Turtuk village : 3 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 तक भारत और पाकिस्तान के बीच में युद्ध हुआ और हमारी जीत का ऐलान 17 दिसंबर को हुआ। इस युद्ध में एक गांव ऐसा था जहां पर लोग सोए तो पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में थे लेकिन सुबह उठे भारत में थे। ये गांव 28 हजार फीट की ऊंचाई वाले दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ कराकोरम के करीब बसा है। साल 1971 युद्ध में इंडियन आर्मी ने रातोंरात पाकिस्तान के इस गांव पर कब्जा किया था। इस गांव में -15 डिग्री की कड़क ठंड पड़ती है।
अभी लेह में आने वाला ये गांव जिसका नाम है टुरटुक तब पाकिस्तान के कब्जे वाले बाल्टिस्तान में आया करता था। टुरटुक पर लेह में मौजूद इंडियन आर्मी के मेजर चेवांग रिनचेन ने 14 दिसंबर की रात के 10 बजे कब्जा करने का प्लान बनाया था।
-20 डिग्री टेम्परेचर वाली ठंड के बीच में मेजर रिनचेन ने अपने 100 जवानों के साथ नदी के रास्ते की जगह पहाड़ को पार किया और टुरटुक पर कब्जा करने की योजना बनाई। क्योंकि ठंड काफी ज्यादा थी और पीने का पानी जम रहा था। इस वजह से जवानों ने पानी की बोतल में रम मिलाई और पीते हुए पहाड़ की तरफ चले।
दरअसल उस दौरान पाकिस्तान की आर्मी ईस्ट पाकिस्तान में चल रहे युद्ध में व्यस्त थी। बाल्टिस्तान वाले भारत-पाक बॉर्डर पर फोर्स काफी कम थी। इसी का फायदा उठाकर 4 से 5 घंटे में रिनचेन ने टुरटुक गांव पर कब्जा कर लिया था।
टुरटुक गांव इससे पहले 21 साल पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में रहा था लेकिन पहला स्कूल से लेकर हेल्थ सेंटर तक सभी भारत के कब्जे के बाद ही यहां पर बना। वहीं पाक ने 21 सालों में इस गांव को कुछ नहीं दिया था और भारत ने 1971 में कब्जे के बाद से अब तक स्कूल, हेल्थ सेंटर, 1000 से ज्यादा लोगों को नौकरी, बिजनेस और कई सुविधाएं दीं है।
टुरटुक गांव में बनी एक मस्जिद से पाकिस्तान के पहाड़ों पर बनी आर्मी पोस्ट साफ-साफ दिखती है। यहां पर 24 घंटे पाक आर्मी रेंजर्स तैनात रहते हैं। वहीं इस गांव से थोड़ी दूर पर इंडिया का बॉर्डर पोस्ट भी है, जहां पर तीन अलग-अलग छोर पर तीन सीओ और फोर्स हैं।
टुरटुक में पानी और बिजली की काफी समस्या होती है। यहां पर दिसंबर से फरवरी तक जो बर्फ गिरती है, यही गांव वालों के लिए पानी का जरिया है। इस गांव के हर घर के पहाड़ से नीचे आने वाली पिघली बर्फ को स्टोर करने के लिए एक पतली नाली बनी है। मार्च से नवंबर के बीच इन्हीं नालियों में बर्फ पिघलकर आती है। इसी पानी को यहां के लोग संभाल कर सालभर रखते हैं।
लेह से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव का रास्ता काफी खतरनाक है। एक तरफ जहां पहाड़ है तो वहीं दूसरी तरफ खाई है और बीच में पतली सी आर्मी की सड़क है। दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ के करीब बसे इस गांव तक पहुंचने के लिए लेह से लगभग 8 से 10 घंटे का वक्त लग जाता है।
यहां पर आने के लिए गाड़ी बुक करके 5-6 हजार रुपए 1 दिन का लगता है। तो वहीं आर्मी की बस भी हफ्ते में 1-2 दिन लेह से यहां पर आती है। इस रास्ते में 50 किलोमीटर तक आपको दोनों तरफ सर्दियों में बर्फ से ढके हुए पहाड़ ही दिखेंगे। दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बनी मोटररेस रोड भी यहीं है। जहां सर्दियों में बर्फिली हवाएं चलती हैं। और तापमान -25 डिग्री तक चला जाता है। सियाचीन आर्मी बेस का कुछ हिस्सा भी इस गांव के रास्ते में पड़ता है।
इस गांव में जाने के लिए सबसे अच्छा मौसमअप्रैल से सितंबर तक रहता है। तब बर्फ नहीं होती और पानी की कमी नहीं होती है।
कुछ फैक्ट्स
Amrit Udyan Open : राष्ट्रपति भवन में स्थित प्रसिद्ध अमृत उद्यान (जिसे पहले मुगल गार्डन… Read More
Pushkar Full Travel Guide - राजस्थान के अजमेर में एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर-पुष्कर… Read More
Artificial Jewellery Vastu Tips : आजकल आर्टिफिशियल ज्वैलरी का चलन काफी बढ़ गया है. यह… Read More
Prayagraj Travel Blog : क्या आप प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े तीर्थयात्रियों के जमावड़े,… Read More
10 Best Hill Stations In India : भारत, विविध लैंडस्कैप का देश, ढेर सारे शानदार… Read More
Mirza Nazaf Khan भारत के इतिहास में एक बहादुर सैन्य जनरल रहे हैं. आइए आज… Read More