Who are Pashtun: नीली आंखों पर जिनका ‘जन्मसिद्ध’ अधिकार है! इजरायल से है गहरा रिश्ता
Who are Pashtun: पश्तून कहिए, पख्तून कहिए या पठान कहिए… इन तीनों का एक ही अर्थ है. नीली आंखें, सिल्की बालों की नियामत जैसे इन्हीं पर बरसी है. अगर आपने बॉलीवुड की फिल्म ‘खुदा गवाह’ देखी है तो पठानों की छाप आपके जहन पर जरूर होगी. आपको अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में मिट्टी में लोटते पोटते ऐसे हजारों बच्चे मिल जाएंगे जिनकी आंखें, बाल और चेहरा देखकर आप माशाअल्लाह कह उठेंगे, मानों इनपर इन्हीं का अधिकार हो.
पाकिस्तान में शाहिद अफरीदी, इमरान खान, मलाला यूसुफजई, भारत में मधुबाला, कादर खान, शाहरुख खान, सलमान खान की जड़ें पश्तूनी हैं. इतिहास में जाएं तो शेर शाह सूरी, दोस्त मोहम्मद खान (भोपाल का नवाब), अहमद शाह दुर्रानी, मोहम्मद अयूब खान, बच्चा खान भी पश्तून (Pashtun) ही थे. पश्तून डीएनए में ऐसा क्या है जो उनकी कदकाठी, आंख, खूबसूरती, बाल लाखों में एक होते हैं.
पश्तूनों का फैलाव नस्लीय रूप से पश्तूनों से जुड़ता है जो पश्तूनीस्तान में अपनी पारंपरिक जगह में बसे हैं और ये जगह अफगानिस्तान में अमू नदी के दक्षिण में और पाकिस्तान में सिंधु नदी के पश्चिम में है. पश्तूनीस्तान ज्यादातर पश्तून समुदाय का घर है.
हालांकि, पाकिस्तान के सिंध और पंजाब के साथ साथ सिंध और लाहौर में भी इनकी मौजूदगी है. हाल में ही पश्तूनों का फैलाव अरब देशों में भी दिखाई देने लगा है, खासतौर से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में.
पश्तूनों की छोटी आबादी यूरोपियन यूनियन, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी है. ईरान, ओमान, सऊदी अरब, कुवैत और बहरीन में भी ये हैं. उत्तर भारत में ऐसे समुदाय हैं जिनकी जड़ें पारंपरिक पश्तून धरती पर ही हैं.
भारतीय उपमहाद्वीप में इन पश्तूनों को पठान कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि पश्तून एथनिक ग्रुप पहली सहस्त्राब्दी में ही वृहद पश्तूनिस्तान क्षेत्र में आकर बस गए थे.
क्या प्राचीन इजरायलियों के वंशज हैं पश्तून? || Are Pashtuns Descendants of Ancient Israelites?
Ethnologue के मुताबिक, इस वक्त इनकी संख्या 50 मिलियन के आसपास है. लेकिन कुछ जगह इनकी संख्या कम भी बताई गई है. पश्तून इतिहास के बारे में जो जानकारी मिलती है वो इसके 5 हजार साल से भी पुराने होने के प्रमाण देती है.
हालांकि यह इतिहास अलिखित तरीके से हर पीढ़ी में सुनकर आगे बढ़ता रहा है. पख्तून लोक-मान्यता के मुताबिक यह जाति ‘बनी इजरायल’ (इजरायल की संतान) यानी ‘यहूदी वंश’ से संबंधित है.
इस मान्यता के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के वक्त पर जो लगभग 2800 साल पहले का है, इस दौरान ‘बनी इजरायल’ के 10 कबीलों को देश निकाला दे दिया गया था.
इन्हीं कबीलों को पख्तून नाम से जाना गया. ॠग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन ‘पक्त्याकय’ नाम से मिलता है. इसी तरह तीसरे खंड का 91वां श्लोक अफरीदी कबीले का जिक्र ‘आपर्यत्य’ के नाम से करता है.
पश्तूनों के बनी इजरायल (अर्थ- इजरायल की संतान) होने की बात 17वीं सदी ईस्वी में जहांगीर के काल में लिखी किताब ‘मगजाने अफगानी’ में भी है. अंग्रेज लेखक और यात्री अलेक्जेंडर बर्न्स ने अपनी बुखारा की यात्रा में सन 1835 में भी पश्तूनों द्वारा खुद को बनी इजरायल मानने के बारे में लिखा है.
