ही पैदा होते हैं.
इस कीड़े की जीवनअवधि लगभग 6 माह की ही होती है. सर्दियों में पौधों के रस के रिसाव के साथ ही ये पैदा हो जाते हैं और मई-जून में बर्फ पिघलने के साथ ही अपना जीवन जक्र पूरा कर लेते हैं. मरकर ये कीड़े घास और पौधों में आकर बिखरते हैं.
सामान्य तौर पर इसे आप एक जंगली मशरूम समझ सकते हैं. ये एक खास कीड़े (वैज्ञानिक नाम- कार्डिसेप्स साइनेसिस) की इल्लियों अर्थात कैटरपिलर्स को मारकर उसपर उगता है.
जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये पनपता है उसका नाम हैपिलस फैब्रिकस है. क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी रूप में होता है इसीलिए स्थानीय लोग इसे कीड़ा जड़ी कहते हैं. चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा नाम से ही जाना जाता है.
2009 में छपी बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देहरादून के भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) की टीम ने इसपर रिसर्च की है. एफआरआई में कार्यरत तत्कालीन फॉरेस्ट पैथोलजी विभाग के प्रमुख ने बीबीसी को इस जड़ी से जुड़ी अहम जानकारियां दी थीं.
उन्होंने बताया था कि ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में मिलती है. 3500 मीटर की ऊंचाई पर ट्रीलाइन होती है यानी यहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. मई से जुलाई के महीने में बर्फ पिघलने के साथ ही इनके पैदा होने का चक्र भी शुरू हो जाता है.
एफआरआई की टीम, जिसने इसपर रिचर्स की, उसे इसे तलाशने के लिए हिमालय के दुर्गम इलाकों में भटकना पड़ा था. टीम ने धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग की और उसके बाद वह उस जगह पहुंचे जहां यह मिलती है.
वहां पर स्थानीय लोगों ने पहले से ही अड्डा जमाया हुआ था. इस जड़ी को लाने का काम वही लोग करते हैं जिनकी नजरें बेहद तेज होती हैं क्योंकि ये नरम घास के बिल्कुल अंदर तक छिपा होता है.
वैश्विक बाजार में कीड़ा जड़ी भले बेहद ऊंचे दामों पर बिकती हो लेकिन हकीकत में इसे खोजकर लाने वाले ग्रामीणों को उनकी मेहनत के बदले सिर्फ 1 या 2 लाख रुपये ही मिलते हैं. एक किलो में कीड़ा जड़ी के 3500 या 4500 पीस होते हैं. इसकी ऊंची कीमत कई बार खूनी झड़पों की वजह भी बन जाती है.
यही नहीं, स्थानीय लोग कई बार बर्फ पिघलाने के लिए जंगलों में आग भी लगा देते हैं. ऐसा करने से न सिर्फ हिमालय की पर्यावरणीय संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि कई दूसरी दुर्लभ जड़ीबूटियां भी प्रभावित होती हैं. ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आई हैं जिसमें उत्तराखंड पुलिस ने इस आयुर्वेदिक जड़ी के व्यापार में जुटे लोगों को गिरफ्तार किया.
आयुर्वेद का मानना है कि इसका उपयोग सांस और गुर्दे की बीमारी में भी होता है. यह बुढ़ापे को भी बढ़ने से रोकता है तथा शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. हालांकि यह दवा भारत में प्रतिबंधित है यारशागुंबा’ जिसका उपयोग भारत में तो नहीं होता लेकिन चीन में इसका इस्तेमाल प्राकृतिक स्टीरॉयड की तरह किया जाता है.
यार्सागुम्बा के इन्ही मृत कीड़ों का उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है. चूंकि भारत में यह जड़ी बूटी प्रतिबंधित श्रेणी में है इसलिए इसे चोरी-छिपे इकट्ठा किया जाता है.
नेपाल में भी 2001 तक इसपर प्रतिबंध था पर इसके बाद नेपाल सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया. भूटान सरकार ने 2001 में इसकी बिक्री को कानूनी वैधता प्रदान की थी. सरकार वहां इसके रेवेन्यू को भी शेयर करती है.
13 जुलाई 2017 को चमोली जिले की जोशीमठ पुलिस ने 875 ग्राम कीड़ा जड़ी के साथ 2 लोगों को गिरफ्तार किया था. सीज की गई जड़ी की कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में 13 लाख रुपये थी. पुलिस ने दुर्गा बहादुर साही और वीर बहादुर रोकामगर को गिरफ्तार किया. ये दोनों ही नेपाल के नागरिक थे. पुलिस ने इनके पास से 97 हजार रुपये भी जब्त किए.
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