पश्तून खुद को बनी इजरायल तो मानते हैं लेकिन धार्मिक रूप से वह मुसलमान ही हैं, यहूदी नहीं. अलेक्जेंडर बर्न्स ने ही पुनः 1837 में लिखा कि जब उसने उस समय के अफगान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रजा बनी इजरायल है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं और आधुनिक यहूदियों का समर्थन नहीं करेंगे.
विलियम मूरक्राफ्ट ने भी 1819 व 1825 के बीच भारत, पंजाब और अफगानिस्तान समेत कई देशों के यात्रा-वर्णन में लिखा है कि पख्तूनों का रंग, नाक-नक्श, शरीर आदि सभी यहूदियों जैसा है. जे बी फ्रेजर ने अपनी 1834 की ‘फारस और अफगानिस्तान का ऐतिहासिक और वर्णनकारी वृत्तान्त’ नामक किताब में कहा कि पख्तून खुद को बनी इजरायल मानते हैं और इस्लाम अपनाने से पहले भी उन्होंने अपनी धार्मिक शुद्धता को बरकरार रखा था.
जोसेफ फिएरे फेरिएर ने 1858 में अपनी अफगान इतिहास के बारे में लिखी किताब में कहा कि वह पख्तूनों को बनी इजरायल मानने पर उस समय मजबूर हो गया जब उसे यह जानकारी मिली कि नादिरशाह भारत-विजय से पहले जब पेशावर से गुजरा तो यूसुफजई कबीले के प्रधान ने उसे इब्रानी भाषा (हिब्रू) में लिखी हुई बाइबिल व प्राचीन उपासना में उपयोग किये जाने वाले कई लेख साथ भेंट किये. इन्हें उसके खेमे में मौजूद यहूदियों ने तुरंत पहचान लिया था.
मूलतः कहां से हैं पश्तून? || Where are Pashtuns originally from?
पश्तून लोग पश्तूनिस्तान क्षेत्र के हैं. हालांकि अफगान शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में पश्तूनों को संबोधित करने के लिए ही किया गया था लेकिन अब इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान के हर नागरिक के लिए किया जाता है.
पश्तून अफगानिस्तान का सबसे बड़ा एथनिक ग्रुप है. देश में इनकी संख्या लगभग 42–60% है. लगभग 1.7 मिलियन अफगान रेफ्यूजी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में रहते हैं. इसमें ज्यादातर पश्तून हैं जो अफगानिस्तान में ही जन्मे थे.
पश्तून पूरे अफगानिस्तान में बसे हुए हैं. देश के हर प्रांत में वह मौजूद हैं. कंधार अफगानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और पश्तून संस्कृति मजबूती से यहां रची बसी है.
दक्षिण में लश्कर गाह, पश्चिम में फराह, पूर्व में जलालाबाद और उत्तर में कुंदुज अन्य सांस्कृतिक केंद्र हैं जहां पश्तून आबादी बड़ी संख्या में है. काबुल और गजनी दोनों ही शहरों में 25 फीसदी पश्तून हैं जबकि हेरात और मजार-ए-शरीफ में 10 फीसदी.
पाकिस्तान से क्या है पश्तूनों का रिश्ता? || What is the relation of Pashtuns with Pakistan?
पश्तून कबीले पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा एथनिक ग्रुप है. यह देश की 25 फीसदी आबादी से भी ज्यादा है. खैबर पख्तूनखवा, फैडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया (फाटा) और उत्तरी बलूचिस्तान में यह बहुसंख्यक हैं. कुछ अनुमानों में यह 70 लाख के आसपास हैं.
सिंध में कराची शहर में शहरी पश्तूनों की सबसे बड़ी आबादी है. पाकिस्तान के अन्य पश्तून शहरों में पेशावर, क्वेटा, जहब, लोरालई, किला सैफुल्लाह, स्वात, मरदान, चारसादा, मिंगोरा, बन्नू, पाराचिनार और स्वाबी है.
भारत से पश्तूनों का क्या है रिश्ता? || What is the relation of Pashtuns with India?
पश्तूनों की ही एक नस्ल मनिहार के नाम से मशहूर है. ये नस्ल चूड़ियां और बिसातखाने का सामान बेचने अफगानिस्तान से भारत जाया करते थे. इसके बाद धीरे-धीरे ये वहीं पर बस गए. मुगलकाल में ये चूड़ी बनाने का काम करते थे.
ये अपने नाम के आगे मिर्जा, बेग, सिद्दीकी आदि लगाते थे. भारत में पश्तूनों की बड़ी संख्या हिंदी और उर्दू भाषी है. राजशाही काल के पश्तूनी संस्कृति के यहां लुप्त हो जाने के बाद भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे पश्तून हैं जिनकी जड़ें पुराने पश्तूनिस्तान में है. इन्हें हिंदुस्तानी नाम ‘पठान’ भी मिला हुआ है.
भारत से कुछ पश्तून अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बॉर्डर पर जाकर बसे हैं जबकि इनके वंशज आज भी देश के अलग अलग हिस्से में है. यूपी के संभल में सराय तरीन में बड़ी संख्या में पश्तून बसे हुए हैं. यूपी में बुलंदशहर के खुर्जा में भी इनकी संख्या नजर आती है.
खुर्जा के पठान कभी भी अपनी जाति से बाहर निकाह नहीं करते हैं और इस वजह से उनकी नस्ल उन्हीं तक सीमित है. बुलंदशहर में ही पठानों के 12 गांव हैं जिसे बारा-बस्ती कहा जाता है.
खेशगी इस इलाके में सबसे महत्वपूर्ण कबीला है. इसके साथ ही, रोहेलखंड में रोहिल्ला, फरुखाबाद में बंगाशेस, एटा के कासगंज और कईमगंज में भी पठानों की संख्या है.
मेरठ-गढ़ रोड पर शाहजहांपुर गांव में, आंध्र में, राजस्थान के बारी में, पंजाब के जालंधर में, जम्मू-कश्मीर के पठानकोट (अजीम खईल) में इनकी संख्या है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद, यूपी के आजमगढ़, मध्य प्रदेश के भोपाल में मरवत, गुजरात के बड़ोदा, मध्य प्रदेश के भोपाल में यूसुफजायस, राजस्थान के टोंक में टोंकिया पठान हैं.
राजस्थान में सोरगर कम्युनिटी को भी पठानों का ही वंशज माना जाता है. उत्तर भारत में लोदी और सूरी, गुजरात के पठान पश्चिमी यूपी में बवानी के पठानों से अलग हैं. वह मुख्यतः कारर हैं.
इनमें से कुछ शामली के बुतरारा, तपराना, बासी और बल्ला माजरा गांव में रहते हैं. पठानों की कई जातियां भारत में है और ये मुख्य रूप से बाबी, लोहानी, मंदोरी और जादरान कबीले से संबंधित है. यहां यह भी बता देना जरूरी है कि सदियों से भारत में रह रही पठानों की जातियों ने खुद को यहां की संस्कृति में भी ढाल लिया है.
‘पठान’ शब्द खासतौर से भारतीय पश्तूनों के लिए नहीं है. इतिहास में इस शब्द को पश्तूनों को, जिसमें भारतीय मुस्लिम भी थे संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया गया है.
भारत में जो बड़ी हस्तियां पश्तून वंश की हैं उसमें जरीन खान, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान, दिवंगत अभिनेत्री मधुबाला, 70 और 80 के दशक में बड़ा चेहरा रहे फिरोज खान, अभिनेता सैफ अली खान, परवीन बाबी, सलमान खान, सलीम खान, कादर खान हैं.
कई पश्तूनों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था जबकि कई ने अलग पाकिस्तान की मांग के लिए मुस्लिम लीग का समर्थन भी किया था. कुछ पश्तून एक भारत के पक्ष में थे, जिसमें से कई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे.
इनमें खान अब्दुल गफ्फार खान, उनके बेटे खान वली खान, भारतीय डिप्लोमैट मोहम्मद यूनुस, पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मुफ्ती महमूद और बलोचिस्तान के पश्तून नेता अब्दुल समन अचकजई थे.
अफगानिस्तान से कई पश्तून छात्र भी भारत में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई में भारत में पढ़े हुए हैं. दिल्ली में इस वक्त भोगल में बड़ी संख्या में अफगानी नौजवान रहते हैं.